पत्र लेखन – नताशा हर्ष गुरनानी

पढ़ाई के बाद नई नई नौकरी लगी हजारों सपने मन में पाले थे, फिर जब स्वाभिमान पर चोट लगी तो

इस्तीफे पर लिखी चिट्ठी

 

नमस्कार सर

मैने आपके यहां जब नौकरी के लिए आवेदन दिया था तो लगा था कि मेरे सपनो को नए पर मिल गए क्योंकि बहुत सुना था आपकी संस्था के बारे में, आपके बारे में पर जब इसमें कदम रखा तो जैसे लगा, यहां तो कदम कदम पर बड़े बड़े मगरमच्छ बैठे है मुझे खाने को।

मैं तो तालाब में नई नई आई मासूम सी मछली थी। जिसने अभी अभी तैरना सीखा था और इतना तैरना चाहती थी कि जीवन के हर सागर में अपने परों से तैर कर आगे बढ़ना और सफल होना चाहती थी।

पर आपके यहां तो बड़े बड़े मगरमच्छ मक्खन लेके बैठे है, आपको हर तरह से लगाने को और आप भी उसी मक्खन को चाटे रहते है और खुश रहते है।

पीठ पीछे सब आपकी बुराई करते है और देखा जाए तो पीठ पीछे ही वो सब सच कहते है आपके बारे में सामने तो सब झूठ कहते है।

पर मैं ये सब नहीं कर पाई मुझसे नहीं हो पाया ये मक्खन लगाने का काम।

मैं जैसी थी आपके सामने थी।

और शायद यही मेरी सबसे बड़ी गलती थी, तभी तो आपने पल पल मेरी पढ़ाई पर, मेरे सीधे से पहनावे पर, मेरे स्वाभिमान पर चोट की।



आपने कभी मेरा काम देखा ही नहीं, मेरी काम करने की ज्वाला, उमंग आप कभी देख ही नही पाए।

और हर पल आपकी कही बातों ने मुझे, मेरे स्वाभिमान तोड़ा।

और मैं अवसाद में घिरती गई, आप डराते गए मैं डरती गई।

आप मुझे गलत कहते रहे, मै खुद को गलत समझती रही।

आप मुझे हर पल कहते कि तुम्हे कुछ नहीं आता,

और मै आपकी बात मानती रही कि हां मुझे कुछ नहीं आता है।

मैं रोज रोज सफाई देते देते, माफी मांगते मांगते थक गई, टूट गई, और हताश होती गई।

पर अब और नहीं मुझे पता है मैं कभी भी आपके हिसाब से नहीं चल पाऊंगी।

कभी भी मक्खन नहीं लगा पाऊंगी और हां अब अपने स्वाभिमान से भी समझोता नहीं करूंगी।

मैं आपके यहां आने से पहले घर पर बच्चो को ट्यूशन देती थी अब फिर से वहीं करूंगी।

पर अब उन्हें किताबी ज्ञान, नैतिक ज्ञान के साथ साथ आप और आपके यहां पल रहे मगरमच्छों से लड़ने और उन्हें हराने का भी ज्ञान दूंगी।

आपको, आप और आपको मक्खन लगाने वाले मगरमच्छ मुबारक हो।

ये मछली तो चली अपने नए सफर पर।

#स्वाभिमान 

नमस्ते

नताशा हर्ष गुरनानी

भोपाल

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