पतिदेव..हर काम पूजा है !! – मीनू झा

सोमा…सोमा… कहां हो भाई इतनी देर से बुला रहा हूं–शेखर ने आवाज लगाई।

हां बोलिए ना कुछ काम बांकी पड़ा था वहीं निपटा रही थी

किसके फटे को सिल रही थी??

क्या आप भी ना??और अगर ऐसा कर भी रही थी तो आपको तो खुश होना चाहिए कि भगवान के बाद आपकी पत्नी को इतनी शक्ति मिली है कि वो किसी के फटे की मरम्मत कर सके–सोमा हंसकर बोली।

अरे यार अपनी नहीं तो कम से कम मेरी इज्जत का तो ख्याल करो…लोग क्या कहते होंगे कि ऑफिसर की पत्नी दूसरों के फटे कपड़ो की सिलाई और तुरपाई करती रहती है.. मुझे ही कोसते होंगे कि पति पैसा नहीं देता होगा हाथ में तभी तो ये सब करती है

कोई कुछ नहीं बोलता है…सब आपके मन की उपज है और अगर बोलता भी होगा तो मेरे मुंह पर बोले फिर मैं जवाब दूंगी उसे..काम कोई भी छोटा या बड़ा नही होता..खैर ये सब छोड़िये आपने मुझे क्यों बुलाया ये तो बताइए–सोमा ने पूछा

मैं ये कह रहा था कि विशाल का फोन आया था अगले मंगलवार को मां वापस आ रही है,विशाल वहां बिठा देगा मां को ट्रेन में मै यहां जाकर उतार लूंगा –शेखर ने बताया

वाह..मांजी का मन भर गया लगता है छोटे बेटे बहू से…अच्छा है मुझे भी बड़ा खालीपन लगता था उनके बिना..उनकी इतने दिन से सुनें बिना मेरा खाना भी ठीक से हजम नहीं हो रहा,बेटे के सुर में सुर मिलाकर मुझे बोलेंगी तब इस घर की रौनक लौटेगी–सोमा मुस्कुराई।

हां हम मां बेटे तो बने ही है तुम्हें प्रताड़ित करने तुम अबला नारी सब बर्दाश्त करती जाती हो बस–शेखर खिसियाकर बोला।



दरअसल सोमा के बच्चे बड़े हो चुके थे तो खाली समय में वो लोगों के फटे कपड़े जिनकी सिलाई या तुरपन खराब हो जाती वो करती थी,साथ ही वो रफू बड़ा अच्छा करती थी..शादी से पहले उसने ये सब सीखा था जिसका वो अभी उपयोग कर रही थी.. बहुत ही कम पैसे में वो ये सब काम कर देती थी जिससे उसके पास अच्छी खासी भीड़ रहती थी…वो सारा काम निपटाकर दोपहर में दो या तीन घंटे के समय में ही ये सब काम करती थी ताकि घर पति और बच्चों को कोई दिक्कत ना हो..पर पति शेखर और सास लीला हमेशा इस चीज को लेकर मन में चलाते रहते कि लोग क्या कहते होंगे,पति इतना अच्छा कमाता है… सब सुख सुविधा होते हुए भी पत्नी सिलाई का काम करती है…पर सोमा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था..वो अपना काम करती और खुब खुश रहती।

लीला वापस आ गई थी पर शेखर और सोमा पा रहे थे कि अब लीला की सोमा को लेकर टोका टोकी लगभग बंद हो गई थी..।मानों आत्मज्ञान सा हो गया हो।

मां…क्या बात है लौटी हो तो बड़ी चुप चुप सी रहने लगी हो.. विशाल के घर सब ठीक तो था ना..मेरा मतलब तुम्हें कोई दिक्कत या परेशानी..रिचा का स्वभाव तो अच्छा है –शेखर ने  अकेले में मां से पूछ ही लिया।

कोई दिक्कत परेशानी नहीं थी बेटा.. बल्कि विशाल और रिचा तो कह रहे थे कि और रूक जाओ…पर मैंने ही जिद ठान दी कि मुझे जाना है…क्या करती बेटा मेरा मन ही नहीं लगता था वहां –लीला जी बोली

देखो ना…इधर सोमा को भी मैं समझा समझाकर हार गया हूं पर वो है कि ये सिलाई वाला काम छोड़ने को तैयार नहीं है…ऐसे तो मैं रहता ही नहीं दोपहर को घर पर लेकिन जिस दिन रहूं पूरी दोपहर रेला लगा रहता है और रस मंजरी कार्यक्रम इन औरतो का जारी रहता है…इतना भी नहीं सोचती कि तुम्हारी नींद खराब होगी..

