रंग लगे पांव – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

 “माॅं, सब मेरा मजाक उड़ाते हैं। मैं ऐसा ही हूॅं तो मैं क्या करूॅं।’’

“कोई बात नहीं बेटा, समय के साथ सब सही हो जायेगा। इसमें तेरी कोई गलती नहीं है।’’ जानकी अपने बेटे की परेशानी देखकर परेशान हो गयी। उसने अपने बेटे को तो समझा दिया परन्तु दिल के किसी कोने में एक शंका उसके मन में हमेशा से दबी हुई थी जो रह रहकर उसका कलेजा चीर कर रख देती थी। वो जानबूझकर इसे अनदेखा करती रहती थी कि शायद ये उसका वहम हो लेकिन जैसे जैसे समय बीत रहा था ये छिपाया और अनदेखा किया हुआ सच खुद ब खुद बाहर आ रहा था। 

“माॅं क्या कर रही हो।’’ दस साल के रवि ने अपनी माॅं से पूछा। 

“आज करवा चैथ है और मैं अपने पैरों में रंग लगा रही हूॅं।’’

“कितने सुन्दर पैर लग रहे हैं। मेरे भी लगा दो ना।’’

“तू भी ना, अब तू बड़ा हो गया है, अब ये सब तुझ पर शोभा नहीं देता। जब तू छोटा था तो लिपिस्टक, नेलपालिश और रंग लगा दिया करती थी। लेकिन अब अगर किसी ने देखा तो फिर से तुझे चिढ़ायेगा।’’ माॅं ने रवि की बात को टालते हुये कहा, जैसे वो किसी बड़े सच को अपने छोटे से झूठ से गलत साबित करने का प्रयास कर रही हो लेकिन रवि अपनी माॅं के रंग लगे पैरों को उन्ही लालसा भरी निगाहों से देखता रहा जैसे उसे कोई फर्क ही न पड़ता हो कि लोग क्या कहेंगे।  




दिन बीतते जा रहे थे और रवि अपने अन्दर चले रहे द्वन्द से अकेले ही लड़ रहा था। वो चाहता था कि हर समस्या में उसका हांथ थामें खड़ी माॅं आज भी उसका हांथ थाम ले और उससे कहे कि उसे परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है लेकिन इसके उलट उसकी माॅं उसकी भावनाओं को समझ ही नहीं रही थी…….या शायद समझना ही नहीं चाहती थी। 

रवि बचपन से ही अपने पिता से डरता था। उसके पिता सरकारी विभाग में अच्छे पद पर हैं और माॅं भी उनकी किसी बात का विरोध नहीं कर पाती हैं। एक दादी ही थी जिनसे पिता जी कुछ नहीं कहते थे लेकिन वो भी दो साल पहले नहीं रही। अब रवि को ऐसा कोई नहीं दिखता था जिससे वो मदद की उम्मीद कर सके। 

“तू समझता क्यों नही रवि, तू एक लड़का है। ये क्या हाल बना रखा है, लड़कियों की तरह सजना संवरना क्या तुझे शोभा देता है। अब तू तेरह साल का हो रहा है, बचपन की बात अलग थी लेकिन अब ……हे भगवान मैं क्या करूॅं?’’

“पर माॅ, मैं ऐसा ही हूॅं। कम से कम तुम तो मेरी बात को समझो।’’

“ये सब तेरे मन का वहम है। ऐसा कुछ नहीं होता है। तू लड़का है तो लड़का ही रहेगा ना। मुझे लगता है तेरे उपर किसी चुड़ैल का साया है। मैं कल ही किसी तांत्रिक को बुलाती हूॅं। ’’

