पुरुष भी घरेलू हिंसा के शिकार होते है – संगीता अग्रवाल 

अरुण अखबार पढ़ रहा था पढ़ते पढ़ते तीन चार खबरे उसे महिलाओ पर घरेलू हिंसा के दिखाई दिये । अखबार ने एक खबर तो सुर्खियों मे छापी थी क्योकि किसी बड़े व्यापारी की बेटी घरेलू हिंसा का शिकार हुई थी। ” हुई थी या सिर्फ दुनिया को दिखाया गया था ?” उसके मन मे विचार आया। उसने पूरा अखबार खंगाल डाला पर उसे कोई खबर पुरुष के घरेलू हिंसा के शिकार होने की नही दिखी।

” हमारे समाज मे भले कुछ महिलाओ की स्थिति दयनीय है पर ऐसा नही की कोई पुरुष अत्याचार नही सहता हाँ ये बात अलग है कि वो किसी से कहता नही !” अरुण यही सब सोचता सोचता अपने अतीत मे चला गया।

कितना खुश थे उसके घर वाले जब प्रीती उसकी पत्नी बन उसके घर आई थी । अरुण भी खुश था क्योकि प्रीती अपने नाम के अनुरूप सुंदर थी और सबसे बड़ी बात अमीर खानदान की होने के बावजूद उसके पिता की तरफ से रिश्ता आया था। पर ये खुशी ज्यादा देर नही टिकी उसकी वो जैसे ही पहली रात को अपने कमरे मे आया हैरान रह गया। प्रीती दुल्हन का लिबास बदल कर मैक्सी मे खिड़की पर खड़ी सिगरेट के छल्ले उड़ा रही थी। उसे देख कर वो हलका सा मुस्कुराई और उसकी तरफ सिगरेट बढ़ा दी।

” जी ये !” अरुण हैरानी से बोला।

” मुझे आदत है इसकी तो छोड़ने को तो कह भी मत देना पर तुम फ़िक्र मत करो मैं बंद कमरे मे पियूँगी। लो तुम भी पियो।” प्रीती बोली।

” जी मैं नही पीता!” ये बोल वो बिस्तर पर आकर बैठ गया। सुहागरात के बारे मे जो कुछ उसने सुना था और सोच कर कमरे मे आया था वैसा कुछ हुआ ही नही उसका सारा उत्साह ही खत्म हो गया था। थोड़ी देर बाद प्रीती भी वहाँ आ गई पर अरुण ने सिर्फ उससे औपचारिक बात की ओर सोने को बोल दिया। प्रीती को कुछ समझ नही आया पर फिर भी वो लेट गई।

धीरे धीरे अरुण को प्रीती के और भी रूप नज़र आने लगे । प्रीती ना केवल नशा करती थी बल्कि एक बद दिमाग़ लड़की भी थी । किसी का कुछ कहना इसे बर्दाश्त नही होता और वो चिल्लाने लगती फिर चाहे सामने कोई छोटा हो या बड़ा। अरुण की माताजी का काम मे भी सहयोग नही करती पर वो चुप रहती।




” प्रीती देखो माँ सारा दिन अकेले काम मे लगी रहती है तुम थोड़ा उनकी मदद कर दिया करो !” एक रात अंतरंग पलों मे अरुण उसे प्यार से बोला।

” तुम मुझे नौकरानी बना कर लाये हो ? मेरे बाप ने इतना दहेज़ इसलिए नही दिया कि मैं यहां तुम लोगो की सेवा करूँ ज़्यादा अपनी माँ की फ़िक्र है तो कामवाली रख दो पैसे नही तो मैं दे दूंगी !” प्रीती गुस्से मे अरुण को धक्का सा देती हुई बोली। अवाक् रह गया अरुण उसकी इस हरकत से ।

” ये कौन सा तरीका है प्रीती और अपने घर के काम करने मे नौकरानी कौन होता है माँ भी तो करती है ना !” अरुण गुस्से मे बोला।

” चिल्लाओ मत ! तुम्हारी माँ करती है क्योकि तुम लोगो की हैसियत नही नौकर रखने की मेरे बाप के घर मैने कभी पानी भी खुद से लेकर नही पिया !” प्रीती भड़कने लगी।

