पुरानी चाहतों को नए पंख दिए तो क्या बुरा किया. – निधि शर्मा
- Betiyan Team
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- on Dec 28, 2022
“बेटा संजय कई दिनों से तुमसे कुछ कहना चाहती थी क्योंकि अब इस घर में मेरी कोई सुनता कहां है। मानती हूं पत्नी की उम्मीदों को पूरा करना चाहिए पर जब औरत की आकांक्षाएं अपने पति के सपनों से भी बड़ी हो जाए तो समझ लो घर का विनाश जल्दी होता है..! अब प्रिया (पोती) भी पढ़ने बाहर चली गई और तुम इतना तो कमा ही लेते हो कि घर आराम से चल सके फिर मैं जान सकती हूं कि बहू को काम करने की क्या जरूरत आन पड़ी..?” सुगंधा जी अपने बेटे संजय से कहती हैं।
संजय बोला “मां आप किस विषय में बात कर रही है मुझे नहीं मालूम पर क्या इंसान के एक ही सपने होते हैं और कहां लिखा है कि पति-पत्नी के एक ही सपने होते हैं..? पुष्पा मुझसे कुछ कह तो रही थी कि प्रिया के जाने के बाद उसका मन नहीं लगता तो वो कुछ करना चाहती है। उसने कोई काम शुरू भी कर दिया ये मुझे मालूम नहीं, ठीक है कुछ कर रही है तो करने दीजिए कम से कम घर में शांति तो बनी रहेगी।”
सुगंधा जी बोलीं “अब समझ में आया की बहू को इतनी हिम्मत कहां से मिली जब बेटा ही मां की बात को काटेगा तो बहू को तो हिम्मत मिलेगी ही..! तुम्हारे बाबूजी के जाने के बाद आज तक मैं बस घर और परिवार के लिए ही सोचती रही तो क्या मैं खुश नहीं थी..?”
संजय मां का हाथ पकड़कर बोला “मां सबकी तरह आपकी भी तो खुद से कुछ उम्मीदें रही होंगी। हो सकता है हालात या बाबूजी का साथ नहीं मिला होगा जिसके कारण आपकी मन की आकांक्षाएं मन में ही दबी रह गई और आप उसे ही अपनी खुशी मान कर बैठ गई होंगी।”
एक पल को सुगंधा जी मानो अपनी चाहतों को याद करने लगी कि कैसे वो अपनी अधूरी पढ़ाई की चाहत को ससुराल में पूरा करना चाहती थीं। वहां किसी का साथ नहीं मिला और चाहते सपने बनकर ही रह गए, उम्मीद टूटी तो मन में कठोरता ने अपनी जगह बना ली थी। अपने बच्चों के लिए तो वो ठीक था पर बहू के लिए मन को बदलने के लिए वो बिल्कुल भी तैयार नहीं थीं।
संजय बोला “मां क्या सोच रही हैं..? अभी तो मैं ऑफिस जा रहा हूं शाम में घर आता हूं फिर उससे पूछता हूं कि आखिर वो ऐसा क्या कर रही है जो आपको पसंद नहीं आ रहा है!” इतना कहकर मानव ऑफिस चला गया।
रसोई का काम निपटा कर पुष्पा सुगंधा जी को बोली “मम्मी जी आपका नाश्ता टेबल पर रख दी और हां आपको केक बहुत पसंद है तो मैं बिना अंडे का आपके लिए केक बनाई हूं चख बताइए कैसा है। आप नाश्ता कर लीजिए फिर मैं अपने दूसरे काम निपटाऊंगी।”
सुगंधा जी बोलीं “बहू क्या संजय के पैसे से तुम्हारी इच्छाएं पूरी नहीं हो रही जो तुमने ये सब करना शुरू कर दिया? अगल बगल तो छोड़ो तुम्हारे मायके वालों को जब पता चलेगा कि उनकी बेटी बिस्किट, केक और मठरी बनाती और बेचती है तो लोग क्या कहेंगे..।”
