पहले वाली भाभी – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ क्या बात है भाभी आप कुछ दिनों से परेशान दिख रही है…. मैं आ गई हूँ इसलिए क्या?” राशि ने अपनी भाभी निशिता से उसके उतरे चेहरे को देख कर पूछा

“ ये कैसी बात कर रही है दी…मैं क्यों आपके आने से दुःखी होने लगी… आपके आने से तो इस घर में रौनक़ आ जाती है…. देखिए माँ , रितेश और आपके दोनों भतीजे भतीजी बुआ के आते है अपनी माँ तक को भूल जाते है और मुझ पर प्यार बस मेरे भांजे भांजी लुटाते है।” निशिता ने कहा और चेहरे पर हल्की मुस्कान ले आई

राशि को लग रहा था कि जब से वो आई है निशिता पहले की तरह उसके आने से खुश नहीं दिख रही … रह रह कर वो फ़ोन पर लगी रहती और बातें करते करते चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आते।

तभी निशिता के फोन की घंटी बजी वो देखते ही परेशान हो अपने कमरे की ओर चल दी…

राशि को भी पता नहीं क्या लगा वो चुपचाप उसके कमरे की ओर कदम बढ़ा दी…

कमरे में निशिता यूँ तो धीरे-धीरे ही बात कर रही थी पर कुछ बातें राशि के कानों तक भी पहुँच ही गए ।

वो ये सब सुनते अपनी माँ सुमिता जी के पास जा पहुँची जहाँ चारों बच्चे ( निशिता और राशि के दो-दो बच्चे ) सुमिता जी के साथ खेल रहे थे और सुमिता जी के चेहरे पर सबके साथ होने की ख़ुशी दिख रही थी ।

“ बच्चों तुम लोग थोड़ी देर हॉल में जाकर खेलों मुझे माँ से बात करनी है ।”कहते ही राशि बच्चों के कमरे से जाते दरवाज़ा भिड़ा दी

“ माँ…. भाभी के घर में कुछ परेशानी है क्या… वो बात करते हुए रो रही थी…. मुझे पूरी बात तो समझ नहीं आई पर वो बार बार किसी से कह रही थी…माँ की ही बेटी हूँ ना पहले अपने घर को देखना चाहिए बाद में मायके को… वो ऐसा क्यों बोल रही थी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा तुम बताओ तुम्हें तो पक्का सब पता होगा ।” राशि माँ से पूछी

“ हाँ पता है ना… उसकी माँ की तबियत ख़राब थी …कुछ दिन पहले ही दो दिन के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था अब वो घर आ गई है…..निशिता माँ को देखने जाने को कह रही थी तो मैंने मना कर दिया कि ननद साल में एक बार आती है और तुम जाने की बात कर रही हो….।” सुमिता जी लापरवाही से बोली

“ माँ तुम्हें समझ भी है तुमने क्या किया…. वो भाभी की माँ है…. माँ …. उनकी तबीयत ख़राब है वो अस्पताल रह कर आई है……और तुमने उन्हें जाने से मना कर दिया बस इस बात पर की मैं आने वाली हूँ…. ताज्जुब है माँ मना करने वाली भी एक माँ ही है… नहीं नहीं तुम तो सास हो ना… माँ थोड़ी ना हो….फिर तो मेरी सास ने भी कुछ ग़लत नहीं किया था

जब पापा की तबियत ख़राब थी और मुझे सास ने बस इसलिए आने से मना कर दिया था कि बुआ सास पहली बार मुझे देखने आ रही थी…पर मेरी क़िस्मत अच्छी थी कि मेरे पति ने मेरी मजबूरी समझी और बुआ सास से मिलवा कर पापा के पास ले आए ….

