प्रायश्चित भरा स्वार्थ – बालेश्वर गुप्ता

   एक शोर सा उठा, कोई जोर से चिल्लाया अरे ये तो कोने वाले बंगले वाले अंकल हैं, पता नही इन्हें क्या हुआ—-? 

    काफी सारे लोग उस ओर दौड़ पड़े,देखा कि शंकर अंकल सड़क पर बेहोश पड़े थे।कॉलोनी में सब उन्हें अंकल ही कहते थे।एक नौकर के साथ 500 गज के बंगले में शंकर अकेले ही रहते थे।सौम्य स्वभाव के शंकर पिछले कुछ दिनों से बहुत कम बोलते थे। हंसता हुआ चेहरा एक गंभीर  चेहरे में बदल गया था।लगता था कोई गम उन्हें अंदर ही अंदर खाये जा रहा था।उनका इकलौता बेटा विदेश में नौकरी करता था।पत्नी के स्वर्ग सिधारने के बाद ये उनके लिये दूसरा झटका था।वो चाहते थे कि उनका बेटा उनके साथ रहे पर अपने सुनहरे भविष्य की लालसा ने बेटे के पंख लगा दिये थे।उड़ गया वो और शंकर रह गये अकेले।मुन्ना को समझाया भी कि मत जाओ बेटा यहां मेरा सबकुछ तेरा ही तो है पर उसे खुद अपना भविष्य बनाने की जिद थी सो बूढ़े अकेले बाप को छोड़ चला गया सात समंदर पार।शंकर ने अपने को संभाला ,अपने को तस्सली दी कि वह जल्द ही मुन्ना की शादी कर देगा उसने एक सलोनी सी लड़की अवनी पसंद भी कर ली थी,उसके दोस्त रमेश की पुत्री थी।शंकर ने सोच लिया था शादी के बाद वो मुन्ना को यही अपने पास रोक लेगा, नही जाने देगा परदेश, कह देगा कि देख मुन्ना पहले तूने विदेश जाने की अपनी जिद पूरी कर ली,पर अब मेरी तेरे बूढ़े बाप की जिद है कि मुन्ना तू यही भारत मे रहेगा मेरे पास।यह सब सोच सोच कर शंकर रोमाँचित हो जाता और मुन्ना की अवनी से शादी के सपने में खो जाता।उसे लगता बस मुन्ना आने ही वाला है।

        सब सोचा होता तो भाग्य,ईश्वर को कौन मानता?शंकर को मुन्ना ने ही समाचार दिया पापा मैंने यहां जैनी से शादी कर ली है, पापा सब कुछ एकदम हो गया।जब इंडिया आऊंगा ना, तब वहां रिसेप्शन कर लेंगे।शंकर तो यह सुनकर ही बिखर गया,टूट गया अंदर तक।मुन्ना की शादी से ही उसने अपने जीवन की आस बांध रखी थी,आज वो भी टूट गयी।भरी पूरी दुनिया में वो आज निपट अकेला था।आँसुओ की धार बह रही थी,पर उन आंसुओ को पोछने वाला कोई नही था।

      मुन्ना के विदेश जाने के बाद शंकर ने एक लड़के रामू को नौकर रख लिया था।रामू ही शंकर का खाने बनाने से लेकर सब काम करता था।आज वो दो दिन के लिये अपने गांव गया था,सो शंकर नुक्कड़ तक चाय पीने चले गए थे कि चक्कर आने के कारण गिरकर बेहोश हो गये।कॉलोनी के काफी व्यक्ति एकत्रित हो गये थे,पर शंकर अंकल को कोई उठाकर हॉस्पिटल नही पहुँचा रहा था।तभी एक नवयुवक आया और उसने शंकर अंकल को उठवाया और एक टैक्सी से ले जाकर हॉस्पिटल में एडमिट कराया।दो दिन शंकर अंकल हॉस्पिटल में रहे  और दोनों दिन हॉस्पिटल में उस नवयुवक सनी ने ही शंकर अंकल की देखभाल की।हॉस्पिटल से शंकर अंकल को उनके बंगले तक भी सनी ने ही पहुँचाया।




        इस घटना के बाद सनी दिन  में एक दो बार शंकर अंकल के बँगले पर जा उनका हाल जरूर पूछने जाता।सनी के प्रति शंकर अंकल का भी आत्मविश्वास वापस आने लौटने लगा था।मुन्ना तो अपने पापा को लगभग भूल ही चुका था,यदाकदा ही उसका फोन आता था।शंकर अंकल अब सनी में ही मुन्ना की छवि देखने लगे थे 

