प्यार की परिभाषा

शाम के 6 बजे का समय था। मैं अपने सभी काम ख़त्म कर कुर्सी पर बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था। तभी अचानक मेरे कानों में एक आवाज पड़ी,

“पिता जी, ये प्यार क्या होता है?”

आवाज मेरे बेटे की थी। उसकी उम्र अभी सिर्फ 8 साल की थी।

सवाल सुन कर मैं तो स्तब्ध रह गया। इतनी छोटी सी उम्र में इतना बड़ा सवाल। इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब न था तो मैं उसका ध्यान भटकाने के लिए कुछ और सोचने लगा।

अक्सर भारतीय परिवारों में बच्चों के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग निषेध होता है। परन्तु समय बदल रहा है आज कल बच्चों से अगर आप कुछ छिपाते हैं तो वो खुद ही उसकी जानकारी हासिल करने का प्रयास करने लगते हैं।



अभी मैं अपने विचारों के समुन्दर में गोते लगा ही रहा था कि अचानक एक आवाज और आई,

“प्यार चाहत और आदर की भावना है।”

ये आवाज थी मेरी धर्मपत्नी की। उसका ये जवाब सुन मैं असमंजस में पड़ गया और आगे की बात सुनने के लिए उत्सुक हो गया कि वो अब इस जवाब को समझाएगी कैसे? कैसे समझायेंगी एक बच्चे को कि प्यार दो इंसानों और उनकी आत्माओं के बीच एक पवित्र बंधन होता है।

“कैसी चाहत और कैसा आदर माँ?”

श्रीमती जी उस नन्हे शैतान से बातचीत करने लगी और मैं मात्र एक श्रोता बन कर उनकी बातें सुनने लगा। जिस परिस्थिति ने मुझे असमंजस में डाल दिया था उसकी जिम्मेदारी अब मेरी धर्मपत्नी ने ले ली थी। उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,

“जब आप किसी का आदर करते हैं और सब के साथ अच्छा व्यव्हार करते हैं। आप किसी की सहायता बिना किसी उम्मीद के करते हैं। तो वो लोग भी आपके साथ वैसा ही व्यव्हार करने लगते हैं। यही बात आपके और उनके बीच चाहत पैदा करती है। आपको उनसे आदर और सम्मान मिलता है। यही चाहत और आदर प्यार कहलाता है।

ये जवाब सुन कर तो कुछ देर के लिए मेरे दिमाग ने भी काम करना बंद कर दिया। ये एक ऐसा जवाब था जिसकी मैं उम्मीद भी न की थी। एक पेचीदा सवाल का बहुत ही बेहतरीन जवाब था यह।

“लेकिन किसी की सहायता करने के लिए तो मैं अभी बहुत छोटा हूँ, इसका मतलब कोई मुझे प्यार नहीं करता?”

उदास चेहरा बनाते हुए उस छोटे शैतान ने एक और सवाल दाग दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे इस जवाब के बाद अब वो खुद को अकेला महसूस कर रहा था। मुझे लगा ये देख कर शायद श्रीमती जी के चेहरे पर भावनाओं का कुछ बदलाव हो। लेकिन वो अभी भी शांत थीं। ऐसा लग रहा था जैसे वो इस सवाल के लिए पहले से ही तैयार थीं। अब उन्होंने ने प्यार को परिभाषित करना शुरू किया,

– सब तुम्हें प्यार करते हैं। मैं, तुम्हारे पिता जी, तुम्हारे दादा-दादी, भाई-बहन और तुम्हारे दोस्त भी। बच्चों को तो सब प्यार करते हैं। लेकिन अगर तुम भविष्य में अछे काम करोगे और जरूरतमंद की मदद करोगे तो ये प्यार ऐसे ही बना रहेगा। अगार तुम बुरी आदतें डाल लोगे और बुरे बन जाओगे तो तुम्हें कोई प्यार नहीं करेगा।

– मैं जरूर अच्छे काम करूँगा माँ।

माँ को टोकते हुए वो मासूम बोला। तभी मैं भी हँसते हुए बोला,

– हाँ बेटे, इस तरह के सवाल पूछ कर अच्छा काम तो तुम कर ही रहे हो।

– पिता जी ये तो बस बुद्धिमानी की बात है।

ये जवाब सुन सब एक साथ हंस पड़े।

उस समय मैंने एक औरत का अलग ही रूप देखा। मैंने देखा कैसे उन्होंने अपनी बुद्धिमानी से ये परिस्थिति नियंत्रित की। एक परिवार की नीव औरत ही मजबूत बनाती है। जिसके द्वारा प्यार की एक नयी परिभाषा मुझे जानने को मिली।

हाँ, मैं जानता हूँ की जो भी इसे पढ़ रहा होगा, सोच रहा होगा की ये आसान सा जवाब तो हर कोई जनता है लेकिन सोचने वाली बात ये हैं की कोई एक छोटे से बच्चे को ये कैसे समझाता है।

मैं उन सब औरतों को सलाम करता हूँ जो एक पारिवारिक विद्यालय बिना किसी वेतन के चला रही हैं।

धन्यवाद।

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