पत्नी हूं तुम्हारी, सोशल सिक्योरिटी नहीं – सुषमा तिवारी

“विवान सुनो ना! मुझे एक हफ्ते के लिए मम्मी के घर जाना है तो प्लीज टिकट करवा देना| पापा की तबीयत कुछ ठीक नहीं है, वह चाहते हैं मैं एक हफ्ते तो उनके साथ गुजार लूँ”| चित्रा ने कपड़ों की तह लगाते हुए विवान से कहा जो बेखबर सा अपने मोबाइल में लगा हुआ था।

“क्या हुआ पापा को?”

“यार विवान तुम बात तो करते नहीं हो किसी अपने से दोस्तों के सिवाय| कल ही तो मैंने बताया तुम्हें कि पापा की तबीयत ठीक नहीं है| कहां तो तुम्हें उनसे पूछना चाहिए था और कहां तुम्हें पता ही नहीं है कि क्या हुआ है”| चित्रा ना चाहते हुए भी बिफर पड़ी।

“अच्छा ठीक है अब सोते वक्त तो ये सब नहीं करते हैं, कल बात कर लेंगे|” कहकर वह चैन की नींद सो गया।

अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर चित्रा ने सासु मां और विवान दोनों का नाश्ता लगाकर फिर विवान से पूछा

“मैं इसलिए कह रही थी क्योंकि यह लोंग वीकेंड की छुट्टी भी है.. मैं हो आती तो अंशु की पढ़ाई का भी नुकसान नहीं होता और… “

चित्रा की बात पूरी भी नहीं हुई कि विवान ने उसे बीच में ही टोका

“अरे यार सुबह-सुबह ही तुम शुरू हो गई!!वैसे मैं तुम्हें बताना भूल गया था लेकिन हमारे कॉलेज ग्रुप पर रीयूनियन है तो मैं कल ही गोवा के लिए निकल रहा हूं.. लोंग वीकेंड है तो मेरी 1-2 छुट्टियों में ही काम हो जाएगा.. तुम अपनी मम्मी के घर फिर कभी चले जाना क्योंकि मेरी गैर हाजरी में मां का ख्याल कौन रखेगा? तुम्हें तो पता ही है वह बीमार रहती है और अपना काम खुद से नहीं कर सकती हैं ” 

विवान की मां यह सब सुन रही थी। उन्होंने कहा

“ऐसी बात है तो मुझे अपनी दीदी के यहां छोड़ दे बेटा! कुछ दिनों के लिए और तुम लोग अपना अपना काम कर लो.. मेरी वजह से छुट्टियां क्यों खराब करनी?”



वह उदास होकर बोलीं।

विवान ने तुरंत बोला

“नहीं मां! दीदी के यहां क्यों? उन्हें भी तो छुट्टियों में और काम होता होगा.. तुम चिंता मत करो चित्रा देख लेगी|”

कह कर विवान निकल गया।

चित्रा का मन भारी हो गया। यह एक दिन का नहीं है। विवान शुरू से ही ऐसा था। शादी के वक्त जब वह उसे देखने आया था तो उसने साफ कह दिया था कि उसकी जिंदगी का एक ही मकसद है खूब घूमना फिरना, दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना, यह सुनकर उस समय तो चित्रा खुश हुई थी कि वह भी घूमेगी और साथ साथ मस्ती करेंगे पर वह भूल गई थी कि लड़की से पत्नी बनने से ही सारी आकांक्षाएं उन्हीं से लगा ली जाती है और जिम्मेदारियों का बोझ सर पर लाद दिया जाता है। समाज के सारे नियम औरतों के लिए ही होते हैं और मान सम्मान का टोकड़ा भी उन्हीं के सर पर रखा गया होता है जैसे कि जरा सा भी डगमगाए तो सम्मान गिरकर चकनाचूर हो जाएगा।

अपनी पहले ही कही गई बात का हवाला देकर विवान हर बार बच निकलता था कि मैंने तो पहले ही कहा था कोई जबरदस्ती नहीं थी। ऐसा नहीं था कि विवान चित्रा को साथ लेकर घूमने नहीं जाता था, साल में एक बार वो लोग सपरिवार हॉलीडेज के लिए जाते थे। पर उसके अलावा लगभग हर वीकेंड और महीने दो महीने में एक बार की लोंग वीकेंड पर विवान अपने दोस्तों के साथ निकल लेता था। विवान की बीमार मां का सारी जिम्मेदारी चित्रा के सर पर आ जाती थी। चित्रा उन्हें कुछ नहीं बोलती थी क्योंकि बीमारी किसी के अपने हाथ में नहीं होती है वह मजबूर थी पर चित्रा को विवान में मजबूर बना दिया था। उसे अपनी ही मां की कोई फिक्र नहीं रहती थी जैसे कि चित्रा से शादी करके अब वह आजाद हो चुका था।