       इधर कॉलोनी में खुसर पुसर शुरू हो गयी थी कि सनी ने बुढ्ढे शंकर को लुभा लिया है अब तो वो कभी भी शंकर का बँगला और सम्पत्ति हथिया ही लेगा।ये खुसुर पुसुर रामू के माध्यम से शंकर के कानों तक भी पहुंच गई।शंकर के मन मे भी आशंका घर कर गयी।एक अजनबी क्यों उसका इतना ध्यान रखता है?कोई ना कोई स्वार्थ तो उसका होगा ही।अब शंकर अंकल सनी से आशंकित रहने लगे,उनकी शांति समाप्त हो गयी थी।कुछ दिनों बाद तो उन्हें ये भी लगने लगा था कि कही सनी उनकी हत्या ही ना करवा दे।ऐसी अनेक घटनाये उन्होंने समाचारपत्रों में पढ़ी थी।वो सनी से एक अनजान भय से त्रस्त हो गए थे।एक दिन शंकर अंकल ने अपने मन को मजबूत कर सनी से ही पूछ लिया।

      सनी देखो मैंने तुम्हें बेटा, मुन्ना की जगह दी है।मैं तुम्हे खोना भी नही चाहता।मेरे मन मे पिछले दिनों से एक प्रश्न उठ रहा है, सनी मेरे पास अपनी शंका का कोई कारण नही है,मैंने तुम्हें सदैव ही प्रामाणिक पाया है,कोई लालच तक भी मैंने तुम में नही देखा है,फिर भी सोचता हूं आखिर तुम मेरा इतना कुछ किस स्वार्थवश करते हो?

      शंकर अंकल की बात सुन सनी हक्काबक्का रह गया और वहाँ से ये कहते हुए चला गया हाँ अंकल स्वार्थ तो है मेरा,बहुत भारी स्वार्थ है—-.एक झटके के साथ वो बंगले से निकल गया।शंकर अंकल कुछ भी ना समझ पाये और न ही सनी को रोक पाये।

       अगले दिन रामू ने सनी का एक पत्र शंकर अंकल को लाकर दिया।उन्होंने पत्र को खोल काँपते हाथों से पकड़ पढ़ना प्रारंभ किया।

पत्र में लिखा था—.




         बाबू जी

        आज आपका प्रश्न था कि मैं आपकी सेवा किस स्वार्थवश करता हूँ।बाबूजी मैं भी विदेश में ही जॉब करता था ,पिता बीमार हुए नही आ पाया। आया तब पिता ही स्वर्ग लोक प्रस्थान कर चुके थे।बँगला, फैक्टरी और खूब दौलत मेरे लिये छोड़ गये थे।और मैं उनके अंतिम समय मे उनके लिये कुछ भी ना कर पाया।इसी अपराधबोध और ग्लानि के वशीभूत मैंने पिता द्वारा प्रदत्त बंगले और दौलत एक ट्रस्ट बनवा कर दान कर दिया बंगले में एक वृद्धआश्रम खुलवा दिया।खुद इस कॉलोनी में एक फ्लैट में रहने लगा।उस दिन आपको सड़क पर बेहोश अवस्था मे देखा तो मुझे अपने पिता की याद आ गयी।मैंने आप मे अपने पिता की छवि देखी है।आपकी सेवा कर मैं अपने पिता की सेवा न कर पाने के पाप का प्रयाश्चित कर रहा था।मैं आपका बंगला या दौलत पर क्या निगाह रखूंगा ,इन्हें तो मैं अपने पास होते हुए भी छोड़ आया।आपकी सेवा मेरा प्राश्चित रहा है बाबूजी और ये ही मेरा बहुत बड़ा स्वार्थ था।शायद मेरी तपस्या में कोई कमी रह गयी।

     पत्र पढ़ते ही शंकर अंकल रामू को साथ ले सनी के फ्लैट की ओर तेजी से दौड़ लिये।सनी सूटकेस लिये कही जाने को तैयार था।उसे देख शंकर रुक गये सनी भी डबडबाई आंखों से उन्हें आश्चर्य पूर्वक देख रहा था।शंकर अंकल भर्राई आवाज में बोले सनी मेरे बेटे मत जाना अपने बाबूजी को छोड़ मैं अब अपने दूसरे मुन्ना को नही खो सकता,मत जाना मुन्ना।

     सनी लपक कर शंकर अंकल नही अपने बाबूजी के सीने से लग फफक पड़ा, शायद प्राश्चित पूर्ण हो गया था।

       बालेश्वर गुप्ता

                 पुणे(महाराष्ट्र)

    मौलिक एवं अप्रकाशित

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