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राजो – सुधा शर्मा

  राजो की आंखो में बरसों पहले के दृश्य उभर रहे थे ।कितने चाव से गौना करवा कर लाया था पति हरि ।

मेहदी से चूड़ियों से सजे हाथ , अपने आप को कितना भाग्यवान समझती थी इतने प्यार करने वाले पति को पाकर।

और फिर उस दिन एंटीना ठीक करने छत पर गया वह और करंट से झुलस कर दम तोड़ दिया ।

रोती बिलखती राजो को उसके मायके वाले ले गये। कुछ दिन बाद पुलिस अधिकारी जेठ लिवाने आया ।तरह तरह के आश्वासन देकर लिवा ले गया ।

फिर वह जाने कहाँ कहाँ ले गया बहुत खूबसूरत अपने भाई की पत्नी को।

दूसरे शहर में नौकरी थी वहाँ अपने साथ ले जाकर रखा।असहाय राजो क्या करती ? मजबूर थी ।

जब तक वह जिन्दा था तो किसी की हिम्मत नहीं थी कुछ कहने की।

उसके मरते ही उसके बीबी बच्चे बहुत अत्याचार करने लगे उस पर।जैसे तैसे जिन्दगी के दिन गुजार रही थी वह ।

        आज उसने देखा कि इतिहास फिर अपने को दुहरा रहा है ।

उसके देवर ने नई नवेली दुल्हन  पारो को छोड़ आत्महत्या कर ली ।पारो बेसुध पड़ी थी ।

उसके माता पिता अपने साथ ले जाने लगे तो जेठ

का जवान लड़का ठीक उसी तरह आश्वासन देने लगा उसे रोकने के लिये ।

          हमेशा चुप रहने वाली राजो अब चुप न रह सकी ।चिल्लाते हुए बोली ,” न रुकना यहाँ पर, दोहरे चेहरे होते है लोगों के, मेरी हालत देख रही है न ।जा चली जा हमेशा के लिये ।”

और वह चली गई।

बाद में पिटाई खाती राजो को तसल्ली थी कि उसने पारो की जिंदगी तो बचा ली।

#दोहरे_चेहरे

सुधा शर्मा

स्वरचित

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