“मां, पिताजी, दादी कहां है? कल रात को तो दादी मेरे कमरे में मेरे पास ही सोए थी फिर आज अचानक कहां चले गए?” दसवीं कक्षा में पढ़ती मासूम रवीना अपने पिता और मां से हर दिन एक ही सवाल पूछती, “दादी कहां है?”
रवीना की मां शिखा अपने बेटी का रोज एक ही सवाल सुन वह आग बबूला हो जाती है और,
“अरे तेरे मां बाबा नहीं दिख रहे तुझे? दादी ही क्यों चाहिए? अभी दादी से अलग हुए एक हफ्ता भी नहीं हुआ इस लड़की ने रोज रोज एक ही सवाल पूछ कर दिमाग खराब कर रखा है”
शिखा रवीना को डांट लगा देती है। और उसके दादी के बात को फेरते हुए उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कह देती है क्योंकि वह उसकी दादी मंगला देवी का सच वहां रवीना के सामने नहीं आने देना चाहती थी।
उधर रवीना दादी मंगला देवी को इतनी आसानी से भूलने वाली नहीं थी… क्योंकि रवीना के माता-पिता दोनों ही नौकरी करते थे। तो रवीना के बाल संवारने से लेकर स्कूल के आने के बाद उसके खाने-पीने का ध्यान रखना सब रवीना की दादी मंगला देवी ही करती थी। और रात को मंगला देवी अपनी पोती रवीना के साथ उसे कहानी सुना उसके साथ ही सोती थी। शिखा और अजय पैसे कमाने के चक्कर में बेटी पर ध्यान ही नहीं दे पाते थे जिस वजह से रवीना कई बार घर पर अकेलापन महसूस करती थी। पर जब मंगला देवी थी तब रवीना का अकेलापन दूर हो चुका था। वह अपनी दादी के बहुत करीब थी।
पर अचानक से एक सुबह रवीना की आंख खुलती है तो वह अपने दादी को घर में ना पाकर चिंतित हो कर घबरा जाती है। और तब से लेकर एक महीना बीत जाता है। लेकिन उसके मन में एक ही सवाल था जिसका उसे जवाब नहीं मिला..
“दादी कब आएंगी? दादी कहां है?”
और हर बार माता पिता दोनों ही जवाब देना टाल देते थे। या फिर डांट लगा कर चुप करा देते थे।
रवीना भी रोती हुई अपने कमरे में चली जाती, और अपने दसवीं कक्षा की परीक्षा सर पर होने के कारण पढ़ाई करने बैठ जाती है।
एक दिन शिखा तंग आकर अपने पति अजय से कहती है, “अरे अब हमारी रवीना को क्या कहकर दिलासा दे… कि उसकी दादी कहां है? मैं तो तंग आ गई हूं उसके रोज-रोज के एक ही सवाल से आप ही अब उसे संभाले। पता नहीं कौन सी घुट्टी घोलकर तुम्हारी मां ने इसे पिला दी है”
“अरे तुम चिंता मत करो बच्ची है गुस्सा करोगी तो और ज्यादा ज़िद करेगी और तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं है! हम उसे कुछ बता नहीं सकते, तुम अपना दिमाग शांत रखा करो…” रवीना के पिता अपनी पत्नी शिखा से बोले।
लेकिन मासूम रवीना अब घर में अपनी दादी के बारे में पूछना ही बंध कर देती है।
फिर कुछ दिन गुजरते है, और अब रवीना स्कूल से कॉलेज की पढ़ाई करने दूसरे शहर जाती है। उसी कॉलेज के दौरान पहले वर्ष में एक वार्षिक शिबीर का आयोजन किया जाता है। जिसमें सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का दौरा करने अलग-अलग जगह विद्यार्थियों को ले जाने का प्रोग्राम रखा होता है।
और उस कैंप का मुख्य उद्देश्य यह था की बढ़ती हुई युवा पीढ़ी को यह सिखा ना था कि, युवा वस्था ही एक ऐसा समय होता है जहां से वे अपना जीवन एक सही दिशा की और ले जा सके।
रवीना अपने माता-पिता से इसके बारे में फोन पर बात करती है, तो अजय और शिखा भी तुरंत हामी भरते है। समय के साथ रवीना अपनी दादी को भुला चुकी है ऐसा उसके माता पिता को लगता था पर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।
रवीना अपने कैंप जाने की तैयारियां शुरु कर देती है। और अगले दिन ही निकल जाती है। जहां उसे सबसे पहले अनाथ आश्रम के बच्चों को पढ़ाना होता है। और दूसरे दिन रवीना के साथ बाकी विद्यार्थियों को वृद्धाश्रम ले जाया जाता है। रवीना वहां पहुंचकर खुद को रोक नहीं पाती… उसकी दादी के साथ वाली सारी यादें ताज़ा हो जाती है। बहुत सारे बुजुर्ग दादीयो को देख वह अपनी दादी को याद कर के कोने में बैठ कर रोने लगती है। उसे उन बुजुर्गों में उसे अपनी दादी मंगला देवी नजर आ रही थी। और तभी पीछे से आवाज आती है,
“बेटा क्यों रो रही है? क्या हुआ तुझे?”
रवीना पीछे मुड़कर देखती है, और वह और कोई नहीं बल्कि उसकी दादी मंगला देवी ही थी। रवीना को अपनी दादी से वहां मिल पाने की कोई उम्मीद नहीं थी। पर कहते है ना… नियति का खेल ही निराला है।
एक दूसरे के गले मिल दोनों खूब रो लेते है। और फिर रवीना पूछती है,
“दादी आप यहां कैसे आएं? मैंने आपको बहुत याद किया! मां पिताजी से भी पूछा पर उन्होंने कभी मुझे ठीक से जवाब नहीं दिया, उल्टा मुझे डांट दिया करते”
मंगला देवी भी आंखों में आंसू ले अपनी पोती रवीना को सारी कहानी बताते हैं, कि कैसे तीन साल पहले उनके खुद के बेटे अजय और बहू शिखा ने उनको एक सुबह मंदिर के नाम बाहर ले आकर यहां छोड़ गए थे, और कहा, “अब से आपका यही आपका घर है”
यह सुन रवीना को अपने मां और पिता के करतूतों पर शर्म आती है। वह अपने शिक्षकों की मदद से दादी को अपने साथ घर ले आती है।
शिखा अपनी दादी को लेकर घर लौटती ही है कि, अजय और शिखा दोनों का सर आखिर शर्म से झुक जाता है। वह मंगला देवी को अपनी बेटी रवीना के साथ देख दंग रह जाते है, जिनको वह बेकार और एक बोझ समझकर तीन साल अगले एक वृद्धाश्रम छोड़ आए थे। वे भूल गए थे की पतझड़ का मौसम हर साल आना ही है। आज किसी और की तो कल उनकी बारी भी आएगी…
रवीना और मंगला देवी को तो उनके किस्मत और नियति ने आखिर एकदूसरे से मिला ही दिया था। पर कितनी शर्मनाक बात है!! अक्सर देखा गया है की ऐसे अमीर लोगों के माता पिता ही अपना बुढ़ापा ऐसे अकेलेपन में अपना जीवन वृद्धाश्रम में गुजारते है। वो बस इसी आस में होते है की कास कभी उनको अपना परिवार फिर से मिल जाएं।
#शिक्षाप्रद कहानी
#नियति
स्वरचित: मनीषा देबनाथ