पत्थर दिल  – अनु अग्रवाल

“क्या सच में आपको बिल्कुल पता नहीं चला…..महिमा किससे और क्या बातें करती थी ? पड़ोस की रमा देवी की आंखों से मानो अंगारे बरस रहे थे।

बात आज से लगभग 25 – 30 साल पहले की है जब हर किसी के घर पर फ़ोन नहीं हुआ करते थे। यहाँ भी पूरे मोहल्ले में बस कमलेश शर्मा (जिनके पति पेशे से डॉक्टर थे) उनके यहाँ ही लैंड लाइन फ़ोन था।

रौनक(महिमा )….. रमा जी की एकलौती औलाद…. मानो जैसे उनकी और धर्मपाल जी की आँखों का तारा…..

आज सुबह एक चिट्ठी छोड़ के गयी….

” मम्मी , बाबूजी आपको याद है किरण दीदी (ममेरी बहन)…उन्हें किसी से प्यार हुआ था और जैसे ही ये बात मामाजी को पता चली… रातों रात उनकी शादी करवा दी गयी जैसे कोई अन्तिम संस्कार करता है। हाँ……वो अन्तिम संस्कार ही था। फर्क सिर्फ इतना था अन्तिम संस्कार लाश का किया जाता है लेकिन वो उसके बाद ज़िंदा लाश बन गयीं। सालों हो गए फिर कभी मैंने किरण दीदी को हँसते हुए नहीं देखा। कभी बोलते हुए भी नहीं देखा। देखी तो बस एक टीस उनकी आँखों में………… मम्मी मुझे दूसरी किरण दीदी नहीं बनना। चन्द्रू( चन्द्र शेखर) मेरे ही कॉलेज में मुझसे दो साल सीनियर हैं। बातों का सिलसिला कब प्यार में बदल गया पता ही नहीं चला। शर्मा आंटी के यहाँ फ़ोन पर हमारी बात होती थी।बिल्कुल सरल स्वभाव, प्रभावी व्यक्तित्व और सबसे बड़ी बात मुझे समझते हैं। वो कतई राजी नहीं थे इस तरह चोरी छुपे शादी करने में। वो तो पूरे शान से आप दोनों के आशीर्वाद से मुझे ब्याह के ले जाना चाहते थे लेकिन मैंने ही अपनी कसम देकर उन्हें यहाँ आने से रोक दिया।

मम्मी बाबूजी  हो सके तो अपनी रौनक को माफ कर देना।”

अब जिसकी बेटी ने ही इतना बड़ा धोखा दे दिया हो…. उस पर भला क्या बीतेगी। गुस्सा होना लाजमी था। और जब हम किसी से जान से ज्यादा प्यार करते हैं तो धोखा बर्दाश्त करना नामुमकिन सा हो जाता है।

इसीलिए कमलेश जी ने भी पलट कर कोई जवाब नहीं दिया।समय गुजरता गया…..लेकिन समय के साथ रमा देवी का गुस्सा कम न हुआ बल्कि बढ़ता ही गया।

उधर महिमा खुश तो थी लेकिन माँ की याद तो आती थी। आखिर माँ की जगह कोई नहीं ले सकता…..

चन्द्रू भी इससे अनभिज्ञ न था।

फिर एक दिन…….




महिमा ने अपने गर्भवती होने की खबर सुनाई।

चन्द्रू की तो जैसे दुनिया ही बदल गयी। पागलों के जैसे खुश हुआ। पहले से ज्यादा ख्याल रखने लगा अपनी महिमा का।

उसे उदास देखकर अक्सर कहता….” चल…. तेरे घर चलते हैं ….थोड़ा गुस्सा ही तो करेंगे…आखिर हमसे बड़े हैं। तुझे तेरा पीहर फिर से मिल जायेगा और जब उन्हें पता चलेगा कि वो नाना नानी बनने वाले हैं तो देखना सारा गुस्सा छू-मन्तर हो जाएगा।

लेकिन महिमा जानती थी उसकी माँ को। वो नहीं मानने वाली थीं हाँ…..अपने बाबूजी से उसने बात करने की कोशिश की लेकिन बस नंबर डायल करके ही रह जाती….

हंसी खुशी दिन निकल रहे थे कि जैसे किसी की नज़र लग गयी। आठवें महीने में अचानक से ब्लीडिंग शुरू हो गयी। पड़ोसियों की मदद से चन्द्रू अस्पताल ले के भागा।

डॉक्टर – आपकी पत्नी की हालत बहुत नाज़ुक है।अभी ऑपेरशन करना होगा।

डॉक्टर साहिबा कुछ भी करके बस मेरी महिमा को बचा लो…. चन्द्रू गिड़गिड़ाया।

थोड़ी देर बाद…………

बच्चे के रोने की आवाज़……..