” प्रीती !” अरुण चिल्लाया।

” क्या करोगे तुम है हाथ उठाओगे है हिम्मत इतनी !” ये बोल प्रीती ने उसकी ऊँगली पकड़ कर मरोड़नी शुरु कर दी । प्रीती के इस रूप की तो उसने कल्पना भी नही की थी। वो सकते की सी हालत मे थोड़ी देर बैठा रहा।

” प्रीती अपना सामान बांधो मैं तुम्हारे पिता को फोन कर रहा हूँ कि वो तुम्हे आकर ले जाये । ” अरुण थोड़ी देर बाद बोला।

” अच्छा मुझे घर से निकलोगे !! सोच लो क्योकि जेल की चक्की भी पीसनी पड़ सकती तुम्हे हमारी शादी को अभी चार ही महीने हुए है । मैं कोई भी इल्जाम लगा सकती तुम पर और सुनी भी मेरी ही जाएगी क्या क्या इलज़ाम मैं तुम पर और तुम्हारे घर वालों पर लगा सकती तुम सोच भी नही सकते !” प्रीति कुटिल मुस्कान से बोली।




अरुण उसकी इस धमकी से सहम सा गया क्योकि ये सच है हमारे कानून मे महिलाओ की ही सुनी जाती है भले पुरुष चीख चीख कर अपनी बेगुनाही साबित करे पर उसको शांत करा दिया जाता है फिर यहां तो प्रीती के मायकेवाले रसूख दार लोग है।

अरुण वहाँ से उठकर जाने लगा पर तभी प्रीती चक्कर खा कर गिर गई। अरुण डर गया और बाकी घर वालों को आवाज़ दी। डॉक्टर को बुलाया गया और डॉक्टर ने जो बताया उसे सुन सभी घर वाले खुशी से झूम उठे। खुश तो अरुण भी था क्योकि बाप बनना हर पुरुष के लिए खुशी की ही बात होती है। लेकिन प्रीती खुश नही थी। क्योकि अब उसको काफी बंदिशो मे रहना पड़ता । सिगरेट , शराब , पार्टियां इनसे दूर रहना पड़ता पर फिर भी वो अरुण से छिपकर कभी कभी सिगरेट पी ही लेती। उसने तो गर्भ गिरवाने की बात भी कि पर डॉक्टर ने मना कर दिया। अरुण को लगा शायद बच्चा होने के बाद प्रीति मे कुछ बदलाव आ जाये।

वक़्त के साथ प्रीती ने एक बेटे को जन्म दिया पर बस जन्म दिया उसकी पालन पोषण की सब जिम्मेदारी वो अरुण और उसकी माताजी पर छोड़ निश्चिन्त हो गई और वापिस से अपनी पुरानी दिनचर्या पर आ गई।। देर रात तक पार्टी करना , शराब , सिगरेट पीना यही उसकी दिनचर्या थी जिसमे माँ बनने के बाद भी कोई बदलाव नही आया। अरुण के घर वाले सब देखते सुनते पर कोई कुछ बोलता तो प्रीती धमकी देती इसलिए चुप रहते।

” प्रीति थोड़ा वक़्त तुम अपने बच्चे को भी दो दूध तुमने नही पिलाया उसको कम से कम थोड़ा प्यार तो दो !” एक दिन अरुण ने उससे कहा।

” देखो अरुण मे यहाँ आया बनने को नही आई तुम्हे बच्चा चाहिए था मिल गया अब इससे ज्यादा उम्मीद मत करो तुम !” प्रीती बोली।

” तुमने शादी ही क्यो कि जब तुम्हे ना पति की फ़िक्र ना बच्चा चाहिए !” अरुण झुंझला कर बोला।

” वो इसलिए मेरे प्यारे पतिदेव क्योकि तुम्हे एक बार मैने अपने डेड के ऑफिस मे देखा था तुम मुझे पसंद आ गये थे फिर मेरी सहेली से शर्त लगी थी कि तुम्हे अपना बना कर रहूंगी इसीलिए डेड से बोल तुम्हारे यहां रिश्ता भेजा !” प्रीती ने एक नया रहस्य खोला।

” क्या !!! पर जब मैं तुम्हे पसंद हूँ तो फिर मेरे साथ ऐसा सुलूक क्यो बार बार धमकी देना , चिल्लाना क्यो ?” हैरान होते हुए अरुण बोला।




