*रेजगारी* –     मुकुन्द लाल

बसंती ने भुट्टों से भरी टोकरी को मुश्किल से अपने सिर पर से उतरकर जमीन पर रखा। उसने आंँचल से पसीना पोंछा। उसकी सांँस तेज गति से चल रही थी। पाँच किलोमीटर की दूरी तय करके वह सब्ज़ी मार्केट सुबह तड़के पहुंँच गई थी। कोरोना के भय से। उस समय तक इक्के-दुक्के लोग ही सब्जी लेकर पहुंँचे थे। मन ही मन खुश थी, यह सोचकर कि जल्द ही अपना सामान बेचकर घर लौट जाएगी मार्केट में भीड़ होने से पहले ही।

 ताजे भुट्टों को टोकरी में सजाया, तराजू-बटखरा ठीक किया।

 पल-भर बाद ही एक ग्राहक उसके पास पहुंँचा,

” भुट्टे ताजे हैं?”

 ” हांँ बाबू!”

 ” किस भाव बेचोगी?”

 ” देखिए बाबू सुबह का समय है.. मोल-जोल नहीं, पच्चीस रुपये किलो दूंँगी” उसने सहज भाव से कहा।

 ” कुछ कम नहीं होगा?”

 ” नहीं बाबूजी।”

 ” ठीक है दो किलो तौल दो।”

   फुर्ती से बसंती ने तराजू उठाया, ग्राहक ने मनमुताबिक भुट्टे चुनकर तराजू के पलड़े पर रखा।


 बसंती ने दो किलो भुट्टे तौलकर ग्राहक के थैले में उड़ेल दिया।

 ग्राहक ने पाँच सौ रुपये का नोट उसकी ओर बढ़ाया।

” मेरे पास रेजगारी नहीं है, अभी तुरंत आई हूँ। “

” मेरे पास भी छुट्टे पैसे नहीं है।”

 थोड़ी देर तक दोनों असमंजस में रहे।

 “अगल-बगल देखो, किसी के यहाँ रेजगारी मिल जाए” ग्राहक ने कहा।

 बसंती ने हाथ में नोट लेकर इधर-उधर नजर दौङाई, एक-दो सब्जीफरोश से पाँच सौ रुपये के भांज हेतु आरजू-मिन्नत भी की, लेकिन सभी ने लाल झंडी दिखा दी। उसने उदास होकर टूटते हुए स्वर में कहा, ” बोहनी खराब हो जाएगी बाबूजी, कोई उपाय सोचिए। “

” विचित्र हो तुम!.. भला मैं किससे सुबह-सुबह रेजगारी की भीख मांगूंँ।”


 बसंती किंकर्तव्यविमूढ़ होकर खड़ी थी।

” तुम्हें कुछ रेजगारी लेकर चलना चाहिए” खीझकर ग्राहक ने कहा।

 ” कहांँ से रेजगारी लेकर चलें बाबूजी, इतनी औकात ही कहांँ है, जो पैसा घर पर जमा रहे.. यहांँ तो रोज कमाना, रोज खाना है। “

” सुनो!.. मैं तुम्हारा इतिहास सुनने नहीं आया हूँ।”

” ठीक कहते हैं लेकिन.. “

” देखो मैं तुम्हारा दरबान नहीं हूंँ जो खड़ा रहूंँ, लाओ मेरा नोट और लो अपने भुट्टे। “

मन मसोस कर बसंती ने ग्राहक को नोट वापस कर दिया।

 ताव में आकर उसने थैले के भुट्टे उसकी टोकरी में उड़ेल दिया।

 बसंती को ऐसा महसूस हो रहा था, मानो भुट्टे नहीं उसके सिर पर पत्थर के टुकड़े गिर रहे हैं।

    स्वरचित

    मुकुन्द लाल

    हजारीबाग

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