प्रेम का अंत – पूजा मनोज अग्रवाल

प्रेम का अंत

अरे,, मम्मा !

“आज फिर काम वाली बाई ने छुट्टी कर ली है ,,,और स्नेहा भाभी की आदत के बारे में तो आपको पता ही है,,। जब से उनकी डिलीवरी हुई है तब से उन्हें कुछ ज़रा सी भी परेशानी हुई नहीं,,, कि फेवीकोल की मजबूत जोड़ की तरह वे बिस्तर से चिपक जाती हैं ,,,। मैं इनकी तरह कोई हाउसवाइफ तो हूं नहीं ,,,कि घर रहकर सब की सेवा – चाकरी करती रहूं । “

शुभा रसोई घर में खाना बनाते बनाते निश्चिंत होकर अपनी मां से फोन पर बातें कर रही थी,,,,।

तभी स्नेहा रसोई घर में गुड़िया के लिए दूध लेने आई । और उसकी यह सब बातें ना चाहते हुए भी स्नेहा के कानों में पड़ गई ।

शुभा की जली कटी बातें सुनकर,,, स्नेहा के दिल को बहुत ठेस पहुंची । वह तो शुभा को अपनी देवरानी नहीं बल्कि छोटी बहन समझा करती थी ,,, और वह उसके लिए क्या क्या अनाप शनाप बोल रही थी ।

शुभा की बातें सुनकर स्नेहा चुपचाप अपने कमरे में आ गई और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे ।

दोनों देवरानी – जेठानी में बहुत प्रेम था तो स्नेहा को शुभा से ऐसे व्यवहार की कतई उम्मीद ना थी । और फिर स्नेहा की डिलीवरी को अभी सिर्फ दो हफ़्ते ही तो हुए थे । यह सोच-सोच कर उसका मन खिन्न हो रहा था ।

स्नेहा और शुभा दोनों एक ही शहर से थी और दोनों बचपन की अच्छी सहेलियां थी । शुभा एक अच्छे परिवार की पढ़ी लिखी लड़की थी,, । स्नेहा उसे बहुत अच्छे से जानती थी । इसलिए उसने ही अपने देवर की शादी अपनी सहेली शुभा से करवा दी थी ।

दोनों में आपसी मेलजोल और तालमेल बहुत अच्छा था ,, तो ससुराल में दोनों की अच्छी खासी पटती थी । शुभा एक अस्पताल में नर्स थी जबकि नेहा घर रह कर पूरा घर संभाला करती थी ।

रह – रह कर पिछली सारी बातें स्नेहा के आंखों के समक्ष चलचित्र की भांति चल रही थी । पिछले सालों में जब से शुभा ब्याह कर आई थी ,,,स्नेहा ने उसके लिए क्या-क्या नहीं किया था । हर रविवार शुभा की छुट्टी वाले दिन स्नेहा उसके लिए उसकी मनपसंद खाने की चीजें बनाया करती थी ।

और शुभा ,,, वह तो सुबह सवेरे ही अपना टिफिन लेकर अस्पताल के लिए निकल जाती थी,,, और स्नेहा दिन भर घर के कामों में खटती रहती थी ।



स्नेहा ने अपने सास ,ससुर तो क्या अपने देवर रवि के भी खाने-पीने की जिम्मेदारियों से शुभा को मुक्त किया हुआ था ।

रोज – रोज बुराई करने की आदत ने शुभा के गुस्से में आग में घी डालने का काम किया । फ़ोन डिसकनेक्ट कर वह गुस्से में बड़बड़ाती हुई स्नेहा के कमरे में आई और बोली ,,, ” स्नेहा भाभी ,,,,,अब तो गुड़िया दो हफ्ते की हो गई है ,,,अब तो थोड़ा बहुत काम आप भी कर ही सकती हो ,,, और कुछ नहीं तो सिर्फ अपना ही खाना-पीना देख लिया करो । मैं नौकरी पेशा हूं,,, मैं भी अकेले कितना काम कर पाऊंगी,,,,??