” हाँ तो पसंद थे हांसिल कर लिया पर उसका मतलब ये थोड़ी मैं तुम्हारी गुलाम हो गई । वैसे भी मेरी पसंद लम्बे समय् तक नही रहती !” मुस्कुराते हुए प्रीती बोली।

” क्या बकवास कर रही हो तुम मैं कोई चीज नही जिसे हांसिल कर लिया तुमने !” अरुण चिल्लाया।

” आवाज़ नीची रखो !” प्रीती अरुण का मुंह पकड़ती बोली। ” और ये घूर क्या रहे हो …करूँ अभी पापा को फोन एक मिनट लगेगा तुम्हे जेल पहुँचाने मे सारा खानदान जेल की हवा खाना !” प्रीति ने ये बोल उसका मुंह झटके से छोड़ दिया। अरुण के लिए ये अपमान सहना अब मुश्किल हो रहा था । प्रीती को छोड़ पा नही रहा था क्योकि ऐसी सूरत मे प्रीती कुछ भी कर सकती थी और साथ रहकर रोज अपमान के घूंट पीने पड़ रहे थे उसे। उसने एक दो बार प्रीती के घर वालों से भी बात करने की सोची पर उन्होंने भी आपसी मामला बोल पल्ला झाड़ लिया। कितनी बार अरुण के मन मे जान देने का ख्याल भी आया पर अपने बेटे और परिवार वालों की सोच ये कदम भी नही उठा सकता था वो ।

एक अजीब सी कश्मकश से गुजर रहा था वो जिस शादी से वो खुश था आज उसके जी का जंजाल बन चुकी थी जिसमे रहने का मतलब भी अपमान था और ना रहने का मतलब भी। इस शादी मे रहकर जो अपमान हो रहा वो चार दीवारी मे था पर दूर होकर जो इल्जाम प्रीती लगाती उससे जो समाज मे अपमान होता उसकी कल्पना से ही सिहर जाता अरुण क्योकि वो खुद तो सह ले पर अपने परिवार को कैसे कष्ट दे सकता था। बस इसी का फायदा प्रीती उठा रही थी।

” क्या हुआ बेटा क्या सोच रहा है ?” तभी अरुण की माता जी ने इसके कंधे पर हाथ रखा और पूछा। अरुण चौंक गया और उस के हाथ से अखबार गिर गया।




” माँ क्या सिर्फ औरते ही घरेलू हिंसा का शिकार होती है जो मेरे जैसे पुरुष भुक्त रहे वो क्या है ? कहने को इस समाज को पुरुष प्रधान समाज कहा जाता है पर कानूनन सभी हक औरतों को क्यो मिले है जिनका प्रीती जैसी औरते फायदा उठाती है !” अरुण रोते हुए बोला उसकी माँ ने उसे सीने से लगा लिया। वो खुद नही समझ पा रही थी जिस देश मे औरत को देवी का दर्जा दिया जाता वहाँ प्रीती जैसी औरतों को क्या कहा जाये।

अब तो अरुण के घर वाले बस यही दुआ करते है ईश्वर से कि प्रीती खुद से उनका घर छोड़ कर चली जाये जिससे वो सम्मान की जिंदगी तो जी पाये।

दोस्तों ये सच है हमारे देश मे बहुत सी औरते घरेलू हिंसा की शिकार होती है पर कुछ कर नही पाती । पर ये भी सच है कुछ औरते कानून का नाजायज फायदा उठा खुद को बेचारी दिखाती है जबकि वो खुद ही हिंसक होती है अपने पति और उसके परिवार के लिए । कुछ पुरुष बोल नही पाते पर वो भी घरेलू हिंसा के शिकार होते है साथ ही शिकार होते है मानसिक तनाव के । ऐसे मामलो मे या तो पुरुष सारी जिंदगी घुट घुट कर जीते है या मौत को गले लगा लेते है।

मैं ऐसे पुरुषो से कहना चाहूंगी हिंसा करना गलत है तो सहना भी गलत है । साथ ही ये उम्मीद करूंगी हमारे देश के कानून मे जल्द बदलाव आये और पुरुषो के लिए भी कुछ कानून बन पाए जिससे अरुण जैसे लोग घुटन से मुक्ति पा जाये।आपकी दोस्त
संगीता ( स्वरचित )
#मासिक_कहानी _प्रतियोगिता_अप्रैल

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