“पर माॅं………….’’ माॅं तो अपने आंसू पोछती हुई अपनी परेशानी का बोझ अपने कंधे पर लिये हुये कमरे से निकल गयी थी जैसे आज इस समस्या का समाधान खोज ही निकालेगी लेकिन रवि का क्या……उसकी परेशानी तो माॅं ने सुनी ही नहीं। वो क्या कहना चाहता था, माॅं ने सुना नहीं…….या सुनकर स्वीकार नहीं किया। रवि फिर से निढाल सा अपने बिस्तर पर लुढ़क गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। वो भी एक सामान्य जीवन जीना चाहता था। वो भी अपने मम्मी पापा से बहुत प्यार करता है, उन्हे कभी कोई दुख नहीं देना चाहता है लेकिन आखिर किस वजह से आज उसकी माॅं इतनी परेशान है। वो क्यों नहीं देख रही कि उसका बेटा किस तकलीफ और अन्तद्र्वन्द से गुजर रहा है। 




माॅं को जो करना था, उसने वही किया, पूजा पाठ, तांत्रिक, पीर फकीर, ताबीज, उससे जो बन पड़ा उसने किया। अब तो उसके पिता ने भी उसे धमकाना शुरू कर दिया था कि अगर वो अपनी हरकतें नहीं सुधारता है तो वो उसे घर से निकाल देंगे। उनकी समाज में बहुत इज्जत है। वो रवी की हरकतों की वजह से अपनी मटियापलीद नहीं करा सकते। आखिरकार रवि ने अपने अन्दर की स्त्री को माॅं के आंसुओं, पिता के डर और समाज के तानों के डर से अन्दर ही कहीं किसी अंधेरे कोने में छिपा दिया लेकिन आज भी जब माॅं पैरों में रंग लगाती तो रवि का मन ललचा उठता था और वहीं रवि की माॅं जानकी का मन भी तूफान से पहले की शान्ति को भांप कर काॅप उठता था वो हमेशा एक अन्जाने डर में ही जीती थी। 

रवि अब सत्रह साल का हो चुका था। उसकी मौसी की बेटी की शादी मुम्बई में थी। पूरी शादी में रवि लोगों को सजते संवरते देखता रहा। तरह तरह के कार्यक्रम और लड़कियों के कपड़े, मेकअप के सामान और गानों पर थिरकती लड़कियाॅं उसके मन के अंधेरे में छिपी चिंगारी को हल्की हल्की सी फूंक मार कर रही थी। वो पूरी शादी में सिर्फ लड़कियों के साथ ही खुद को सजह महसूस कर रहा था। शादी में आये ट्रांसजेन्डर समुदाय को उसने देखा तो उसे पता चला कि उसके जैसे और भी बहुत से लोग हैं। रवि उन लोगों से इतना ज्यादा घुलमिल गया था मानों उनसे कोई गहरा जुड़ाव हो। वह जानना चाहता था कि उन लोगों ने खुद को कैसे स्वीकार किया,….लोगों ने उन्हे जैसा वो है, वैसा कैसे स्वीकार किया लेकिन रवि को ज्यादा समय नहीं मिल पाया और उसके सवाल दिल में ही दबे रह गये।  




शादी में रवि के इस व्यवहार को उसकी मौसी ने बखूबी देखा भी और समझा भी और इस बारे में जब मौसी ने रवि से बात की तो जैसे रवि के अन्दर दफन इच्छाओं का बांध टूट कर बिखर गया और उसने अपने मन की बात अपनी मौसी के सामने रख दी। रवि की मौसी ने बड़ी ही सहजता से रवि की बात को सुना और इस बारे में उसके माता पिता से बात करने की सांत्वना भी दी लेकिन रवि जानता था कि जैसे उसके माता पिता ने आज तक उसकी बातों को सुनकर अनसुना किया है वैसे ही वो मौसी की बात को भी अनसुना कर देंगे लेकिन इस बार उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी मौसी ने उसे वैसे ही स्वीकारा जैसा वो था, न कि उसे फिर से उसे समाज के लिये झूठा दिखावा करने के लिये कहा। 

रवि की मौसी ने रवि की माता पिता से बात की लेकिन बजाय उनकी बात समझने के रवि के पिता ने समाज में अपनी बदनामी के डर रवि से अपना नाता ही तोड़ लिया लेकिन उसकी मौसी ने उसका साथ नहीं छोड़ा। अब रवि का उद्देश्य स्पष्ट हो गया था लेकिन असलियत में उसके जीवन का संघर्ष तो अब शुरू हुआ था जिसे उसे ही पूरा करना था। 

