प्यार का व्यापार – बालेश्वर गुप्ता

 अरे अंकल ये तो मेरा फर्ज था।एक ही कॉलोनी में रहते हैं, एक दूसरे के दुःख सुख में काम आना तो बनता है।

          बेटा काफी प्रयास के बाद भी मालिनी के ब्लड ग्रुप का ब्लड नही मिल पा रहा था,तुमने अपना ब्लड देकर हमारी मालिनी की जान बचाई है।हमारे लिये तो बेटा, तुम फरिश्ते हो।

      छोड़ो अंकल आप मालिनी का ध्यान रखो,मैं चलता हूं।

      अवनी बेटा घर आते रहना।संकोच मत करना,अपना घर ही समझना।

      हाँ-हाँ, अंकल,जरूर।नमस्ते।

             मालिनी और अवनी एक ही कॉलोनी में रहते थे। अवनी अकेला रहता था,उसका क्या काम काज था,उसकी जानकारी तो किसी को नही थी,मालिनी अपने माता पिता के साथ रहती थी।मालिनी ने इसी वर्ष अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके एक कंपनी में नौकरी करनी प्रारंभ की थी।ऑफिस वो अपनी विक्की से आती जाती थी।मालिनी ने अपनी कॉलोनी में अवनी को देखा तो था पर कभी परिचय नही हुआ था।

          एक दिन मालिनी की विक्की का एक्सीडेंट हो गया,वो तो समय से लोगो ने मालिनी को हॉस्पिटल पहुँचा दिया नहीं तो अधिक खून बह जाने के कारण कुछ भी हो सकता था। आईसीयू में पड़ी मालिनी के ग्रुप का ब्लड उपलब्ध नही हो रहा था तब अवनी ने अपना ब्लड दे मालिनी की जान बचाई थी।




       आठ दस दिन बाद मालिनी घर आ गयी,अभी उसे एक माह घर पर ही आराम करना था।इस बीच लगभग दूसरे तीसरे दिन अवनी मालिनी से मिलने उसके घर आता रहा।मालिनी को अपना रक्त दान किया था अवनी ने सो मालिनी का आकर्षण अवनी की ओर बढ़ता जा रहा था और अवनी भी मालिनी को प्यार करने लगा था।

      मालिनी स्वस्थ हो अपने ऑफिस जाने लगी थी,अब अवनी मालिनी से घर के बाहर ही मिलने लगा था।दोनो कभी पार्क में मिलते तो कभी साथ साथ सिनेमा देखने चले जाते।एक दूसरे से दोनो इतना घुलमिल गये थे कि मालिनी अब अवनी के बिना अपनी कल्पना ही कर पाती थी।

      आखिर मालिनी ने ही अपनी माँ से अवनी से शादी करवाने का जिक्र कर दिया।अवनी उनके घर आता जाता था उन्हें पसंद भी था,उसने मालिनी को रक्त दे उसकी जान भी बचाई थी,पर वो उसके परिवार या खुद उसके विषय मे कुछ भी नही जानते थे।अवनी से मालिनी जब भी उसके परिवार या उसके बारे में पूछती तो वो टाल जाता।प्रेम को शायद इसी लिये अंधा कहा जाता है कि मालिनी ने घर पर साफ कह दिया कि वो अवनी से शादी किये बिना नही रह सकती।आखिर घरवालों ने अवनी और मालिनी की आर्य समाज मे दोनो ओर के कुछ मित्रो की उपस्थिति में शादी कर दी।

       शादी के बाद दोनों हनीमून के लिये शिमला चले गये।एक सप्ताह यूँ ही बीत गया।दोनो एक दूसरे में खोये रहे। अब उन्होंने दो कमरों का एक फ्लैट दूसरी कॉलोनी में ले लिया था।इधर अवनी ने फिर आफिस जाना शुरू कर दिया। मालिनी को अब भी नही पता था कि अवनी आखिर करता क्या है?




