Moral stories in hindi: सुभद्रा जी के चेहरे पर आज सालों बाद एक स्मित मुस्कान तैर रही थी….वो कभी अपनी सास की तरफ़ देखती कभी बेटे तो कभी पति की ओर… आज सालों बाद उन्हें परिवार के समर्पण का नज़राना बेटे की बदौलत हासिल हुआ था ।
चलिए आपको बताते हैं ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से सुभद्रा जी आज बहुत ख़ुश नज़र आ रही थी इसके लिए हमें थोड़ा पीछे की ओर जाना पड़ेगा लगभग पच्चीस साल पीछे…
“ बहू सुबह जल्दी उठ कर नीचे आ जाना।” सासु माँ की आदेशात्मक आवाज़ सुन वो बस सिर हिला दी… माँ कीं हिदायत याद थी बिना बात मुँह खोलने की ज़रूरत नहीं सास जो बोले वो करती जाना और पति का आदेश सिर आँखों पर रखना।
दूसरे ही दिन से सुभद्रा जी सास ससुर, पति, एक देवर और एक ननद के लिए अपनी ड्यूटी पर लग गई… सबने कह रखा था ससुराल में अपनी जगह बनानी हो तो सबको खुश रखना और उसके बाद के कई सालों तक वो सबको खुश रखने में लगी रही और उनकी ख़ुशी… सबके लिए खुद को समर्पित करने में ।
शादी के पाँच सालों के भीतर दो बच्चों की माँ भी बन गई ।
सुभद्रा जी घर के हर सदस्य का बख़ूबी ध्यान रखने लगी पर नहीं रख पा रही थी तो अपना खुद का ख़्याल… असमय खाना, देर तक खड़े रहना, कभी गिरी पड़ी भी तो खुद ही उठ कर दर्द की दवा लेकर संयत कर पुनः सबकी सेवा में लग जाती…. खुद को भूलते भूलते वो इस कदर भूल गई की अब पचास साल की उम्र होने को आई क्या शुगर होता क्या बीपी इन सब की तो कभी परवाह ही नहीं की..इस बीच ससुर चल बसे .. देवर ननद की शादी हो गई… और दोनों यहाँ से चले गए… सास और पति के एक इशारे पर सुभद्रा जा का नाचना बंद ना हुआ…बेटी के ब्याह की बात चलने लगी थी…बेटा बेटी से छोटा था पर माँ के लिए हमेशा खड़ा रहता … कई बार ताना मिलता माँ का चमचा…
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तब सुभद्रा जी की आँखें भर आती और वो बेटे से कहती,” तुम मेरी फ़िक्र क्यों ही करते हो…?”
“ माँ यहाँ किसी को तो तुम्हारी कभी परवाह नहीं रही.. दीदी भी तभी तुम्हारे पास आ कर प्यार दिखाती जब उन्हें कुछ चाहिए होता… तो क्या मैं भी अपनी माँ कीं परवाह ना करूँ… बचपन से देख रहा आप सबके लिए जीएँ जा रही हो पर अपना जीना भूल गई हो…कभी ख़ुद के लिए जी लो… तबियत खरब हो तो आराम कर लो .,पर आपसे तो वो भी नहीं होता ।”
सुभद्रा जी ये सुन कर बेटे को दुलार लेती पर अंदर ही अंदर डर रही थी कही मेरा बेटा भी अपने पापा की तरह बन गया तो …औरत को कुछ ना समझ बस समर्पण करने वाली।
घर में बेटी के ब्याह की बातें चलने लगी थी… इसलिए लड़के वाले घर आने वाले थे…. देवर देवरानी भी आ गए थे अपने बच्चों के साथ… अक्सर देखा गया है जिस बेटे का परिवार माँ के साथ नहीं रहता माँ उसकी आवभगत में अपनी उस बहू को लगा देती जिसके साथ वो रहती है…यही हाल सुभद्रा जी की सास का था…सुभद्रा जी हर काम अकेले कर रही थी… देवरानी मेहमानों की तरह ही आती चार दिन रहती चली जाती…आज भी वो बस मेहमान ही थी।