मां के लिए डॉक्टर का अपॉइंटमेंट से लेकर दवाइयों और बाहर टहलाने तक का सारा जिम्मा चित्रा का ही था। वह चाहकर भी इससे मुंह नहीं मोड़ सकती थी आखिर एक सवाल और उठता की फिर मायके से क्या संस्कार मिले हैं? समाज के इन भारी भरकम नियमों का विवान फायदा उठाता था। वह जानता था चित्रा के स्वभाव को, पर इस बार चित्रा बहुत दुखी हो गई थी। उसे लगा था कि कम से कम विवान अब तो समझेगा शादी को कितने साल हो गए, उसने कभी भी जिद नहीं की पर हर बार की तरह इस बार भी उसने बिना बताए अपना प्लान कर लिया था। अगर वह मां जी के पास रुक जाता तो चित्रा भी पापा के पास हो आती।



पूरे दिन उसका मूड बिगड़ा रहा और वह रोती रही पर शाम को आने के बाद भी विवान ने उसे कुछ नहीं पूछा। वह जानता था कि ज्यादा बात करना मतलब उसका प्लान कैंसिल होना है। बाद में आकर तो वह चित्रा को मना ही लेगा। उसने अपना सामान बांधा और चुपचाप दोस्तों के साथ निकल गया।

चित्रा ने ठान ली थी अब बस! विवान ने उसे जैसी पत्नी का दर्जा ना देकर अपने लिए सामाजिक सुरक्षा कवच बना दिया ताकि कोई उसे यह ना टोके कि उसने पारिवारिक जिम्मेदारियां नहीं निभाई और घूमने फिरने में जिंदगी बिता दी। अपनी जिंदगी तो जिए जा रहा था पर बाकी उसे कोई परवाह ना रह गई थी।

चित्रा का ऐसा था कि वह चाहती तो विवान को सबक सिखा सकती थी पर वह सच में मां जी के प्रति लगाव रखती थी। उसे लगता था कि इसमें इन बिचारी का क्या दोष? शायद ईश्वर ने जानबूझकर उन्हें चित्रा से मिलाया क्योंकि वह भी जानते थे कि विवान जैसे संतान अपने पर पेरेंट्स के प्रति उसी तरह संवेदनाहीन रहने वाला है। धीरे-धीरे चित्रा की उम्मीदें भी कम होती गई कि जो मां का ना हुआ वह पत्नी का क्या होगा?

हफ्ते भर घूमने फिरने के बाद जब विवान वापस आया तो वह चौंक गया क्योंकि घर पर कोई नहीं था। उसने जानबूझकर हफ्तों तक फोन तक नहीं लगाया। वह नहीं चाहता था कि चित्रा की चिकचिक से उसका छुट्टी खराब हो जाए। विवान ने चित्रा को फोन किया पर उसने फोन नहीं उठाया। उसने मां को फोन लगाया तो मां ने भी नहीं उठाया। अनजाने आशंका के डर से वह घबरा उठा कहीं इस बीच मां को तो कुछ.. नहीं नहीं.. ऐसा होता तो चित्रा उसे तो जरूर कॉल करती। उसने घबराते हुए चित्रा के मायके फोन लगाया। वहां से चित्रा के पिताजी ने फोन उठाया

“जी पापा जी! नमस्ते! कैसी तबीयत है आपकी?”

विवान को याद आया कि चित्रा के पापा की तबीयत खराब थी।

“मैं ठीक हूं..”

“क्या चित्र वहां है?”

“क्यों आपको बता कर नहीं आई क्या बेटा?”



“नहीं ऐसी बात नहीं है.. वह मुझे पता है तो है पर वह कॉल नहीं उठा रही है.. मुझे चिंता हो रही है कि मां कहां है.. मां भी फोन नहीं उठा रही है.. मैंने दीदी को फोन किया था.. उनको भी मां के बारे में कुछ पता नहीं है.. “

तब तक फोन पर मां की आवाज आई

“मैं यही हूं विवान!! तुम्हें चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है.. मैं बहू के साथ कुछ दिन यहीं रहूंगी “

“मां तुम और चित्रा के मायके में?? लोग क्या कहेंगे मां?? और जरूरत ही क्या थी मेरे पीठ पीछे आप लोगों ने इतना बड़ा डिसीजन ले लिया “