रवि का अपने परिवार से पूरी तरह से नाता टूट गया था और मौसी भी रवि का वित्तीय रूप से कितना ही सहयोग कर सकती थी। रवि अब अपना जीवन एक स्त्री के रूप में बिताना चाहता था लेकिन उसके लिये उसे सर्जरी करानी थी जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी और इस काम में उसका सहयोग करने वाला कोई नहीं था। 

रवि एक ट्रांसजेन्डर कम्यूनिटी से जुड़ गया और एक एक्टिविस्ट के रूप में कार्य करने लगा और उनके माध्यम से वह एक एन0जी0ओ0 के सम्पर्क में आया। इस दौरान रवि ने कई जगहों पर नौकरी करने का प्रयास किया लेकिन हर जगह रवि को उसकी पहचान की वजह से दुत्कारा गया और उसका अपमान किया गया। कई बार तो रवि का शारीरिक शोषण का भी प्रयास किया गया लेकिन रवि ने हार नहीं मानी और अपनी सर्जरी के लिये लगातार मेहनता करता रहा। आखिरकार रवि ने एन0जी0ओ0 के माध्यम से अपनी सर्जरी करायी और उस दिन से 18 वर्ष की आयु में रवि को एक स्त्री के रूप में पहचान मिली।




रवि अब नव्या बन चुकी थी। नव्या के सर्जरी कराते ही कई पत्रिकाओं और अखबार वालों ने उसे कांटेक्ट किया और उसका साक्षात्कार लिया। देखते ही देखते नव्या प्रसिद्ध हो गयी। नव्या को बचपन से ही नृत्य और एक्टिंग का बहुत शौक था। उसने भारतनाट्यम सीखा और कई प्रकार के नृत्य कलाओं में महारत हासिल की। नव्या अब एक जाना पहचाना चेहरा बन गयी थी। वह एक अदाकारा बनना चाहती थी। उसे टी0वी0 पर काम भी मिलने लगा और फिर नव्या ने ब्यूटी पीजेंट में हिस्सा लिया और वह बन गयी भारत की पहली ’’ट्रांसक्वीन इण्डिया’’ और वह आज ट्रांस  क्वीन इण्डिया की ब्रांड एम्बेस्डर भी है। आज वो कई पत्रिकाओं के कवर पर दिखती है, टी0वी0 पर दिखती है और ये सब उसके संघर्ष की कहानी को बयां करता है।  

नव्या के पिता ने समाज में बदनामी के डर से नव्या से रिश्ता तोड़ दिया था, माॅं ने नव्या की बातों और उसके दर्द को अनसुना करके अपने फैसले को उस पर थोप दिया था जबकि वो अपनी औलाद को सर्वप्रथम वह जैसी थी वैसा स्वीकार कर एक नजीर बन सकते थे लेकिन आज उसी नव्या के प्रसिद्ध हो जाने पर उसके माता पिता ने जैसे वो है वैसे ही उसे स्वीकार कर लिया………रवि नहीं बल्कि नव्या के रूप में। 

नव्या जैसी थी, उसमें उसकी कोई गलती नहीं थी वो बस गलत शरीर के साथ पैदा हो गयी थी। उसे चाहिये था तो बस अपने परिवार व समाज का सहारा जिसे उसने लड़कर हासिल किया जबकि वो उसे प्यार और सम्मान से स्वतः मिलना चाहिये था। समाज ने उसे अपनी शान में एक टाट का पैबंद समझा लेकिन वो तो एक खूबसूरत मूर्ति निकली। खुद उसके माता पिता ने उसकी भावनाओं को समाज के तानों और रीति रिवाज से परे रखकर नहीं समझा, उसके अन्दर छुपी स्त्री को झूठे पुरूषत्व से दबाते रहे। नव्या के जीवन को झूठ के पराधीन करने वाले उसके माता पिता ही थे लेकिन आज वो स्वतन्त्र है…उसे आज भी रंग लगे पांव बहुत पसंन्द है, पर अब वो पांव उसके खुद के होते हैं………….

मौलिक 

स्वरचित 

अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

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