ख़ैर सुभद्रा जी अपनी बेटी के लिए लड़के वालों के आवभगत में लगी थी सब कुछ अच्छे से निपट गया…रसोई में बर्तन का अंबार लगा हुआ था… काम वाली इतने बरतन देख कहीं भुनभुनाने ना लगे ये सोच कर वो महँगे बर्तन खुद धो कर सहेजने लगी…
रसोईघर में उन बर्तनों को अलमारी में रखने के लिए वो स्टूल पर चढ़ कर रखने लगी… अचानक स्टूल पीछे की ओर हुआ और संतुलन बिगड़ता देख खुद को सँभालते सँभालते सुभद्रा जी के हाथ से कुछ बर्तन छूट कर गिर पड़े और साथ ही वो भी रसोई के फ़र्श पर गिर गई… एक आह! निकला और वो काम के धुन में पुनः उठने का प्रयत्न करने लगी पर ये क्या… उनसे तो हिला भी नहीं जा रहा था…
आवाज़ सुनकर सब रसोईघर में आ चुके थे…
“ क्या हुआ… देख कर काम किया करो…. अब उठो भी… या ऐसे ही पड़ी रहोगी…?” पति कर्कश स्वर में बोले…
“ वो ऽऽऽ। कुछ कहने को हुई ही की बेटा दौड़ कर माँ को सहारा देकर उठाने लगा… जब सुभद्रा जी से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था तब पहली बार बेटे ने अपने पिता की ओर मुख़ातिब हो बोला,” पापा माँ से उठा नहीं जा रहा… इतना जो आप ग़ुस्सा होकर बोले एक बार इनके पास आकर उठाने की कोशिश तो करते ।”
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सुन कर महेश जी बेटे की ओर देखने लगे..
“ आइए मदद कीजिए मैं अकेला नहीं उठा सकता।” सुन कर जल्दी से सुभद्रा जी को उठा कर कार में बिठा अस्पताल गए
पता चला हड्डी ही टूट गई… आपरेशन करना पड़ेगा… महीने तक बिस्तर पर रहना होगा ।
“ डॉक्टर ऐसा कुछ नहीं… जिससे मैं कल ही ठीक हो जाऊँ… वो क्या है ना मेरे घर में सबको मेरी बहुत ज़रूरत है… उन सबके खाने पीने से लेकर दवा तक का ध्यान मैं ही रखती हूँ..,इतने दिन बिस्तर पर रही तो कैसे काम चलेगा?” सुभद्रा जी लाचारी से बोली
“ क्या मैडम… अपनी हालत तो देखो… खड़े नहीं हो सकते पर परिवार के लिए परेशान हो रही हो… तुम्हारे लिए कोई परेशान होता है… अभी तुम तो आराम करना बस।” एक नर्स ने सुभद्रा जी से कहा
तभी कमरे में सुभद्रा जी के पति और बेटा आ गए नर्स ने जो कहा उन लोगों ने भी सुना
“ आप चिंता ना करें सिस्टर… माँ के आराम की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी… किसी को परवाह हो ना हो मुझे अपनी माँ कीं परवाह है।” बेटे ने ये सब अपने पिता को सुनाते हुए कहा
सुभद्रा जी का ऑपरेशन हो गया… कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद अब वो घर आ गई थी…
“ छोटी बहू कुछ दिन तुम यहाँ रूक जाती तो अच्छा होता..अब मेरी बूढ़ी हड्डियों में इतनी ताकत नहीं रही कि मैं सबका ध्यान रख सकूँ ।” सुभद्रा जी की सास ने कहा
