प्रतियोगिता  – अंतरा 

रेणु जी एक डिग्री कालेज की प्रिन्सिपल हैं। आज डिग्री कालेज में प्रतियोगिता है। हर साल रेणु जी प्रतियोगिता रखती है जो कि हर बार ही कुछ अलग होती है। इस साल भी किसी को नहीं पता कि प्रतियोगिता में क्या होने वाला है। मैदान बच्चों और अध्यापकों से खचाखच भरा हुआ है।

रेणु जी ने माइक पर आकर प्रतियोगिता के प्रारम्भ की घोषणा की। मैदान के एक छोर पर दस स्कूटी खड़ी कर दी गयी।

’’आज होने वाली प्रतियोगिता में बच्चों के साथ साथ अध्यापक भी भाग ले सकते हैं। आपको ये स्कूटी चलाकर फिनिश लाइन तक ले जानी है, न तो खुद को चोट लगानी है और न ही किसी और को।’’ रेणु जी मुस्कुराते हुये माइक पर बोली।

कुछ लड़कियों ने तो मना कर दिया क्योंकि उन्हे स्कूटी चलानी ही नहीं आती थी। कुछ लड़कियों ने किसी प्रशिक्षित चालक की तरह स्कूटी फिनिश लाइन तक चुटकियों में पहुंचा दी। एक दो लड़कियाॅं नौसिखिया थी तो रास्ते में ही गिर गयी फिर भी उन्होने कोशिश की। कुछ लड़कियाॅं बड़ी सावधानी से पैर लटका कर ब्रेक मार मार कर फिनिश लाइन तक पहुंची जिसमें एक लड़की फिनिश लाइन में ब्रेक नहीं लगा पायी और सामने लगे पेड़ से जाकर टकरा गयी। अब लड़कों की बारी थी। लगभग हर लड़के को स्कूटी चलानी आती थी और वो आराम से फिनिश लाइन तक पहुंच गये। लड़को की टीम विजयी हुई और सब बहुत खुशी से नाचने लगे। 

अब दूसरी प्रतियोगिता की बारी थी। दस मेज लगा दी गयी और सब पर प्रतियोगिता का सामान रख दिया गया।

’’अब विजेता टीम सामने आ जाये। आपके सामने एक चकला और बेलन रखा है, आपने अपने घर पर देखा होगा। आपको एक आटे की लोई बनाकर उसकी रोटी बनानी है। रोटी गोल होनी चाहिये। बिना ज्यादा गंदगी किये और बिना रोटी जलाये आपको प्रतियोगिता पूरी करनी है।’’ रेणु जी माइक पर प्रतियोगिता के नियम बता रहीं थी।



लड़के प्रतियोगिता देखकर चकरा गये। कुछ लड़कों ने तो कभी रोटी बनायी ही नहीं थी लेकिन रेणु जी के कहने पर उन्होने रोटी बनाने का प्रयास किया। कुछ लड़के बहुत आश्वस्त थे और बहुत ही आराम से रोटी बना रहे थे और थोड़ी ही देर में उनकी रोटी फूल चुकी थी। किसी के हांथ आटे से ही सन गये थे और वो बेलन भी नहीं पकड़ पा रहे थे। और कुछ तरह तरह के नक्शे बना रहे थे और किसी की रोटी बिल्कुल जल गयी थी। अब लड़कियों की बारी थी। लगभग हर लड़की को रोटी बनानी आती थी और सब ने रोटी बनाकर दिखा दी। इस बार लड़कियाॅं विजयी हुई और काफी खुश थीं।

प्रतियोगिता खतम हुई और रेणु जी ने बोलना शुरू किया, ’’ आप लोग सोंच रहे होंगे कि ये कैसी प्रतियोगिता थी। आज की प्रतियोगिता जीत या हार के निर्धारण के लिये नहीं बल्कि आपका नजरिया बदलने के लिये की थी। मैं अक्सर देखती हूँ कि लोग लड़कियों के सड़क पर स्कूटी या कार चलाने को लेकर कितना मजाक बनाते हैं, उन्हे स्कूटी/कार चलाना नहीं आता, वो एक्सीडेन्ट कर देती हैं, पता नही क्यों इन्हे स्कूटी/कार चलाने देते हैं, वगैरह वगैरह।

पता है लड़कियों को स्कूटी तब दिलायी जाती है जब उन्हे बहुत जरूरत होती है और उन्हे घर से बाहर तब जाने दिया जाता है जब वास्तव में उन्हे कहीं जाना होता है। लेकिन लड़कों को मोटरसाइकिल पैर जमीन में लगने लगे हैं, ये सोंच कर दे दी जाती है। आपको तो नुक्कड़ से मैगी भी लानी होती है तो आप मोटरसाइकिल से जाते हो। आप अपना ट्रायल  पीरियड चार महीने में पूरा कर लेते हो क्योंकि आप कहाँ जा रहे हो, क्यों जा रहे हो, ऐसे सवालों का सामना नहीं करना पड़ता है और एक लड़की स्कूटी तब चलाती है, जब उसे स्कूल जाना होता है या ट्यूशन जाना होता है, या किसी जरूरी काम से बाहर जाना है। उसमें भी अगर कोई उसे लाने ले जाने वाला है तो वो भी भूल जाइये। लगभग हर लड़के के पास मोटरसाइकिल होती है और चलानी भी आती है और अगर नहीं होती है तो दोस्त की मोटरसाइकिल तो चला ही लेता है लेकिन हर लड़की के पास स्कूटी नहीं होती है। जैसे आपकी जिन्दगी में रोटी बनाना रोज का काम नहीं है वैसे ही उनकी जिन्दगी में स्कूटी चलाना रोज का काम नहीं है। वो घर सम्भालना जानती है और लड़के बाहर का काम सम्भालना जानते हैं लेकिन जरूरत पड़ने पर लड़के अगर घर का काम जैसे तैसे गन्दगी से करने पर तारीफ या सहानुभूति पा सकते हैं और जरूरत पड़ने पर अगर लड़कियाॅं बाहर का काम सम्भालती हैं तो आपको उनका सहारा बनना चाहिये न कि मजाक बनाना चाहिये। अगर लड़कों में कोई संजीव कपूर जैसा सेफ हो सकता है तो लड़कियों में कोई निहारिका यादव जैसी बाइक राइडर भी हो सकती है। बस किसी को समय देने की बात है कि वो उस काम में परफेक्ट हो पाये। उम्मीद करती हूॅं आपको प्रतियोगिता अच्छी लगी होगी।’’ अब किसी भी पक्ष को अपनी जीत या हार का कोई अफसोस नहीं था।

मौलिक

स्वरचित

अंतरा 

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