• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

 पेंशन – डी अरुणा

अंकल कहां चले? धूप तेज हो रही है ?कहां गई आपकी स्कूटी?

 मोतिया बिंदु के चलते गाड़ी चलाते दिक्कत हो रही है बेटा। अगले महीने ऑपरेशन है। मैं एटीएम तक जा रहा था।

 आइए मैं आपको छोड़ देता हूं।

 पेंशन के पैसे निकालने हैं शंभू जी बोले ।

क्या करेंगे पेंशन के पैसे? आपका बेटा तो इतना कमाता है!

 हां बस, अपनी छोटी-मोटी जरूरतों के लिए। छोटी-मोटी जरूरतों के लिए किसी के सामने हाथ फैलाना तो ठीक नहीं लगता ना!

 एटीएम के पास शंभू जी को उतार लड़का चला गया ।

दुख भरी हंसी आई शंभू जी के चेहरे पर।

 आज ही बहू के इशारे पर बेटे ने पूछा पेंशन के रूपये आ गए बाबा?

 मोतिया बिंदु के चलते शाम को तो बिल्कुल गाड़ी नहीं चला पाता …कल ला दूंगा बोले बेटे से ।

मात्र 16000 मिलते थे ₹10000 बेटे बहू को थमा देते । ₹3000 अपने पास रखते ।दवा दारू छोटी मोटी अपनी जरूरतों, सप्ताह में एक बार साग सब्जी, पोते पोती की छोटी छोटी ख्वाहिशों को भी पूरा करते। ₹3000 बैंक में ही रखते कभी अस्पताल, ऑपरेशन की जरूरत पड़ जाए तो पैसे हो तो तीमारदारी ढंग से हो पाएगी। साल में एक बार बेटी भी तो आती है। खाली हाथ बेटी ,नाती नातिन को कैसे विदा करते? थोड़ी सी पेंशन  भले ऊंट के मुंह में जीरा जैसे ही क्यों ना हो!! पर रिटायर्ड व्यक्ति की लज्जा का आवरण तो है ही। किसी के टुकड़ों पर चाहे, अपने बेटे ही क्यों ना हो,निर्भर होने से अच्छा था कुछ अपनी भी भागीदारी निभाते।

 स्वाभिमान से जीवन जीने के लिए एक रिटायर्ड व्यक्ति की  पेंशन वो चादर थी जिससे अपने स्वाभिमान को जिंदा रखा जा सकता था। जीवन भर स्वाभिमान से जीने वाले को रिटायरमेंट के बाद किसी और पर निर्भर करना कितनी तकलीफ देह होती है एक भुक्त भोगी ही जान सकता है। पेंशन का महत्व पेंशन प्राप्त करने वाले को ही पता है ।

#स्वाभिमान#

डी अरुणा 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!