विवान भड़क उठा।

“शायद यह निर्णय हमें बहुत पहले ले लेना चाहिए था.. मुझे तो कभी हिम्मत ही नहीं हुई तो मैं तुझे सुधार सकूं या समझा सकूं.. जिस वजह से आज चित्रा को इतनी परेशानी झेलनी पड़ी। मैंने तेरी और चित्रा के रिश्ते को कई सालों से चित्रा को ही अकेले निभाते हुए देखा है। तेरे तरफ से कोई कोशिश नहीं दिखाई दी। तूने अपने उसूल बना लिए, अपनी इच्छाएं बता दीं, अपना एक घेरा बना लिया पर कभी चित्रा के बारे में जानने की कोशिश नहीं की? उस बेचारी का कसूर इतना ही था कि सब कुछ जानने के बाद भी उसने निभाने की सोची। अपना होकर भी तूने कभी मेरा हाल ना लिया और पराई कहलाने वाली होकर भी उसने अपने बच्चे से ज्यादा मेरी देखभाल की है तो इस बार मुझे उसी का साथ देना था। इस सामाजिक दुहाई के चलते तू हर बार उसे बीच राह में यूँ ही छोड़ जाता है। मैं उसी समाज को दिखाना चाहती हूं कि हां मेरा बेटा नहीं मेरी बहू मेरा ख्याल रखती है। वह तुम्हारी पत्नी है कोई सोशल सिक्योरिटी नहीं है जिसे तुम इस्तेमाल करके आराम से आजाद घूमते फिरते हो। तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा। मुझे हर पल यही लगता है कि मैंने तुम्हारी शादी करके गलती कर दी। किसी और की जिंदगी खराब कर दी। अपने हिसाब से जीना कुछ गलत नहीं है पर अगर आप एक रिश्ते में है तो दोनों को निभाना पड़ता है “

“मां प्लीज मैं बहुत शर्मिंदा हूं.. आप चित्रा को फोन दो “



चित्रा ने पहले तो मना किया फिर फोन ले लिया

“हां बोलो? वैसे मैं नहीं आना चाहती थी पर मां ने ही जिद की और पापा की तबीयत सचमुच खराब थी.. विवान मैं सोच रही हूं कि मैं अब वापस नहीं आऊँ.. मैं अपनी कोई व्यवस्था देख लूँगी.. तुम्हारी आजादी में और खलल नहीं डालेंगे| शायद तुम्हारी जिंदगी में मेरी कोई जरूरत नहीं है और ना ही मां की| मां को मैं अपने साथ ही रखूंगी, तुम अब आजाद हो तुम्हारी सोशल और पर्सनल लाइफ तुम्हें मुबारक हो| हां ये सोशल सिक्योरिटी अब तुम्हें नहीं मिलेगी, मैं अपने बच्चे और मां दोनों का ख्याल रख लूंगी”|

चित्रा ने फोन रख दिया।

विवान हारा हुआ सा खड़ा रहा। उसे अब महसूस हो रहा था उसने क्या खो दिया।

दोस्तों मैंने इस घटना को अधूरा छोड़ दिया क्योंकि कई बार परिस्थितियां अलग अलग होती हैं, हर किसी की सोच और उनका निजी फैसला अलग अलग हो सकता है। मैं ना तो यहां हालात से घबरा कर घर छोड़ने को सपोर्ट कर रही हूं और ना ही किसी एक की गलती को आँखों पर पट्टी बांधे हुए सहने का समर्थन करती हूं। अगर सिर्फ बात चीत से बात ना बने तो नाराजगी और मनुहार वहीं होते है जहां प्रेम होता है। रिश्तों में अहंकार का त्याग होना चाहिए और पूर्ण समर्पण भाव होना चाहिए। विवाह पश्चात अपने सपने को जीना बहुत अच्छा है पर साथ साथ अपने साथी की भावनाओ का भी ख्याल रखना चाहिए। सामाजिक जिम्मेदारियां किसी एक पर नहीं लादी जा सकती है। उपरोक्त घटना में सास बहू का समर्थन करती है पर कई बार नहीं भी करेगी.. मायके वाले नहीं समर्थन करेंगे या दुनिया वाले समझाएंगे कि क्या हुआ आदमी है, कमाता है क्या इतना काफी नहीं? उन हालातों में वह अकेली पड़ जाएगी। उपाय यही है कि लंबी देरी करने और घाव को नासूर बनने से पहले ही खुल कर बात करे और रिश्तों में कड़वाहट ना घुलने दें। जहां प्रेम है वहाँ थोड़ा त्याग और समर्पण तो चाहिए होगा ना? रिश्तों में इनवेस्ट कीजिए खुशियों का रिटर्न प्राप्त करिए। खुश रहिये खुश रखिए।

ये मेरे निजी विचार है आपके सुझाव आमंत्रित है।

©सुषमा तिवारी

 

 

 

 

 

 

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