रैन-बसेरा – रश्मि स्थापक

“ऐ,मेरी जगह पर ये किसने बोरा बिछाया है…?” बालू ने चिल्लाते हुए कहा।

रैन बसेरे में रोज शाम होते ही चीख चिल्लाहट मच जाती।एक तो सर्दियों की रातें फुटपाथ पर सोनेवालों पर भारी गुजरती हैं इसलिए सर्दियों में तो सरकारी रैन-बसेरे में बेघर लोगों की चिल्लपों मची रहती, सब अपनी- अपनी जगह की जुगाड़ में लगे रहते।आजकल वहाँ का कर्मचारी भी अपने काम से काम रखता।कौन लड़ रहा , कौन चिल्ला रहा है वह बिना ध्यान दिए रजिस्टर पूरा करता रहता।ज्यादा हुआ तो बाहर गश्त दे रहे पुलिस वाले को बुला लेता।

“अबे….तू होता कौन है यह पूछने वाला , तेरी जगह है क्या ये?” कालू ठेलेवाला तैश में  आ कर बोला।

“अच्छा….अब मेरे को बताना पड़ेगा…तूने देखा नहीं चार दिन से यहीं सो रहा हूँ… यहाँ ठंडी कम लगती है …मेरी उमर देख और तेरी देख…मेरी साठ पार हो गई है।”

” चार दिन से सो रहा है तो क्या जगह तेरी हो गई …उमर-उमर की तो बात अपने से करना ही मत?”

” देख सीधे से बोल रहा हूँ मेरी जगह छोड़ दे … अपन को तेड़े होने में ज्यादा देर नहीं लगती… समझे क्या?” बालू अब कुछ नीचे स्वर में बोला।




“अच्छा तो फिर आ जा मैदान में…।” इतना कहते ही कालू  तेजी से बालू की ओर बढ़ा और  उसने उस साठ साल के व्यक्ति की एक झटके से काॅलर पकड़ ली।

उसके एक झटके से ही वह बुरी तरह हिल गया  और उसके हाथ के सहारे लटक गया।

लड़ाई-झगड़े की आवाज सुन बाहर से पुलिस वाला दौड़ कर आया उसने दोनों हाथों से कालू को पकड़ा -“चल बेटा अब तू भी देख  काॅलर पकड़ना किसे कहते हैं…बताऊँ क्या मेरी स्टाइल में ….अब तुझे यहाँ से आठ किलोमीटर दूर रेलवे-स्टेशन वाले रैन-बसेरे में छोड़ आता हूँ।” कहते हुए वह कालू को पकड़ कर दूसरे रैन-बसेरे में ले जाने लगा।

वह उसे लिए दरवाज़े तक पहुँचा ही था कि कालू को कुछ याद आ गया,”साब अपने को क्या कहीं भी छोड़ दो…कोई वादा नई…पर जरा पाँच मिनट रुक के चलो न साब।”

“क्यों बे …अब क्या हुआ?”

“साब …ये बालू ने मेरे को बोला था कि आज उसके खाने का कुछ इंतजाम नई हुआ था तो वो भूखा है…मेरे पास की चार रोटी उसको देकर चलता हूँ…।”

“ओए…ये क्या बात हुई बे..अभी तो उसको मारने पर तुला था…और अब उसकी फिकर हो रही तेरे को?” 

“साब… येई उम्र में मेरा बाबा भूखा सोया था फिर सुबह उठा ही नहीं…बालू साठ से ऊपर का है ।इतनी ठंडी में रात भर भूखा नही रह पाएगा वो।” 

“मतलब अपनी इज्ज़त की कोई भूख नही रहती तुम लोग को?” उसकी आवाज़ में हल्का व्यंग्य का पुट था।

“इज्जत की भूख है ना साब…क्यों नही है…पर उसके बिना मर नई जाएंगे…असली टेंसन तो पेट की भूख का है…ये जालिम है साब किसी को टेम नहीं देती।”

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रश्मि स्थापक

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