स्नेहा पहले से ही शुभा की फ़ोन वाली बात से बहुत आहत थी ,,,उसकी इस बात को भी वह कड़वा सा घूंट पीकर रह गई । परंतु उसने शुभा को पलट कर कुछ जवाब नहीं दिया,,,।

उसके अगले दिन से ही स्नेहा जल्दी उठकर अपना खाना – पीना स्वयं बनाने लगी,,, । उनकी सासु मां भी उम्र दराज थी तो उनसे भी कुछ खासी मदद की उम्मीद नहीं की जा सकती थी ।

परन्तु स्नेहा ने किसी भी बात को शुभा पर जाहिर होने नही दिया था ।

अगले ही दिन स्नेहा भाभी को किचन में काम करते देख शुभा के चैन में चैन आया । वह बहुत खुश हो गई कि काम के बोझ से कुछ तो मुक्ति मिलेगी । ऐसा करते करते गुड़िया महीने भर की हो गई और धीरे-धीरे स्नेहा ने पूर्ववत रसोई घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली ।

सब कुछ पहले की तरह हो गया,, सिवाय एक चीज के । अब स्नेहा पहले की तरह शुभा का कोई काम नही करती थी । स्नेहा की यह बात शुभा को दिन – रात खाए जा रही थी ।



स्नेहा की डिलीवरी से पहले शुभा को बना बनाया टिफिन मिल जाता था । अस्पताल से वापस लौटती तो स्नेहा उसके सामने गरमा गरम खाना परोसा करती थी । परंतु डिलीवरी के बाद जब स्नेहा ने जब दोबारा काम संभाला तो उसने शुभा के लिए कुछ भी करना बंद कर दिया था । इस सब में उसके देवर रवि का कोई दोष ना था इसलिए अपने देवर के प्रति स्नेहा के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया था,,, ।

इधर शुभा को अब नौकरी के साथ-साथ घर में भी काम करना पड़ता था । खुद पर बढ़े कार्यभार के चलते वह परेशान रहने लगी थी ।आज उसने सोच लिया था कि रवि से भाभी की इस हरकत के बारे में जरूर बात करेगी ।

शाम को रवि ऑफिस से घर लौटा । डिनर करने के बाद शुभा ने रवि से कहा,,, ” देखो आजकल भाभी के स्वभाव में कितना परिवर्तन आ गया है,, जब से गुड़िया हुई है तब से घर के कई कामों से तो उन्होंने पल्ला ही झाड़ लिया है ,,, । “

घर में कलह – क्लेश से डरकर रवि इतने दिनों से चुप था । परंतु यहां तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसी कहावत सिद्ध हो रही थी । शुभा की बात सुनकर रवि गुस्से में भर कर बोला ,” बीते सालों में स्नेहा भाभी तुम्हारे लिए कितना सब करती आई ,,,परंतु तुम,,,? तुम तो इतनी अहसान फरामोश हो ,,,की उनकी डिलीवरी होने के बाद सिर्फ एक महीने भी उनकी सेवा नहीं कर पाई । “

और जानती हो ,,, तुम अपनी मां से उनकी बेकार ही झूठी बुराई करती रही ,, तुम्हारी सब बातें उन्होंने अपने कानों से सुन ली थीं ,,,कभी सोचा है ,,,,अगर ऐसा तुम्हारे साथ होता तो तुम्हे कैसा महसूस होता ,,,? और ऊपर से तुम्हारे जले कटे शब्दों ने उनके घावों पर कैसे नमक छिड़का होगा ,,,?

रवि की बातें सुनकर शुभा शर्म सार हो गई । सारी असलियत जानने के बाद भी स्नेहा भाभी ने उसे कभी कुछ उल्टा सीधा नही कहा था । अब शुभा अपनी जेठानी स्नेहा से नजर मिला पाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी,,, और तो और उसे इस बात की चिंता खा रही थी कि वह कैसे स्नेहा भाभी से अपनी गलती की माफी मांगेगी,,,?

शुभा ने अपनी नादानी के चलते अपनी बचपन की सबसे प्यारी सहेली स्नेहा का प्रेम हमेशा के लिए खो दिया था । अपनी मूर्खता भरी हरकत पर शुभा को बहुत पछतावा हो रहा था और साथ ही साथ उसे अपनी मां पर गुस्सा आ रहा था । अगर उसकी मां समझदारी से काम लेकर शुभा को उसी समय उसके गलत व्यवहार के लिए टोक दिया होता ,,,,तो शायद आज दोनों देवरानी जेठानी के रिश्ते में वही प्रेम और मिठास बनी होती ।

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली

 

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