राजा साहब (आखिरी भाग ) – रश्मि प्रकाश

“ ये सब क्या है राजा?” पिता ने कड़क आवाज़ में पूछा

“ पिताजी आप सदैव कहते हैं ना किसी भी अबला को मुसीबत में देखो तो मदद करना चाहिए.. बस आज ये लड़की अपने बच्चे के साथ नदी में कूद कर जान देने जा रही थी …..मैं इसे अपने साथ घर ले आया.. अब से ये मेरी पत्नी बन कर इस घर में रहेंगी.. अगर आपको एतराज़ हो तो मैं कही दूसरी जगह जाकर रह लूँगा।” अपनी बात पिता के सामने निर्भीक होकर कहने की आदत राजा साहब की शुरू से रही थी

माँ को कुछ खटका सा लग रहा था पर प्रत्यक्ष में वो मौन खड़ी थी समझ ही नहीं पा रही थी कि राजा जो हमेशा बोलता था वो सच कर दिखायेगा।

पिता ने राजा साहब से बातचीत बंद कर दिया था, माँ तो किसी तरह कजली और बच्चे को अपनाने की पूरी कोशिश कर रही थी पर राजा साहब पिता को मनाने में लग गए थे ,जानते थे ये किसी भी पिता के लिए असहनीय होगा पर राजा साहब रज्जु से प्यार ही इतना करते थे कि वो उसके बच्चे तक को अपनाने को तैयार हो गए थे।इसमें बेचारी कजली बस इसलिए आ गई क्योंकि राजा साहब किसी और पर भरोसा कर भी नहीं सकते थे ।धीरे-धीरे गाँव घर में बातें होनी बंद हो गई। कजली के साथ साथ संतोष को भी सबने अपना लिया था पर राजा साहब और कजली के बीच प्यार बस संतोष तक ही था कजली ने भी बस समर्पण किया अपने आपको राजा साहब की पत्नी के रूप में । राजा साहब कजली से कभी प्यार ना कर पाए हाँ पर उसकी इज़्ज़त ख़ूब करते थे। कजली बस इस बात से खुश रहती की राजा की पत्नी बन कर इस घर आ गई वक़्त के साथ साथ राजा साहब अपना भी लेंगे।

समय गुजरने लगा था।

राजा साहब के पिता राजा से नाराज़ रहने लगे थे ये देखकर राजा साहब कजली और संतोष को लेकर शहर चले गए।साथ साथ गया था हरिया जिसे राजा साहब के साथ ही रहना था….



उधर रज्जु चौधरी की पत्नी बन गई… चौधरी साहब को अपने बेटे विष्णु के लिए एक माँ चाहिए थी रज्जु से उन्हें कोई प्यार नहीं था और रज्जु को सब शानों शौकत मिल रहा था अतीत की परछाई से अब कोई वास्ता ना रह गया था।

रज्जु को यही कहा गया था कि बच्चा मंदिर में छोड़ दिया था ,कोई ले गया होगा। कजली उसे तो राजा साहब पत्नी बना कर कही दूर चले गए। अब तुम अपना घर सँभालो और किसी दूसरे तीसरे के बारे में ना सोचें।

इधर विष्णु रज्जु के ज़िन्दगी में आ गया वो उसमें व्यस्त हो गई और उधर कजली संतोष को बड़ा करने में।

गाँव में राजा के माता पिता नहीं रहे… बहुत चाहा था राजा साहब ने पिता माफ कर दे पर वो माफ न कर पाएँ बेटे के छोड़ कर जाने के ग़म में दोनों बीमार रहने लगे थे…एक बार राजा अकेले ही आया था माँ की याद से व्याकुल होकर मिलने।

साल भर के भीतर दोनों साथ छोड़ गए। राजा साहब की माँ बेटा बहू पोते के लिए कुछ ना कर पाई इसका मलाल उन्हें सालता रहता था।मरने से पहले राजा साहब से ज़िद्द कर बुलाई थी। कजली और संतोष को देख संतोष से अपनी आँखें बंद कर इहलीला समाप्त कर दी थी।

उधर रज्जु विष्णु में अपने बेटे की झलक देख उसे भरपूर प्यार दे रही थी… वो उसे छोटी माँ बोलने लगा था। रज्जु के माता-पिता मरने से पहले बस ये कह गए थे कि तेरा बेटा ज़िन्दा है पर कहा है वो बस राजा ही जानता है । रज्जु राजा को खोज नहीं पा रही थी…



पर उसे क्या पता था चौधरी साहब के मरने की खबर से राजा लौट कर गाँव आने को तैयार हो जाएगा।

हरिया जब मिलने आया तो रज्जु को एक उम्मीद सी जगी थी कि अब उसको राजू मिलेगा और उसके बच्चे से मिलवा देगा…

अपने बच्चे से मिलने की आस लिए रज्जु बस इंतज़ार में दिन काट रही थी अपने बेटे को नजर भर देख कर वो भी इस दुनिया से चली गई।

राजा साहब पहले भी तन्हा रहे आज भी तन्हा ही रह गए। कजली ने अपनी पूरी ज़िन्दगी संतोष को अपना बेटा मान कर राजा के दिल में जगह बनाती चली गई। राजा साहब रज्जु के आगे कजली से वैसा प्यार कर ही नहीं पाए पर अपनी पत्नी के लिए अपने हर फ़र्ज़ को निभाने की पूरी कोशिश की.. वो हमेशा कहते कजली मैं तुम्हें कभी प्यार नहीं कर पाऊँगा… तेरा गुनाहगार तो हूँ ही पर तेरे एहसान के आगे मैं नतमस्तक हो जाता हूँ।मैं तेरी पूजा करता हूँ कजली … ये आख़िरी वाक्य ही तो कहें थे धीमे से राजा साहब ने जब कजली की आँखें बंद हो रही थी।

आज राजा साहब अपनी सारी यादों की पोटली लिए नदी के पास चबूतरे पर बैठे ना जाने कितने घंटो तक रज्जु कजली के बारे में सोचते रहते जब तक हरिया उन्हें उठाने ना आता।

“और कितनी देर बैठोगे बाबू….बहुत पहर बीत गया चलो अब घर चलते है…..” कहते हुए हरिया ने आकर राजा साहब को उठाने के लिए जैसे ही कंधे पर हाथ रखा राजा साहब एक ओर झूल गए।

“ बाबू” कहकर हरिया जोर जोर से चिल्लाने लगा

रज्जु के जाने का गम राजा साहब भी बर्दाश्त नहीं कर पाए….

राजा साहब सबके लिए जीते रहे…… शायद वो भी रज्जु से मिलने के इंतज़ार में ही जी रहे थे।

राजा साहब (भाग 8 )

राजा साहब (भाग 8 ) – रश्मि प्रकाश

रश्मि प्रकाश

 

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