पुष्पा मुस्कुराई और बोली “मम्मी जी अगल बगल वाले का तो पता नहीं! पर मेरे मायके वाले बहुत खुश होंगे कि बेटी को इतना अच्छा ससुराल मिला है कि उसकी बची हुई इच्छाओं को ससुराल में पूरा करने का मौका मिल रहा है, सोचिए आपके लिए उनके मन में कितनी इज्जत बढ़ जाएगी।” सुगंधा जी मुंह बनाकर पुष्पा को देख रही थी और पुष्पा उन्हें नजरअंदाज करते हुए अपना काम कर रही थी।
शाम में संजय जब ऑफिस से लौटकर आए तो पुष्पा ने चाय के साथ उन्हें बिस्किट और मठरी दी संजय ने चाय का स्वाद लिया और बोले ये बिस्किट तो बहुत ही स्वादिष्ट है! घर में बनाई हो या बाजार से लाई हो?” पुष्पा बोली “जितने पैसे में बाजार में मिलेगी उतने ही पैसे में घर में दुगना बन जाता और शुद्धता की गारंटी रहती है।”
पुष्पा रात के खाने की तैयारी करने लगी तो सुगंधा जी बोली “संजय मैंने सुबह तुमसे कुछ कहा था और तुम हो कि बिस्किट की तारीफ कर रहे हो. !” संजय बोला “मां अभी बहुत थक कर आया हूं खाना खा लेता हूं फिर मैं उससे बात करता हूं।” सब खाना खाने के लिए बैठे सुगंधा जी के चेहरे से उनकी नाराजगी झलक रही थी।
सारे काम निपटा कर पुष्पा कमरे में जा रही थी तभी किसी का फोन आया और नए साल के उपलक्ष में केक और कुकीज का आर्डर दिया पुष्पा ने भी मुस्कुराकर आर्डर लिया। संजय बोला “पुष्पा तुमने बेकरी का काम शुरू कर दिया और मुझसे एक बार पूछा था कि नहीं. ?”
पुष्पा बोली “आज तक जब भी मैं आपके या आपके परिवार के लिए कुछ भी करती तब तो कभी मंजूरी लेने की जरूरत नहीं पड़ी, आज जब मैं अपनी पुरानी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ कर रही हो तो क्या मुझे इसके लिए मंजूरी लेनी होगी..?”
कुछ रोज घर में ऐसे ही चलता रहा फिर एक दिन संजय बोला “तुम जानती हो मां को ये सब पसंद नहीं है। मैंने तुम्हें किसी चीज के लिए कभी मना नहीं किया फिर ये बावर्ची वाले काम तुम्हें क्यों शुरू कर दिया..? तुम्हारे इस काम से घर नहीं चलेगा इसलिए मुझे शांति से रहने दो और बंद करो अपना ये काम।”
पुष्पा आत्मविश्वास के साथ खड़ी हुई और बोली “आज तक पत्नी बहू बनकर सबकी उम्मीदें पूरी करती रही अब बारी मेरी अपनी आकांक्षाओं की है और इसे पूरा करने के लिए मुझे ना तो आपके पैसों की और ना ही किसी और की मदद चाहिए। मैं अपने दम पर अपनी चाहतों को पूरा करने की शक्ति रखती हूं।”
कुछ रोज दोनों पति पत्नी चुपचाप रहते और जरूरत पड़ने पर ही आपस में बातें करते। एक रोज सुगंधा जी पुष्पा से बोलीं “बहू अपने पति को नाराज करके कोई औरत कैसे खुश रह सकती है! अपनी बेकार की चाहतों को पूरा करने के लिए तुमने संजय को दुखी कर दिया, मैं कह रही हूं ये एक अच्छी बहू या पत्नी के लक्षण नहीं होते हैं।”
पुष्पा मुस्कुराकर बोली “मम्मी जी पहले आग जलाना फिर उसमें हाथ सेकना कोई आपसे सीखे..! उन्हें मेरे इस काम से कोई तकलीफ नहीं थी पर आपने ये गलतफहमी की चिंगारी उनके दिमाग में जलाई है। बहुत जी लिया सबकी खातिर अब मेरे मन को जो मुझसे उम्मीद थी उन्हें पूरा करूंगी, अब चाहे पति रूठे या सास मैंने उम्मीद का दामन थाम लिया अब किसी का डर नहीं…।”