शेखर एक बात कहूं बेटा…सोमा बहू जो करती है करने दे…वो कोई ग़लत काम तो नहीं कर रही ना!



मां तुम भी…तुम्हे भी उसने पट्टी पढ़ा दी क्या??

नहीं शेखर खुद पर बीती तो समझ में आया…तुम्हे पता है विशाल के घर में सुबह से शाम तक बस एक कामवाली के दर्शन होते थे..सोचती उसी से दो चार बातें कर लूं..मुई वो भी रोबोट थी…और एक घर में काम ना कर लेती जो मुझे समय देती…दिन भर कितना टीवी देखती फोन देखती… कहीं ना जाना ना आना…तुम्हे पता है रिचा को कुछ दिनों से डिप्रेशन हो गया है… मैंने पूछा विशाल से तो वो बता रहा था कि अकेले रहने,सौचते रहने और किसी से ना मिलने जुलने की वजह से ये बीमारी होती है…एक बच्चा था उसे भी बोर्डिंग भेज दिया है..अकेली बैठी रहती है फोन लेकर…और कोई आया या कहीं गई तो बस औपचारिकता निभाने को मुस्कुराना…ना खुल के हंसना ना बोलना ना मिलना ना जुलना…पागल ना हो जाए कोई… मेरी तो खुद पागलों वाली हालत हो गई थी।

यहां कम से कम दिन भर कोई ना कोई आता जाता रहता तो है और सबको पता है कि इतने कम पैसे कोई पैसा कमाने के लिए नहीं लेता जितने सोमा बहू लेती है…मैनर में रहने और निभाने के चक्कर में आदमी बीमार पड़ जाए उससे तो अच्छा है ना लोग आते जाते रहें,मिलने जुलने हंसने खेलने का कार्यक्रम चलता रहे…अरे सिलाई का काम तो उसका नाम भर का है… ज्यादा तो बातें ही होती रहती है…और सच कहूं तो अब तक मैं चिढ़ती थी पर अब मुझे भी एहसास हो गया है कि ये सब जरूरी है इंसान की मानसिक हालत को सही रखने के लिए —

इस तरह तो मैंने सोचा ही नहीं था मां…और रिचा की तबीयत सच में इतनी खराब है?

मेरी बात हुई है रिचा से और विशाल भैया से…अगले हफ्ते वो लोग आ रहे हैं –कमरे में चाय की ट्रे लेकर घुसती हुई सोमा ने कहा।



पर तुम्हें कैसे पता चला बहू–लीला ने पूछा

आप इतनी उदास थी तो लगा कोई ना कोई तो बात है,रिचा रिजर्व स्वभाव की जरूरत है पर दिल की बुरी नहीं है जो आपको कोई कष्ट दे…तो मैंने विशाल भैया को फ़ोन लगाया,उनसे सारी बात हुई तो पता चला…हमलोग भी तो छह महीने से नहीं मिले हैं…मैने विशाल भैया को कहा है कि आकर रिचा को यहां पंद्रह दिन के लिए छोड़ जाएं..वो बिल्कुल ठीक हो जाएगी–सोमा ने खुलासा किया।

सोमा…यार माफ़ कर दो… मुझे लगता था कि सिलाई विलाई जैसा छोटा काम करके तुम मेरा तिरस्कार कर रही हो…पर इसके पीछे की बातें कहां समझ पाया था मैं कि इस बहाने तुम्हारे सब से मिलते जुलते रहने से तुम्हारा मन भी लगा रहता है और मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है

और पति देव आप अपना तिरस्कार समझकर मेरे भी इस काम का तिरस्कार कर रहे थे, जबकि किसी भी काम को छोटा नहीं समझना चाहिए जो इज्जत से किया जाए वो हर काम “पूजा” है…कितनों का घर चलता है इस काम की बदौलत,कितनों को रोटी मिलती है,… मैं इसे जरूर इंटरटेनमेंट के लिए करती हूं पर इससे मिलने वाली छोटी सी रकम भी मेरे अंदर खुद पर  विश्वास का संचार करती है , मुझे अपने आप में खुशी महसूस कराती है,जब मेरे काम की तारीफ कोई कर देता है तो अपने आप पर  प्यार और बढ़ आता है मेरा और इसीलिए मैं इसकी भरपूर इज्जत भी करती हूं…—सोमा के मुंह पर आत्मविश्वास और गर्व का मिश्रित भाव था।

 

#तिरस्कार 

मीनू झा 

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