पश्चाताप – विनय कुमार मिश्रा

मैं लेटा हुआ था कि तभी आहट सुन आँख खुल गई। लेटे लेटे अधखुली आंखों से देखा तो घर की सहायिका राधा की पांच साल की बिटिया थी। राधा अक्सर इसे लेकर ही आती है। उसका कोई है नहीं, शायद इसलिए। ये चुपचाप अपनी माँ के ही इर्द गिर्द रहती है। इधर कुछ दिनों से मैं ऑफिस का काम घर से ही कर रहा हूँ। तबीयत भी थोड़ी नासाज है। दोपहर बाद थोड़ी झपकी आ गई। मैं उठकर चाय के लिए पत्नी को आवाज ही देने वाला था कि कुछ देख बस लेटा ही रह गया। मेरा वॉलेट जो अक्सर सामने टेबल पर ही रहता है उसे बेझिझक वो मात्र पांच साल की बच्ची हाथों में उठाकर टटोल रही थी। उसने उस वॉलेट से एकमात्र रखे गुलाबी नोट को हाथों में लिया और वॉलेट ज्यों का त्यों रख दिया। मेरा सर चकरा गया।

मुझे इन लोगों से ये उम्मीद नहीं थी। सात सालों से राधा इस घर में काम कर रही है। अब तक ना जाने क्या क्या चुराया होगा। अब अपनी इतनी छोटी बच्ची को ये सब सीखा रही है!

कल की ही तो बात है। वो इसे अच्छे स्कूल के दाखिले के बारे में बातें कर रही थी

“मेमसाब! कुछ पैसे हैं मेरे पास, बस और दस हजार रूपये कम हो रहे हैं , स्कूल के वास्ते। बस ये पढ़ लिख जाए। मैं धीरे धीरे आपको लौटा दूंगी”

और मैंने मना कर दिया था। क्योंकि अभी खुद हाथ थोड़ा टाइट है। बच्चों को भी बाहर पढ़ाई के लिए हर महीने भेजना पड़ता है।


वो बच्ची हाथों में नोट पकड़ अपनी माँ के पास जा चुकी थी और मैं उठकर किताब पढ़ रही पत्नी के पास। उसे ये सब बताया और हम दोनों राधा की तरफ बढे। दरवाजे के पास पहुंचे थे कि कुछ सुन कर रुक गए।

“ये कहाँ से मिला तुझे? किसने दिया?”

“अरे आई, किसी ने दिया नहीं, मैं अंकल के बटुए से लेकर आई हूँ”

वो हाथ उठाने ही वाली थी कि वो बच्ची बोल पड़ी..

“कल अंकल से तूने मांग था ना, मेरी पढ़ाई के लिए, तो उन्होंने कहा था कि, “मैंने कोई पेड़ थोड़ी लगाए हैं पैसों का”। इसे लगा देते हैं आई, फिर अंकल के पास ढेर सारा पैसा हो जाएगा”

उसकी इस मासूम बातों से  दिल भर आया।हम उसकी तरफ बढ़े ही थे कि

“मेमसाब, इसने चोरी नहीं किया..ये तो..”

“हम जानते हैं राधा, इसकी मासूम सी सोच के आगे, हम अपनी सोच को, बहुत छोटा महसूस कर रहे हैं। इसे हम खूब पढ़ाएंगे”

पत्नी उसे गोद में लेकर, कहते हुए रो पड़ी ..!

विनय कुमार मिश्रा

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