“ अरे ऐसे कैसे यहाँ रूक जाऊँ.. मेरा भी अपना घर है… सबकी ज़िम्मेदारी है मैं नहीं रूक सकती … और ये सुभद्रा दी को भी क्या पड़ी थी स्टूल पर चढ़ कर सामान रखने की अरे थोड़ा ध्यान रखती तो गिरती तो नहीं…अब बैठ कर उनकी तमीरदारी करो… हुहहं।” देवरानी के मुँह से ये सुन कर सुभद्रा जी की आँखें छलक आई…उसने कभी भी देवरानी से काम करने को नहीं कहा.. मदद कर दी तो ठीक नहीं की तो वो तो है ही…. उसने देवरानी के बच्चों के जन्म के बाद भी जी भर सेवा की और आज पहली बार उसे ज़रूरत पड़ी तो सबको वो भारी लगने लगा
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“ कैसी बात कर रही है छोटी बहू… कुछ तो शर्म करो… बड़ी बहू ने कभी एक शब्द ना कहा….जब भी मैंने तुम्हारे आने पर उससे कुछ करने को कहा.. वो तन मन से सबकी सेवा में लगी रही…आज उसकी हालत देख कर भी तुम….चलो जाओ तुम यहाँ से अपना घर देखो… यहाँ हम देख लेंगे ।” सासु माँ की ये बात सुन सुभद्रा जी आश्चर्य करने लगी
“ आप सब बेकार ही परेशान हो रहे हैं… माँ के लिए उनका बेटा ही काफी है… जो सास कभी अपनी बहू के समर्पण को ना समझ सकी… जो पति अपनी पत्नी को ना समझ सका …जब वो कुछ कर ही नहीं सकते तो चाची से आप सब उम्मीद कैसे कर सकते हैं…पापा आप से तो माँ के लिए वैसे भी कुछ नहीं होता बस इतना कर दीजिएगा सबके खाने के लिए कोई कुक देख लीजिए…और दादी आप भी जरा आने जाने वाले मेहमानों पर थोड़ा ताला लगाइए… जिनके आने पर आप अपनी बहू को नौकरानी बना कर रख देती है ।” सुभद्रा जी के बेटे ने कहा
“ सुभद्रा को किसी की ज़रूरत नहीं है.. आज तक उसने सबके लिए बस किया ही किया है.. खुद को समर्पित कर अपना वजूद खोती चली गई…और इसमें मैं भी कही ना कही दोषी हूँ… अब मैं देख लूँगा और समझ लूँगा अपना घर और पत्नी का ध्यान कैसे रखना है ।”सुभद्रा जी के पति की बात सुन बेटा आश्चर्य से उन्हें देखने लगा
“ आप सच कह रहे हैं पापा..आप माँ का ध्यान रखेंगे?” बेटे ने पूछा
“हाँ अब पत्नी मेरी है तो ध्यान कोई और क्यों रखेगा!” कहते हुए वो सुभद्रा जी का हाथ पकड़कर वही बैठ कर बोले “ तुम चिंता मत करो सुभद्रा…जल्दी ठीक हो जाओगी … मैं रखूँगा ना ध्यान ।”
“ हाँ बेटा गलती तो मेरी भी है… बहू पर ज़िम्मेदारी डालती गई और वो बिना किसी प्रतिक्रिया के करती चली गईं ।” भरे गले से सुभद्रा जी की सास ने कहा
सुभद्रा जी के जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था कि पति आज उनका हाथ इतने प्यार से पकड़ कर उन्हें समझा रहे थे इसलिए उनके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई थी ।
दोस्तों कितनी औरतें ब्याह बाद बस अपने आपको पति और उसके परिवार के लिए समर्पित हो जाती हैं पर उसके समर्पण के समझने वाला कोई नहीं होता ऐसे में वो घूँट घूँट कर मर जाती है…. शायद सुभद्रा जी भी उनमें से एक हो सकती थी पर उनका बेटा अपनी माँ से प्यार भी बहुत करता था और उन्हें समझता भी था तभी तो चाची की बात सुन वो चुप ना रह सका ..और सास और पति को भी समझ आ गया सुभद्रा का समर्पण सबके लिए था पर उसके लिए?
स्वरचित
रश्मि प्रकाश
#समर्पण