प्रश्नचिन्ह – बालेश्वर गुप्ता

  आज केवल विक्रम को ही नही बल्कि पूरे परिवार को उस समाचार का इंतजार था,जिससे पूरे परिवार में गर्वीली हर्ष की लहर दौड़ जानी थी। आखिर विक्रम का स्नातक का परिणाम आना था।मेधावी विक्रम प्रथम ना आये ऐसा तो उसका प्रतिद्वंद्वी भी नही सोच सकता था।

        अपने हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं में वो प्रथम ही आया था।स्नातक परीक्षा में भी उसके सब प्रश्नपत्र उसकी आशानुरूप सर्वश्रेष्ठ ही गये थे। बहुत ही उत्साहित हो विक्रम अपने कॉलेज की ओर चल दिया।परिणाम की सूची देखने पर उसे एकाएक झटका सा लगा।पुनः सूची को देखा, पर परिणाम वही था। प्रथम स्थान पाने वाले विक्रम की तृतीय श्रेणी थी।ऐसे कैसे हो सकता है, सोच कर विक्रम अपना सिर पकड़ वही बैठ गया।नही नही ये हो ही नही सकता,विक्रम जोर से चिल्ला उठा।कुछ सहपाठी उसकी हालत देख प्रिंसिपल को बुला लाये।प्रिंसिपल विक्रम को अच्छी तरह जानते थे,उन्हें स्वयं यकीन नही आया।विक्रम उनके कॉलेज की शान था।

      प्रिंसिपल ने विक्रम को सांत्वना दी कि कुछ गड़बड है, तुम चिंता ना करो,मैं यूनिवर्सिटी में तुम्हारी कापियों की स्क्रूटनी कराऊंगा।लुटा पिटा विक्रम बदहवास सा घर वापस आ गया।क्या भगवान उसके साथ ऐसा अन्याय कर सकता है,उसके भविष्य का क्या होगा?

     प्रिन्सिपल साहब के प्रयासों से यूनिवर्सिटी में विक्रम की परीक्षा कापियों का पुनर्निरीक्षण हुआ। स्थिति साफ हो गयी कि किसी बाबू द्वारा विक्रम की कापियों के साथ बड़ा खेल किया था,बीच के पृष्ठों को किसी अन्य परीक्षार्थी की कापी के पृष्ठों से बदल दिया गया था।इस प्रकार अन्य विद्यार्थी को लाभ पहुँचा दिया गया था।

      चूंकि प्रकरण साफ था सो उपकुलपति द्वारा जांच बैठा दी गयी।अब उस बाबू और अनुचित लाभ पाये विधार्थी का भेद खुलना इस जांच से खुलना था।विक्रम के मन को एक विश्वास की ज्योति मिल गयी थी,उसे लगने लगा था



 कि अब उसे न्याय अवश्य ही मिल जायेगा।

      एक दिन सुबह सुबह यूनिवर्सिटी के बड़े बाबू विक्रम के घर आये और बोले भाई विक्रम तुम्हारे साथ हुए अन्याय करने वाले का पता चल गया है, दीनदयाल बाबू ने ही बेटी की शादी के लिये लालच में पैसे लेकर यह कृत्य किया था।गरीब था,पर स्वाभिमान न रख पाया और बिक गया।विक्रम जानते हो उसको भगवान ने क्या सजा दी है, कल ही कोरोना से उसकी मौत हो गयी। विक्रम यह सुनकर चौंक गया,ऐसी सजा तो उसने सपने में भी नही सोची थी,वो तो बस अपना न्याय चाहता था,जिससे उसका भविष्य बना रहे।माथा पकड़ विक्रम वही बैठ गया।

      बड़े बाबू बोल रहे थे विक्रम दीनदयाल तो चला गया,पर यह रिपोर्ट उपकुलपति को देने का मतलब होगा उसकी पेंशन और लाभ जो उसके परिवार को मिलने हैं, वो रुक जाएंगे,यानि दीनदयाल ने जो पाप किया था,उसकी सजा उसे तो मिली ही,अब उसके गरीब परिवार को भी मिलेगी।

      विक्रम बोला सर मैंने तो अपने लिये न्याय मांगा था,ये सब क्या हो गया? सर मैं नही चाहता कि उसके परिवार को कोई परेशानी हो।बड़े बाबू बोले उसके लिये तो विक्रम तुम्हे अपनी शिकायत वापस लेकर अपने तृतीय श्रेणी के परिणाम को ही स्वीकार करना पड़ेगा,तभी यह मामला समाप्त हो सकता है।खूब अच्छी तरह सोच समझ कर कल तक मेरे पास आ अपना निर्णय बता देना।

     विक्रम के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह आ कर खड़ा हो गया था।उसे मानवता और अपने साथ हुए अन्याय के प्रतिकार में से एक को चुनना था।विक्रम सोच रहा था,क्या करूँ,भगवान क्या करूँ????

#अन्याय 

         बालेश्वर गुप्ता

                  पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक एवं अप्रकाशित।

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