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प्रेम का शाश्वत रुप – प्रीति सक्सेना

रमन तुम्हारा यूं पास आना ..और मेरे चेहरे को हौले से थामकर भावुक होकर कहना ” बहुत खूबसूरत हो  तुम राखी” और मेरी सिंदूर से भरी मांग को चूम लेना…. कितना आनंद दायक पल था वो…. कैसे बताऊं, एक कुंवारी लड़की की कोरी मांग में पति के द्वारा जब सिंदूर भरा जाता है उस वक्त क्या महसूस करती है एक लड़की…..  कैसे बताऊं ,सच……एक

अलग सा एहसास… विचित्र सी अनुभूति  एक अनोखा स्पर्श…. और उन पलों के साथ ही अपने को बड़ा और समझदार होने का आभास भी होने लगता है!

 

     अचानक किसी ने ज़ोर से झकझोर दिया मुझे और मेरी नींद सी जैसे टूट गई… कुछ पल तो मैं बेखबर सी रही मानो होश में नहीं हूं.. धीरे धीरे होश में सी आने लगी

देखा ..आप मेरे सामने खड़े होकर गौर से मुझे देख रहे हैं….. अरे ये क्या.. आप सूट बूट में खड़े हैं, सफेद बाल करीने से सैट किए हुए, गोल्ड रिम का चश्मा लगाए , किसी

रियासत के राजा से लग रहे हो, मैंने अपने को देखा… लाल बनारसी साड़ी, जड़ाऊ हार, कंगन मांग टीका, साथ ही सिंदूर से भरी मेरी सुर्ख मांग, खिचड़ी हुए बालों में महकता गजरा, जो मेरे चेहरे को और भी ज्यादा गरिमामय बना रहा है!

 

याद आया आज हमारी शादी की ” स्वर्ण जयंती” मनाई जा रही है , बच्चों ने इतनी भव्य व्यवस्था की है कि देखने वाले सभी दिल खोलकर प्रशंसा कर रहे हैं!

शायद कार्यक्रम शुरु होने में कुछ समय बाकी है,

इसलिए…. 

 

 हम दोनों को आराम करने की दृष्टि से कमरे में भेज दिया गया है !




 

अब तक मैं अपने ख़्वाब की दुनिया से बाहर आ चुकी हूं आपने दोबारा मुझसे पूछा है ” क्या सोच रही हो”

” कुछ नहीं… पचास साल पहले उपजे अपने प्रेम के बारे में सोच रही थी, न हमने एक दूसरे को देखा था, न जानते ही थे एक दूजे को, हमारे माता पिता ने रिश्ता तय किया.. और हम बंध गए एक अटूट बंधन में .. वो बंधन प्रेम और प्रीत की डोर से  ऐसा बंधा  तभी तो इतना मजबूत रहा!! और आज देखिए आज हमारा रिश्ता स्वर्ण जयंती मना रहा है!!

 

“क्यों जी…. कैसे निकल गया न, पचास साल का लंबा समय, पता ही नहीं चला न?”

“तुम्हारा साथ था राखी.. जीवन में अच्छे बुरे समय में बगैर किसी गिला शिकवा के तुमने साथ दिया…. कभी कोई शिकायत नहीं की, जो कमाया तुम्हारे हाथ पर धर देता था और तुम….. अपने बनाए बजट के हिसाब से विधिवत अपनी गृहस्थी 

चलाती रहीं… बच्चों को संस्कारवान बनाया, बच्चों ने भी हमारा मान बनाए रखा, आज देखो हमारे बेटे और बेटी ने कितना भव्य आयोजन रखा है हमारे लिए!!

अचानक आहट हुई…

 

“मम्मी पापा चलिए सभी अतिथि आ गए.. सभी आप लोगों से मिलने को बेकरार हैं ” !

 

    केक कटिंग और वरमाला के बाद मम्मी पापा से पूछना चाहेंगे हम”उनके सुखद दाम्पत्य जीवन का अहम राज… 

प्यार भरी नजरों से पत्नि की ओर देखा और

माइक थामकर बोले…….

 

” बच्चों सुखी जीवन का सबसे बड़ा और मजबूत आधार है” प्रेम “… बगैर किसी से अपेक्षा किए और मेरे तेरे को दरकिनार कर हमारा सोचकर परिवार चलाना…अगर पत्नी ने पति की इज्जत की तो पति ने भी पत्नी को सम्मान दिया! क्रोध में मुंह से निकली किसी भी बात को दिल से नहीं लगाया, मैं नहीं ” हम” को  सर्वोपरि समझा!

 

शादीशुदा जिंदगी को बरबाद करता है ” दंभ ” 

इसे अपने रिश्तों के बीच कभी आने न देना,




 आज पचास सुनहरे साल हमने अपने

 ” प्रेम ” की बदौलत ही पूरे किए हैं !

 

  मानते हैं हम बहुत पुराने जमाने के हैं, हमारी सोच, हमारे विचार पुराने हो सकते हैं पर ” प्रेम”

का रंग रुप तो हमेशा एक सा ही होता है न? इसका आकार या परिभाषा तो नहीं बदलती न? तो

हमें सबसे आगे इसे ही रखना है.. इसे ही पनपने देना है!

 

चारों ओर से तालियों की गूंज सुनाई दे रही थी, फूलों की बारिश हो रही थी, दोनों एक दूसरे को प्यार से निहार रहे थे… आंखों में खुशी के आंसू थे और होंठो पर मीठी सी मुस्कुराहट!!

 

    सुखी जीवन का मूलमंत्र मिला ” आपसी प्रेम”

 इसे हराभरा रखें, बहुत मजबूत रिश्ता बनेगा, कोई भी तूफान उसे हिला भी नहीं पाएगा!!

 

# प्रेम

प्रीति सक्सेना

इंदौर

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