पिंजरा – बालेश्वर गुप्ता

  कितना सुख है बंधन में, रजनी गंधा—

     कहीं दूर से इस गाने की आवाज आ रही थी।रमेश ने पूरे घर की अकेले सफाई कर ली थी।बिटिया सोनिया का कमरा उसने बड़ी ही तन्मयता से साफ किया,कौन सी चीज सोनिया कहाँ रखती थी, वो सब उसने सोच सोच कर उसी की रुचिनुसार सजाया था।इतना करने पर वो निम्मी के कमरे की तरफ बढ़ा, आज उस कमरे को दो साल बाद खोलने जा रहा था।निम्मी के जाने के बाद रमेश ने उस कमरे में जाना ही बंद कर दिया था।उस कमरे में उसका दम सा घुटता था, सामने निम्मी आकर खड़ी हो जाती जिसे वो महसूस तो करता, पर पा नही सकता था।वो निम्मी तो सोनिया को सौप उसे छोड़ अनंत यात्रा पर चली गयी थी।

     25 वर्ष पूर्व एक प्रतिष्ठित कंपनी में रमेश की नयी नयी नौकरी लगी थी।हैण्डसम व्यक्तित्व, वाचाल पर सभ्य रमेश कुछ ही दिनों में अपने आफिस में अपने साथी कर्मचारियों का चहेता बन गया था।महिला हो या पुरुष सभी उससे मित्रता की चाह रखते।लंच सभी साथ करते और उस समय रमेश सभी से ऐसा घुल मिल जाता, मानो सब एक ही परिवार के सदस्य हो।

    पर निम्मी संकोची स्वभाव होने के कारण चाहते हुए भी रमेश से बात नही कर पाती, बस दूर से निहारती रहती। रमेश ने महसूस किया कि निम्मी उसे कनखियों से दूर से ही देखती रहती है, पर कभी दूसरी महिला सहकर्मियों की तरह किसी वार्तालाप में हिस्सा नही लेती।रमेश ने पहली बार निम्मी को भरपूर निगाहों से देखा।सलोना रूप सादगी भरी वेशभूषा और शालीन व्यक्तित्व से ओतप्रोत निम्मी को वो देखता ही रह गया।उसे लगा अरे वो ये ही तो है, जिसे अचेतन मन ढूंढ़ रहा था।

     अब रमेश की हरचंद कोशिश होती कि वो, वो बात करे जिससे निम्मी के चेहरे पर मुस्कान आ जाये।एक स्वछंद व्यक्तित्व मानस अनायास ही अनजाने बंधन में बंधता जा रहा था।रमेश बीमार भी होता तो भी ऑफिस अवश्य आता,निम्मी को वो औझल नही होने दे सकता था।



    आखिर एक दिन उसने निम्मी से उसका हाथ मांग ही लिया।दोनों बंध गये अटूट बंधन में।जीवन की तमाम अभिलाषाएं मानो पूरी हो गयी।समय पंख लगाए उड़ने लगा।दो साल बाद ही सोनिया रूप में एक परी भी आ गयी।इतनी खुशियां भगवान ने बिन मांगे ही दे दी थी।

       ऑफिस में ही फ़ोन की घंटी बजी,उधर से किसी ने रमेश को सूचना दी कि आपकी पत्नी का एक्सीडेंट हो गया है, आप सिविल हॉस्पिटल पहुंच जाएं।बदहवास सा रमेश पागलो की भाँति दौड़ता हुआ हॉस्पिटल पहुँचा, पर तब तक तो सब कुछ समाप्त ही हो गया था।आज रमेश के जन्मदिन पर सरप्राईज गिफ्ट लेने सोनिया को मेड के पास छोड़ बाजार गयी थी,निम्मी।

     सरप्राईज गिफ्ट ही तो था, जो बिना बोले, बिना कुछ कहे एक गुड़िया को मेरे भरोसे छोड़, बंधन मुक्त हो गयी।निर्दयी कही की,कुछ भी ना सोचा, मैं कैसे जिऊँगा?एक झटके में रमेश वर्तमान में आ गया।उसने फिर अपने उस कमरे मे अपना आशियाना नही बनाया।बस जब सोनिया बड़ी हुई तो वो ही उस कमरे की सफाई करती।

    सोनिया को रमेश ने माँ बन पाला और फिर शादी भी कर दी।दामाद U K में जॉब कर रहा था।दो वर्ष बाद सोनिया अपने पति के साथ आ रही थी, उसने अपने पति को भारत मे ही जॉब करने को मना लिया था।

      फोन पर कह रही थी, पापा मैं आ रही हूँ आपके पास।क्या एक बात मानोगे पापा?बोल बेटी, मेरी गुड़िया बोल तो सही।पापा कल मैं आपके पास आऊंगी तो क्या आप और मैं मम्मा के कमरे में पहले की तरह नहीं सो सकते?पापा बस एक बार।

    क्या जवाब देता रमेश,उसे अहसास था,निम्मी अब भी ऊपर से उसे कनखियों से देख रही थी, उसकी मौन आंखों में भी यही अभिलाषा थी।

     आज रमेश ने खुले पिंजरे में खुद ही पंछी को जाते देखा और खुश देखा, प्रसन्न देखा——–!

# बंधन 

             बालेश्वर गुप्ता

                       पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक एवम अप्रकाशित

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