पहले प्यार का अहसास –  वंदना चौहान

निखिल,कितने सालों बाद तो तेरा ट्रांसफर हुआ है इस शहर में ,छोड़ इस फोन को ,चल कहीं घूमने चलते हैं यार ।

बस यार, रवि दस मिनट और।

ओके डन ,फोन को पॉकेट में रखते हुए

अरे ! यार , जब भी यह वैलेंटाइन वीक आता है मेरी हर सॉंस टिया को तलाशने लगती है।

प्रॉमिस डे पर वादा किया था उसने वैलेंटाइन डे पर मुझसे मिलने आएगी और तब से आज तक उसकी कोई खबर नहीं है।

आज मुझे रॉकी की फ़्रेंडलिस्ट में मिल गई ।अभी उसे रिक्वेस्ट सेंड की है ।

यार किसी तरह से उसका नंबर अरेंज करा ।

तू अभी तक भूला नहीं उसको ।

ओय तू नहीं समझेगा पहले प्यार की कसक ।

चल ठीक है बे।

शाम को निखिल के पास रवि का कॉल आता है।

सुन मैंने तुझे टिया का नंबर भेज दिया है व्हाट्सएप ओपन कर ।

अरे ! वाह, आई लव यू मेरे जिगरा।

फोन काट फटाफट नंबर सेव कर मैसेज भेजता है। उसकी पूरी रात करवटें बदलते हुए बीतती है । अगले दिन सुबह

व्हाट्सएप पर मैसेज करते हुए वह थोड़ा घबराया हुआ था, लड़की ने उसके व्हाट्सएप स्टेटस को देख कर थम्स अप का इशारा किया था और डीपी की भी तारीफ की थी लेकिन… इसके आगे

उसने कुछ मैसेज नहीं किया था ।

दफ्तर के लिए तैयार होते वक्त एक निगाह घड़ी की तरफ थी,  दूसरी फोन पर। लेकिन नेटवर्क गायब ।

देश को फोर-जी , फाइव-जी में ने ले जाओ तो कोई जी काम नहीं करता और ना कहीं जी लगता है ।

उसका जी उचट गया।

मेट्रो में बैठते हुए बस गुड-मॉर्निंग लिखा था उसने।

नजरें बदस्तूर मोबाइल पर जमीं रहीं । प्रतीक्षारत । पहले मैसेज डेलिवर हुआ, पहले एक टिक का निशान ,फिर दो नीली धारियां… ।



मैसेज पढ़ लिया है उसने ।

उसके मन में प्रेम की घण्टियाँ फिर से बजने लगी ।

वह बार-बार फोन को देखता पर कोई रिप्लाई नहीं उसका बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

अचानक लंच ब्रेक में मैसेज टोन बजी उसने जल्दी से मेसेज ओपन किया लिखा था- ” हू आर यू ?”

मैं वही जो कभी रोज सिटी बस में चढ़ कर आप को ढूंढता, आपके पास वाली सीट पर बैठने की कोशिश करता और नहीं मिलती तो सारा सफर आपको देख देखकर मुस्कुराते हुए खड़े होकर करता ।

ओहो!  निखिल तुम ।

“थैंक गॉड तुमने पहचान तो लिया ।” आई वांट टू मीट यू । क्यों?

बहुत सारी बातें कहनी है तुमसे ।

कब

जिस दिन मिलने का वादा किया था ।

ओके। मिलती हूँ सेंट्रल पार्क में वैलेंटाइन डे पर। 

नियत समय पर अपने अंदर के तूफान को समेटने की कोशिश करता हुआ निखिल बेसब्री से तितलियों-सी चंचल टिया से मिलने वक्त से पहले ही पहुँच गया।

नियत समय पर टिया भी आ गई । दोनों ने एक- दूसरे को स्माइल पास की।

अरे तुम तो बिल्कुल बदल गई ।

और तुम भी वैसे नहीं हो अब। अपनी पुरानी डीपी लगाकर खुद को वैसा ही मत समझो।

हँसते हुए….अब बताओ क्या कहना है आपको मुझ से ।

उस दिन भी यही कह रहे थे कि कुछ कहना है।

पता है उस दिन वादा करके भी तुम मुझसे मिलने नहीं आईं ।

मैं सारा दिन तुम्हारा इंतजार करता रहा फिर यह शहर छोड़कर मुंबई फिर न जाने कहाँ , क्या क्या……… हर जगह ,हर किसी में बस तुम्हें ही तलाशता रहा…

आज अपनी अधूरी कहानी वहीं से दोहराऊंगा।

उसने उसकी आँखों में देखा ,वह आज पहले से भी अधिक सुंदर लग रही थी उसे ।



उसने उसके मुँह पर अपनी उँगली रख दी।

दोनों चुप हो गए ।

निखिल ने टिया के हाथों को अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में झाँका।

उसने उससे नजरें चुरा लीं।

अब बताओ निखिल ।

निखिल ने अपनी कोट की जेब से एक डायरी निकाली।

उसमें से एक प्रेम-पत्र व गुलाब का फूल जो डायरी के पन्नों में रखा-रखा सूख गया था उसे दिया और कहा-  “यही उस दिन देना था।”

पत्र को पढ़कर टिया की आवाज गले में ही कहीं रुँध गई ।

अपना जवाब तो दो ।

उसने अपना पर्स खोला उसमें से कागज का एक टुकड़ा उसे पकड़ा दिया ।

उसमें लिखा था अब भूल जाओ मुझे, हमारी राहें अलग-अलग हैं। आज के बाद हम दोबारा कभी नहीं मिलेंगे। मेरी शादी हो चुकी है।

दोनों एक दूसरे के हाथों को पकड़ घंटों बैठे रहे चुपचाप ।

उसके बाद अचानक टिया उठकर चल दी।

निखिल टिया को जाते हुए देखकर चिल्लाया और उस दिन तुम्हारा क्या जवाब होता टिया?

टिया चलती जा रही थी।

तुमने तो मुझे पलट कर भी नहीं देखा मैं इतने सालों से तुम्हीं को ……

अचानक उसने देखा टिया उसकी तरफ मुड़ी बाय किया और फिर तेजी से गाड़ी में बैठकर निकल गई ।

उसकी आँखों में मोटे-मोटे आँसू देख कर उसे अपना जवाब मिल गया ।

उस नए लम्हे को समेट वह वापस लौटने के लिए मेट्रो की तरफ चल दिया।

स्वरचित

#प्रेम 

वंदना चौहान

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