नर्स- आपकी पत्नी ने खूबसूरत सी बच्ची को जन्म दिया है।पर………..

चन्द्रू (घबराकर)-  पर….पर क्या डॉक्टर….मेरी महिमा तो ठीक है न?

नर्स- उनका खून बहुत बह चुका है। अगर समय रहते खून का इंतजाम नहीं हुआ तो हम उन्हें बचा नहीं पाएंगे।

मेरे खून का एक-एक कतरा ले लो लेकिन मेरी महिमा को बचा लो…..चन्द्रू( रोते हुए)

नर्स- इनका ब्लड ग्रुप मिलना इतना आसान नहीं है। हो सकता है इनके भाई-बहन या माँ- बाप से मेल खा जाए।

चन्द्रू ने बिना समय बर्बाद किये शर्मा जी के यहाँ फ़ोन लगा दिया……..और धर्मपाल जी (बाबूजी) से बात करके सारा मामला कह सुनाया।

चन्द्रू की आवाज़ में दर्द था।

वैसे धर्मपाल जी पहले ही अपनी बिटिया को माफ कर चुके थे। लेकिन वो जानते थे…. कि उनकी पत्नी इतनी आसानी से महिमा के दिये धोखे को नहीं भूल सकतीं। लेकिन महिमा को इस वक्त सिर्फ रमा जी ही बचा सकती थीं क्योंकि दोनों का ब्लड ग्रुप एक ही था। इसीलिए बिना कुछ बताये धर्मपाल जी अपनी पत्नी को अस्पताल ले गए।

उनके पूछने पर बस इतना बताया कि उनके एक मित्र की बेटी को खून की जरूरत है।

खून देने के बाद जब रमा जी ने मरीज से मिलने की इच्छा जतायी तो धर्मपाल जी ये कह के टाल गए कि वो अभी ऑपेरशन थिएटर में ही है।




रमा जी- अपने जमाई से अनभिज्ञ अपने पति से कहती हैं….”देखो…शायद इसका कोई करीबी मर गया है कैसे रो रहा है….बेचारा….

धर्मपाल जी(घबराकर)- नहीं… नहीं…. शुभ शुभ बोलो….

नवजात बच्ची के रोने की आवाज़ से रमा जी उसकी तरफ खिंची चली जाती हैं। देखकर उसे कहती हैं…….

देखो जी…..अपनी महिमा की छवि लग रही है……..

पूरे दो साल बाद उनके मुँह से आज महिमा का नाम निकला था।

धर्मपाल जी अब खुद को संभाल नहीं पाए और उनकी आँखों से भी झर- झर आँसू बह निकले।

रमा जी भौंचक्की सी उन्हें देख ही रहीं थीं कि मेडिकल स्टाफ की टीम महिमा को ऑपेरशन थिएटर से कमरे में ले आयी।

अपनी बच्ची की शक्ल देखकर दो साल से पत्थर हुआ पड़ा रमा जी का कलेजा भी मोम की भाँति पिघल गया। अधखुली आँखों से महिमा ने अपनी माँ को देखा और बेहोशी की हालत में ही अपने दोनों हाथों को जोड़कर माफी माँगने की कोशिश करने लगी।

रमा जी ने अपनी बच्ची को गले से लगा लिया।

चन्द्रू ( भावुक होकर) – सच में …..एक माँ की जगह कोई नहीं ले सकता। हमारे पास सब कुछ था बस आप दोनों नहीं थे। आज हमारा परिवार पूरा हो गया।

मम्मी……. क्या मुझ अनाथ को भी ऐसे ही एक बार गले से लगा लोगी।

रमा जी का कलेजा फट पड़ा और उन्होंने बिना देर किए चन्द्रू को भी गले से लगा लिया। उसे भी आज अपनी माँ के स्पर्श जैसा ही अहसास हुआ। रमा जी ने आज चन्द्रू की माँ की जगह ले ली थी।

धर्मपाल जी अभी तक आंसुओं में ही भीगे हुए थे। दूर से ही अपने बच्चों को आशीर्वाद दे रहे थे। आदमी इतनी आसानी से अपने आँसू कहां दिखाते हैं……खैर अंत भला तो सब भला।

दोस्तों……. कभी- कभी हालात ऐसे हो जाते हैं कि बच्चे गलत कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं। लेकिन अपने जन्मदाता को वो भी याद तो बहुत करते ही हैं।

तो कैसी लगी आपको मेरी ये माँ बेटी के पुनर्मिलन की ये  सच्ची कहानी। कमेंट में बताइएगा जरूर और ये भी बताइएगा कि “क्या रमा जी ने दोनों को अपनाकर सही किया या नहीं”?….

आपकी ब्लॉगर दोस्त

अनु अग्रवाल

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