नए साल के त्यौहार पर पुष्पा के पास केक और बिस्किट के ढेरों आर्डर आए। पुष्पा ने इसी उम्मीद में सारे आर्डर को पूरा किया कि नए साल में उसके अपनों के मन में भी नई भावनाएं जागेंगी और घर वाले भी उसकी चाहतों के बारे में सोचेंगे।
काम की व्यस्तता में कौन छोटी-छोटी बातों को याद रखता है तो संजय धीरे-धीरे पुरानी बातों को भूलने लगे। सुगंधा जी बीच-बीच में माचिस की तीली की तरह जलती थी और दूसरों को भी जलाती थी पर इन सब बातों से पुष्पा घबराई नहीं और बस आगे बढ़ती गई।
नए साल के उपलक्ष में सोसाइटी में एक पार्टी रखी गई पुष्पा का परिवार भी उसमें शामिल हुआ। सबने सुगंधा जी को केक काटने के लिए कहा क्योंकि वो उम्र में सबसे बड़ी थीं। केक देखकर सुगंधा जी बोलीं “ये केक तो बिल्कुल परिवार के बगीचे की तरह दिख रहा है..!” तभी भीड़ में से किसी व्यक्ति ने कहा “माताजी इस बगीचे को आपकी बहू ने ही बनाया है।”
सुगंधा जी के केक काटने से आनाकानी करने लगे तो संजय धीरे से बोला “मां पुरानी बातों को भूल जाइए आपकी जो भी इच्छाएं अपने समय में पूरी नहीं हो पाई आप अपनी बहू के जरिए पूरा कीजिए फिर देखिए आपको कितनी खुशी मिलेगी।”
संजय और सुगंधा जी के सामने सब लोगों ने पुष्पा की बहुत तारीफ की थी। घर आकर सुगंधा जी अकेली बैठी अपनी बीते दिनों को याद कर रही थी तभी पुष्पा ने कुछ किताबें और कॉपी कलम उपहार के रूप में सुगंधा जी को देते हुए बोली “मम्मी जी नए साल पर आपको यू नई उम्मीदें बहुत-बहुत मुबारक हो। आपको पढ़ने का शौक था तो क्यों न अब उस अधूरे सपने को पूरा करें क्योंकि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, जब मैं अपनी इच्छाओं को इस उम्र में पूरी कर सकती हूं तो आप क्यों नहीं कर सकती।” बहू की बातें सुनकर सुगंधा जी की आंखों में आंसू आ गए।
सुगंधा जी बोलीं “बहू मैं कितनी गलत थी मैं सोचती थी जो पुराने रीति रिवाज चलते आ रहे हैं वही सही होते हैं पर मैं बिल्कुल गलत थी..! इंसान को हमेशा खुद को नई उम्मीदें देती रहनी चाहिए ताकि चाहतें जिंदा रहेंगी तभी तो इंसान आगे बढ़ता रहेगा, जो मुझे तुम्हारे लिए करना चाहिए था वो तुमने मेरे लिए किया मेरे हाथों पाप होने से रोक लिया मैं सदा तुम्हारी आभारी रहूंगी।” पुष्पा ने आगे बढ़कर सास को गले से लगाया इस उम्मीद में कि अब सब कुछ अच्छा होगा।
अब पुष्पा अपनी सास के पुराने सपनों को पूरा करने में मदद करती थी तो सुगंधा जी बहू के द्वारा बनाए गए व्यंजनों को चखकर उस पर अपनी टिप्पणी देती थीं। अब सास बहू खुश तो संजय भी निश्चिंत रहता था अब घर में शांति बनी रहे ऐसी चाहत तो हर इंसान की होती है।
दोस्तों हर इंसान की उम्मीदें पूरी नहीं होती इसका मलाल अपने मन में रखकर अपने आने वाली पीढ़ियों को भी आगे ना बढ़ने देना ये सही नहीं। अगर आपकी उम्मीदें पूरी नहीं हो पाई और उन्हीं उम्मीदों को आपके बच्चे पूरा कर रहे हैं तो उसमें हमेशा सहयोग दें, क्योंकि चाहतों को पंख देने से ही नई उम्मीदों का जन्म होता है और जहां उम्मीद हो वहां जीत निश्चित है।
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#चाहत
निधि शर्मा