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प्रतिघात – अमित किशोर 

जगदानंद बाबू ने राजनीति में मास्टरी कर ली थी। लगातार चार बार से विधायक थें पर सांसदी का टिकट अब तक नसीब नहीं हो सका था और न ही राज्य मंत्रिमंडल में ही मंत्रीपद ले पाए थें। जब भी उनके नाम पर विचार होता, उनकी छवि उनके आड़े आ जाती। लोकप्रिय तो थें वो जनता के बीच पर पार्टी की पसंद कहीं से नहीं थे। पार्टी उन्हें वोट पुलर से ज्यादा कुछ नहीं मानती और इतने वक्त के बाद उन्हें भी अब किसी पद विशेष या प्रतिष्ठा की कोई उम्मीद नहीं थी। राजनीति में रहकर, जगदानंद बाबू ने पैसा बहुत बनाया था। भ्रष्टाचार पर यदि कोई कहानी लिखी जाती तो उसके नायक होते जगदानंद बाबू।

अपना सारा काला धन उन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर कॉलेज खोलकर सफेद कर दिया था। पत्नी को गुजरे ग्यारह बरस हो चुके थें। एक बेटा था उनका राजीव। जवान था और कॉलेज में डिग्री ले रहा था। खूबसूरत नौजवान और सबसे बड़ी बात विधायक का बेटा था वो। कॉलेज के नाम पर बहुत सारा गोरख धंधा चला लेते थे विधायक जी। शहर के आलीशान कॉलेजों में गिनती होती थी। 

पच्चीस बरस के बेटे का पिता और पिछले ग्यारह बरस से पत्निविहीन जगदानंद बाबू को राजनीति ने कई पाठ पढ़ाए। जब पद प्रतिष्ठा का मोह चला गया तब एक ही उद्देश्य बनाया ~ धन। आड़ा तिरछा जो भी रास्ता मिला, सब धन कमाने का रास्ता बना डाला। पर पेशे की तबियत अक्सर शख्सियत में दिख ही जाती है। 

राजीव के साथ ही दीपा उसके कॉलेज में पढ़ती थी। बला की खूबसूरत तो थी ही, पढ़ाई में भी अव्वल थी। माध्यम वर्गीय परिवार की बेटी, बिना बाप की बेटी। एक दीपा ही थी, जिसके प्रति राजीव आकर्षित था। मन ही मन चाहता था। दोनों अच्छे दोस्त भी थें। पिता के न रहने से घर का सारा भार दीपा पर ही था। मां की नौकरी पिता के जगह अनुकंपा पर लगी थी तो आर्थिक स्थिति भी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं थी। दीपा को पता था कि राजीव की दोस्ती उसके जीवन में बहुत काम आने वाली थी। विधायक जी का बेटा तो वैसे भी उसपर लट्टू था पर इस से ज्यादा दीपा के मन में राजीव के लिए कुछ भी , कहीं भी कुछ भी नहीं था।




जब दोनों के कॉलेज खत्म हुए तो राजीव ने दीपा से अपने प्यार का इजहार किया। दीपा ने जवाब में तो कुछ नहीं कहा पर एक दोस्त से उसकी मदद मांगी। कहा, ” देखो राजीव, मैं तुम्हारी भावनाओं की बहुत कद्र करती हूं। पर मेरी जिंदगी का मकसद शादी ब्याह या घर बसाना नहीं है। तुम तो जानते ही हो, पापा के न रहने पर मां किस कदर अपना आप को झोंककर मेरी पढ़ाई करवा रही हैं। मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता। दोस्ती के नाते कह रही हूं, अगर तुम मेरी कोई मदद कर सको तो, बड़ी मेहरबानी होगी। तुम्हारे तो इतने सारे कॉन्टैक्ट्स हैं। मेरे लिए एक नौकरी का इंतजाम करवा दो। जिंदगी भर एहसानमंद रहूंगी तुम्हारी।” राजीव ने सोचा ~ “चलो, ये बेहतर ऑप्शन है। इतना आसान नहीं होगा दीपा के लिए मेरे प्यार का जवाब देना। एक मदद के सहारे तो उससे संपर्क रख ही सकता हूं। ” 

अपने पिता से दीपा के लिए राजीव ने बात की और दीपा की नौकरी उसी कॉलेज में ऑफिस स्टाफ के रूप में लग गई। दीपा को नौकरी मिल गई और राजीव का दीपा का साथ मिल गया। जब पहली बार जगदानंद बाबू ने दीपा को देखा तो हैरत में पड़ गए। इतनी खूबसूरत लड़की को देखकर मन प्रसन्न हो गया उनका। किसी न किसी बहाने, दीपा का साथ पाने के लिए जगदानंद बाबू का मन मचल उठता। इसी तरह से अगले कई महीनों तक दीपा, राजीव और जगदानंद बाबू की जिंदगियां चलती रही।

एक दिन मौका देखकर जगदानंद बाबू ने दीपा से कहा, ” दीपा, तुम्हें तो इस जगह पर काम करना ही नहीं चाहिए। तुम इन सब चीजों के लिए नहीं बनी। मुझसे शादी कर लो। एक तुम ही हो, जो इस उमर में मुझे संभाल सकती हो। ” दीपा के लिए ये किसी झटके से कम नहीं था। वो समझ नहीं पा रही थी कि वो क्या करे। एक तरफ उसकी नौकरी थी, एक तरफ उसकी मां की न खत्म होने वाली मेहनत तो दूसरी तरह विधायक जी और उनका प्रस्ताव। राजीव का प्यार तो कहीं दूर बैठा ये सब तमाशा देख रहा था। काफी सोचा, सब कुछ सोचा और अंत में फैसला किया कि वो विधायक जी की बात मान लेगी, भले ही उसे इसके लिए अपने सबसे अजीज दोस्त के साथ धोखा ही क्यों न करना पड़े। 




आखिरकार, दीपा ने जगदानंद बाबू के साथ सात फेरे ले ही लिये। राजीव बस देखता रह गया। जिस प्यार की उम्मीद और सपने सजा रखे थे उसने, कभी सोचा ना था कि इस तरह से चकनाचूर हो जायेंगे। उसे ये समझ में ही नहीं आ रहा था कि दीपा ने उसके साथ ऐसा क्यों किया। जिंदगी में पाने का रास्ता अगर ऐसा था, तो प्यार करना बेवकूफी ही थी। सदमे में चला गया राजीव। और एक दिन, इसी सदमे में उसने खुदकुशी कर ली।

घर में पड़ी राजीव की लाश को देखकर, जगदानंद बाबू के आंसू नहीं रोक रहे थें और दीपा , दीपा के लिए एक प्रतिघात था, जो उसने मौका देखकर राजीव के साथ किया था। मन में तकलीफ और अफसोस तो बहुत था उसके पर वो कह नहीं सकती थी अब, “राजीव, आई एम सॉरी…..”

स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

#5वा_जन्मोत्सव #जन्मदिवस_विशेषांक

बेटियां जन्मोत्सव कहानी प्रतियोगिता

कहानी : तृतीय 

 अमित किशोर

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