पापा का वो अंतिम समय था …. मैं अगर नहीं आ पाती और उन्हें देख नहीं पाती वो वैसे ही मुझे छोड़ कर चले जाते तो मैं ज़िन्दगी भर अपनी सास को कोसती रहती…. आज मुझे ना जाने क्यों एहसास हो रहा है… बहुएँ ससुराल में खुश क्यों नहीं रह पाती…।” कहती हुई राशि ग़ुस्से में माँ को देख कमरे से निकल कर निशिता के कमरे में गई

“ भाभी अपना सामान पैक कीजिए….अभी के अभी… चाहे तो बच्चों को भी ले जाए नहीं तो उन्हें यहीं छोड़ दे और जाकर अपनी माँ को देख आइए….आप भी ना भाभी वो माँ है आपकी और आप बस मेरी वजह से…।” कहते हुए राशि अपना सिर पकड़कर बैठ गई उसे खुद पर ग़ुस्सा भी आ रहा था और अपनी माँ की सोच पर भी

“ अरे क्या हुआ दी आप ऐसे क्यों बोल रही है?” निशिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था

“ आपकी माँ की तबियत ठीक नहीं है ना भाभी… तो बताइए आप भला कैसे खुश रह सकती है…. मुझे लग रहा था कोई बात तो है जो आप इतनी परेशान है….अभी माँ से पता चला…. आप अभी निकल जाइए पाँच घंटे का रास्ता है … जब तक आप माँ को देख नहीं लेंगी ना आप ख़ुश रहेंगी ना मुझे ख़ुशी मिलेगी ।” कहते हुए राशि भाभी का सामान पैक करवाने में मदद करने लगी

निशिता हैरान परेशान हो कभी ननद को देखती कभी कपड़े रखती …. तभी सुमिता जी की आवाज़ सुनाई दी,“ बहू रितेश ने कार भिजवा दिया है वो आता ही होगा जल्दी से सामान पैक कर निकल लो।”

निशिता सास की बात सुन दौड़ कर कमरे से बाहर निकली और बोली,“ सच में मैं जाऊँ ना माँ… आप राशि दी को लेकर… नाराज़…।” निशिता रूक रूक कर कह रही थी

“ नहीं बहू ये तो तेरी ननद ने ही मेरी आँखें खोल दी… मैं भी ना स्वार्थी हो गई थी…तू किसी की बेटी भी है और कोई तेरी माँ भी ये भूल गई थी बस याद रहा तो राशि के लिए कि वो आ रही …तुम बच्चों को छोड़कर जाना… नहीं तो वहाँ ये शैतान तुम्हें परेशान करते रहेंगे….।” सुमिता जी ने निशिता के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा

“ हाँ माँ अभी बस माँ को देख आऊँ तो तसल्ली मिलेगी नहीं तो फोन पर देख कर सुन कर उसके दर्द को बस महसूस कर रही थी पास जाकर मिलने से उसके स्पर्श से उसको महसूस कर ख़ुशी मिलेगी ।” कहते हुए निशिता सामान ले बच्चों को हिदायत देते हुए कि दादी बुआ को तंग नहीं करना कहकर निकल गई

दो दिन बाद जब वो लौट कर आई उसके चेहरे पर पहले जैसी ख़ुशी व्याप्त थी जिसे देख कर राशि ने कहा,“ ये हुई ना बात अब लग रही हो मेरी पहले वाली भाभी…पता है भाभी ये छोटी सी ही खुशी थी जो आपको माँ को देखने भर से मिल गई और जो आप नहीं जाती कुछ अनहोनी हो जाती तो ज़िन्दगी भर खुद को ना आप माफ कर पाती ना मैं और ना हमारी माँ … इसलिए दुख हो या सुख इन ख़ुशियों को नज़रअंदाज़ कभी नहीं करना चाहिए ।” राशि निशिता के गले लग बोली

“ हाँ दी सही कह रही है आप…. ज़्यादा कुछ तो नहीं था बस माँ बीमार है सुन कर ही मन व्याकुल हो उठता है क्या करें नाता ही कुछ ऐसा होता है…आपने मेरे चेहरे की खुशी के लिए जो किया वो सच में कोई और नहीं कर सकता था ।” निशिता भी ननद को गले से लगाते हुए बोली

दोस्तों हम बेटियाँ ब्याह बाद एक घर की ज़िम्मेदारी निभाते हुए अपनी ख़ुशी जो मायके जाकर मिलती है उस घर के प्रति कर्तव्य निभाना चाहते हुए भी जब नहीं निभा पाते तो आसपास सब अच्छा होते हुए भी ख़ुशी नहीं मिलती… इसलिए ख़ुशियों की तलाश हम नहीं कर पा रहे हो तो कोई अपना भी मदद कर ख़ुशी दे तो सच में दिल ख़ुश हो जाता है ।

धन्यवाद
रश्मि प्रकाश

VM

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