आज रमाकान्त जी को बहुत ज़रूरी काम से कहीं जाना था वही दुकान पर बहुत भीड़ देख कर रमाकान्त जी अपने सबसे पुराने और वफ़ादार कर्मचारी सूरजमल को बुला कर बोले
,”देखो सूरज आज दुकान का ध्यान रखना ,बहुत भीड़ है ,सब सँभाल लेना मुझे जरा ज़रूरी काम से कहीं जाना है… तुम ध्यान रख लोगों ना?” रमाकान्त जी भीड़ और जाने की बात सोच कर थोड़े असमंजस में थे
“ हाँ मालिक आप चिंता मत कीजिए मैं सब सँभाल लूगा आप बेफ़िक्र हो कर जाइए ।” सूरजमल से तसल्ली मिलते रमाकान्त जी निकल गए
रात को दुकान बढ़ाने के वक्त जब वापस लौट कर आकर वो हिसाब किताब देखने लगे तो पाते हैं कि आज हर दिन से ज़्यादा मुनाफ़ा हुआ है ।
वो सूरजमल को बुला कर शाबाशी देना चाहते थे …जब उसे बुलाया गया तो देखते हैं सूरजमल बहुत परेशान और चिंतित नजर आ रहा है ।
“ क्या हुआ सूरजमल आज ग्राहकों की भीड़ सँभालते सँभालते थक गए क्या?” रमाकान्त जी उसके उतरे चेहरे को देख कर बोले
“ नहीं नहीं साहब…वो बात नहीं है…दोपहर को मेरी घरवाली ने फ़ोन किया था कह रही है मुन्ना आगे की पढ़ाई करना चाहता है.. कह रहा है वकालत करेगा उसके लिए कोचिंग करना है पर पैसे के अभाव में …।” कहते कहते सूरजमल चुप हो गया
“ क्या कहा पोता वकालत करना चाहता है ..अरे समझाओ उसको… बाप दादा यही दुकान पर काम करके गुज़ारा किए अब उसको भी यही काम दिला दूँगा।”रमाकान्त जी अकड़ कर बोले
“ साहब छोटा मुँह बड़ी बात होगी पर आप ऐसे क्यों कह रहे हैं…. माना मैं आपकी दुकान पर सालों से काम कर रहा हूँ मेरे बेटे ने भी यही काम किया पर क़िस्मत ने हमें उससे छिन लिया ….
चाहता तो मैं भी था कि मेरा बेटा मेरे जैसा काम ना करें पर वो नहीं माना अब पोते को दुकान पर काम करना पसंद नहीं है तो उसे क्यों ज़बरदस्ती यहाँ बिठाऊँ…
आप भी तो चाहते थे आपका बेटा दुकान सँभाले पर वो बड़ी कम्पनी में काम करना पसंद किए… आपने भी उन्हें इजाज़त दे दी ….तो फिर मैं पोते की
इच्छा का मान कैसे नहीं रख सकता… मैं तो आप से मदद की उम्मीद कर रहा था पर आपने ये कह कर मेरी हिम्मत ही तोड़ दी…चलता हूँ मालिक अपने पोते को तो अब वकालत ही करवाऊँगा ।” सूरजमल कह कर जाने को मुड़ गया
“ रूक भई सूरज… ये बता कितने पैसे चाहिए ले जा … करा अपने पोते को वकालत… सच कह रहा है तू …हम बस ये मान कर चलते है
कि जो काम उसके बाप दादा कर रहे वो भी वही काम करें पर अब तो बच्चे भी अपना अच्छा बुरा समझ कर काम करना चाहते हैं….गलती हो गई जो मैं तुम्हें ऐसे बोल गया।” रमाकान्त दराज से दस हज़ार रूपये निकाल कर सूरजमल को दे दिए
आँखों में छलक आए आँसू को पोंछते हुए सूरजमल ने कहा,” माफ करना मालिक मैं वैसे बोल गया… और इन पैसों के लिए मेहरबानी मालिक मेरी पगार में से ये पैसे कटवाता रहूँगा ।”
रमाकान्त जी हाँ में सिर हिलाते हुए उसे घर जाने का इशारा कर दिए ।
धन्यवाद
स्वरचित
रश्मि प्रकाश
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