पिता के नाम पत्र – रीटा मक्कड़

आदरणीय पापा जी..

आप क्यों चले गए हमे छोड़ कर।इतनी जल्दी क्यों थी आपको जाने की। अभी तो बहुत कुछ करना बाकी था।अभी बहुत सी बातें थी मेरे मन मे जो अनकही ही रह गयी और वो अभी तक कह नही पायी ..कहूँ भी तो किससे.!!!

जो बातें सिर्फ और सिर्फ आपसे ही कह सकती थी वो और किसको कहती। शायद वो सब बातें मैं अपने मन मे लिए ही इस दुनिया से चली जाती लेकिन आज इस खत के जरिये अपने दिल मे दबे सभी गुबार निकाल दूंगी

शायद मेरे दिल की बातें आप तक पहुंच जाएं। जो किसी से नही कह पायी आज आपको इस खत के जरिये कह पाऊं तो मेरा मन कुछ हल्का हो जाये क्योंकि आपके जाने के बाद तो कभी खुल के रो भी नही पायी।

रोती भी तो मुझे कौन चुप कराता।किसके कंधे पर सिर रख कर रोती। आपका ही तो एक मजबूत कंधा था जो हर दम मेरा सम्बल बना रहता था रोने के लिए भी और खुशी में गले लगने के लिए भी।

माँ का कंधा तो मुझे कभी मिला ही नही न और न कभी मैंने चाहा कि मुझे मिले क्योंकि वो तो खुद ही बुरी तरह टूट गयी थी आपके जाने के बाद।उसको कौन संभालता और छोटे भाई बहन को भी तो संभालना था न।

जब तक आप थे तो कभी खुल कर आप से कुछ कह ही नही पायी पता नही वो आपका डर था या आपके लिए सम्मान।आप ने जो कहा या किया उसका प्रतिकार कभी कर ही नही पायी। पर आज बड़ा अफसोस होता है कि काश उस समय कह पाती तो आज जिंदगी कुछ और ही होती।

पापा क्यों आपने मेरी शादी इतनी छोटी उम्र में कर दी। क्यों आपने मुझे आगे पढ़ने नही दिया। आपको तो पता भी था न कि ये आपकी होनहार और पढ़ाई में होशियार बेटी है हमेशा क्लास में टॉप करती है  और फिर आपको प्रिंसिपल सर ने भी तो बोला था कि इस बेटी को खूब पढ़ाना इसकी जल्दी शादी ना करना फिर क्यों अपने रिश्तेदारों की बातों में आकर मुझे छोटी सी उम्र में शादी के बंधनों में बांध दिया।

आपको तो शायद पता चल गया था कि आपने अपनी बेटी ऐसे घर मे दे दी हैं जहां उसके ऊपर सिर्फ ज़िमेदारियाँ हैं उसकी भावनाओं को समझने वाला कोई भी नही। आपकी बेटी को अपनी पसंद और सोच से बिल्कुल उलट मिला सब कुछ।जो वो चाहती थी या सोचती थी वैसा तो कुछ था ही नही और न कभी होगा।


मुझे पता है आपने बहुत बार अपनी बेटी के छुपे हुए आंसू देख लिए थे पर पापा मैं आपके जीते जी आपको अपनी तकलीफ कभी बता ही नही पायी क्योंकि मैं आपको तकलीफ नही देना चाहती थी बस मन मे इस बात का हमेशां दुख था कि आपने शायद मेरी शादी का फैसला करने में बहुत जल्दबाजी की।

सत्ताईस साल हो गए आपको गए हुए!!

आपको शायद पता ही नही होगा इन सत्ताईस सालों में एक भी दिन ऐसा नही गया जब मैंने आपको याद नही किया होगा। हर खुशी के मौके पर और हर तकलीफ में आपकी याद में हर बार मेरी आँखें भीगी।

आपके जाने के बाद चाहे ससुर जी ने मेरे आंसू पोंछे थे और कहा था कि मैं हूं न।पर ससुर तो ससुर ही होता है ना वो कभी पापा तो नही बन सकता न।अगर ससुर पापा बन जाये तो कभी किसी लड़की की आंख में ससुराल में आकर अपने पापा को याद करके   आंसू न आएं।

एक और बात बताना चाहती हूं पापा आपको। आपने मेरे लिए जो फैसला किया या जो जीवन साथी ढूंढा मैंने उसी के साथ निभाया ।उस की हर अच्छाई हर बुराई के साथ उसको अपनाया।उसके परिवार की हर ज्यादती को चुपचाप सहती रही।कभी किसी गलत बात का भी विरोध नही किया ।

जानते हो क्यों…क्योंकि ये मेरे लिए आपने चुना था। जबकि मैं अपने मन में तो किसी और को बसा चुकी थी। पर आपके फैसले के आगे कुछ नही बोल पायी और इस बात को हमेशां के लिए अपने दिल की गहराईयों में कहीं दबा दिया  और आजतक किसी से भी कह नही पायी पर आज आपसे छुपा नही पायी।

हालांकि हमेशां से ये लगता था कि आपने सही फैसला नही  लिया फिर भीआपके हर फैसले के आगे नतमस्तक होते हुए हर रिश्ते को मर्यादापूर्वक निभाया। आपके जाने के बाद तो कुछ कहने या शिकायत करने का सवाल ही नही था कहती भी तो किससे।अगर आप होते तो अब मुझमें सहते सहते इतनी हिम्मत और जज्बा आ गया है कि आपसे अपनी तकलीफ और परेशानी खुल कर कह पाती।

पर हमेशां ये भी सोचती हूं कि आपने तो अपनी तरफ से जो किया अच्छा सोच कर ही किया। इसलिए पापा मैं अगले जन्म में भी आपही की बेटी बनना चाहती हूं और ये भी चाहती हूं कि बेटी बनकर मुझे आपही का कंधा मिले और आपसे मैं अपने दिल की हर वो बात कह सकूं जो अब तक नही कह पायी।

मौलिक एवं स्वरचित

रीटा मक्कड़

 

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