      एक दिन रविवार को अवनी ने मालिनी से कहा कि मालिनी आज मेरा एक दोस्त आयेगा, उसका खाना बनेगा और वो रात में भी यही रुकेगा।ठीक है कह,मालिनी श्याम की तैयारी में लग गयी।शाम को अवनी का मित्र आ गया,दोनो आपस मे गप्पे मारने लगे,मालिनी रसोई में चाय बनाने चली गयी।थोड़ी देर बाद मालिनी चाय लेकर आयी और वो चाय टेबुल पर रखने लगी तो अवनी के दोस्त का उसे निगाहों से घूरना अजीब सा लगा।

औरत अच्छी और बुरी नजर को तुरंत समझ लेती है।मालिनी टाल गयी।चाय समाप्त होने पर जैसे ही मालिनी चाय के कप प्लेट उठाने लगी तो वो चौक गयी क्योकि अवनी के दोस्त ने उसकी खुली कमर को सहलाया था,उसने जैसे ही उसकी ओर देखा तो वो दूसरी तरफ देखने लगा।

रसोई में पहुंचकर मालिनी ने अवनी को आवाज देकर बुलाया और सब बात उसे बताई और कहा कि तुम्हारा दोस्त अच्छा इंसान नही है।सब सुन अवनी बोला अरे मालिनी तुम भी क्या पुराने जमाने की बात करने लगी,भई सब चलता है।छू लिया तो क्या हो गया।अब देखो हमारे यहां एक ही ही तो बेड है रात को तीनों एक बेड पर सोयेगे तब क्या होगा,छोड़ो इन बातों को,एन्जॉय करो।बहुत पैसे वाला है,एक लाख रूपये लेने है इससे।

         मालिनी तो एकदम भौचक्की रह गयी,अवनी ने ये क्या कह दिया?साथ सोने तक को भी सहज रूप में बोल गया।अंधेरा सा सामने छा गया, अवनी का ये दूसरा कैसा रूप है, सोचकर ही उसे घिन्न आने लगी।एक झटके में ही जिंदगी ऐसी करवट ले लेगी उसने सोचा भी नही था।फिर भी उसने अवनी से कहा पत्नी हूँ तुम्हारी,प्यार किया है हमने एक दूसरे को,क्या कह रहे हो,कुछ सोचा भी है?

      अरे मालिनी तुम बेकार में परेशान हो रही हो,देखो मैं तुम्हारा पति हूँ, जब मुझे कोई एतराज नही तो तो फिर दिक्कत कहाँ है?फिर मालिनी अंदर से कहीं टूटी।अवनी तुम्हारे सामने तुम्हारी पत्नी को कोई छुए ,तुम्हे कोई एतराज नही,ये कैसी सोच है तुम्हारी।मालिनी तुम समझ नही रही हो,मैं तुम्हे साफ साफ बता रहा हूँ आज यह दोस्त रात को यहां रुकेगा और तुम्हारे साथ कुछ हँसी मजाक करेगा,सुबह चला जायेगा।हमे यह एक लाख रुपये देगा,बताओ ये सौदा क्या कुछ बुरा है।हल्दी लगे ना फिटकरी और रंग चौखा ही चौखा।

      हतप्रभ मालिनी के मस्तिष्क पर एक के बाद एक चोट पड़ रही थी।वो अवनी के इस रूप की कल्पना भी नही कर सकती थी।फिर हिम्मत जुटाकर मालिनी बोली क्या मैं वेश्या हूँ, क्या तुम्हारा यही प्यार है?

       अब अवनी बोला देखो मालिनी मैं तुम्हे प्यार करता हूं, इसलिये शादी भी की,पर मैं यही व्यापार भी करता हूँ। पहले भी किया है।मेरा उसूल है प्यार में व्यापार नही और व्यापार में प्यार नही।अपने को कभी कभी के लिये तैयार रखो।ऐश की जिंदगी कटेगी। अब सब बातें छोड़ो और रात्रि के खाने और सोने की व्यवस्था करो।एन्जॉय योर सेल्फ,माई बेबी।

         मैं अभी आई,कह मालिनी फ्लेट से बाहर आ सीधे पिता के घर की ओर दौड़ ली,और सीधे पिता की छाती से लग सिसक सिसक कर रो पड़ी।

#दोहरे_चेहरे 

         बालेश्वर गुप्ता, पुणे

स्वरचित, अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!