परिवार की दीप्ति – बालेश्वर गुप्ता

 सब ठीक हो गया है, सनी,तुम बिल्कुल भी चिंता मत करना,मैं हूँ ना,सब सम्भाल लूंगी।पापा अब बिल्कुल ठीक हैं।

       क्या हुआ है,दीप्ति, पापा को क्या हुआ है?तुम क्या बोले जा रही हो,तीन दिन से तुम्हारा फोन भी नही लग रहा है, मुझे वैसे ही चिंता हो रही थी।मुझे सब बात तो बताओ?

     रमेश बाबू और सुमन का इकलौता पुत्र था सनी।रमेश बाबू को किसी चीज की कोई कमी नही,अच्छा खासा व्यापार चल रहा था,पर बुढापा थोड़े ही किसी के रोके रुका है, वो तो आता ही है।रमेश और सुमन भी उसी ओर बढ़ रहे थे।बेटा सनी उनका बहुत ध्यान रखता था।रमेश और सुमन की इच्छा थी कि जैसे ही सनी की  मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी हो तो वो व्यापार संभाल ले और उसकी वो शादी कर दे जिससे घर मे बहू की रौनक और पोते पोती की किलकारी सुन सके।इसी सपने के सहारे जीवन जिया जा रहा था।

       पर ये क्या हुआ सनी ने तो खुद ही लड़की पसंद कर ली और उसी से शादी का अल्टीमेटम भी दे दिया।अल्टीमेटम ही तो था कि शादी करूँगा तो दीप्ति से अन्यथा किसी से नही।साथ ही यह भी यदि मम्मी पापा अनुमति नही देंगे तो वह कुंवारा ही रहना पसंद करेगा।कितना बड़ा इम्तिहान ले रहा था सनी अपने मम्मी पापा का।बहू को पसंद करने के अधिकार को छीनकर अपनी पसंद पर उन्ही से मुहर लगवाने का आग्रह।ये अल्टीमेटम नही तो फिर क्या था?

       एकलौते बेटे की जिद का मान रमेश बाबू नहीं रखते तो करते भी क्या?दबे स्वर में सनी को ऊंच नीच समझाई भी।उद्धाहरण भी दिये कि प्रेम विवाह अक्सर सफल नही होते।पर सनी कहाँ मानने वाला था?बताता पापा दीप्ति बहुत अच्छी लड़की है,आपको कभी भी उससे शिकायत का अवसर नही मिलेगा।




  ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्जी।अनमने भाव से रमेश बाबू ने अनुमति भी दी और अनमने भाव से ही सनी और दीप्ति की शादी भी करा दी।दीप्ति वास्तव में सुन्दर तो थी ही,सौम्य भी थी।वो अपने ससुर और सासू मां का ध्यान रखना चाहती थी, पर सनी उसे कुछ करने ही नही देता था।अपने मम्मी पापा की हर जरूरत को सनी ही पूरी करता।रमेश बाबू और सुमन को सनी की शादी हो जाने और बहू के घर आ जाने से और पहली जिंदगी में कोई अंतर महसूस ही नही हुआ।पहले भी उनका बेटा सनी ही उनकी केयर करता था और शादी के बाद भी सनी ही उनकी देखभाल कर रहा था।

        वास्तव में रमेश बाबू ने दीप्ति को कभी मन से स्वीकार किया ही नही था।बेटे की जिद ने ही उन्हें इस शादी की अनुमति देने को बाध्य किया था,सो दीप्ति से वो कोई आशा रखते ही नही थे।अचानक ही व्यापारिक कारणों से सनी को पंद्रह दिनों के लिये विदेश जाना पड़ा।अपने माता पिता की देखभाल के लिये वो जरा चिंतित तो हुआ पर उसे अपनी दीप्ति पर पूरा भरोसा था,हाँ चिंतित थे तो रमेश बाबू,सोच रहे थे इन पंद्रह दिनों में सनी के बिना कैसे रहेंगे, पर मजबूरी थी,सो मन को ढ़ाढस बंधा लिया,कट जायेंगे किसी प्रकार।

      दस दिन व्यतीत हो गये, दीप्ति अपनी तरफ से अपने सास ससुर का पूरा ध्यान रखने का प्रयत्न करते,पर रमेश बाबू बहू को अपनी सेवा का मौका ही नही देते।एक दिन अप्रत्याशित रूप से रात्रि में रमेश बाबू के सीने में दर्द उठा,जो वो सहन नही कर पाये, पत्नी को जगाया,बताया कि सीने में दर्द उठा है, लगता है हार्ट अटैक है, इससे आगे वो बोलने की स्थिति में नही रह गये थे।सुमन ही क्या करती बहू के कमरे की ओर दौड़ी और बहू को माजरा बताया।दीप्ति ने तुरंत कार बाहर निकाली और अपनी सास की सहायता से रमेश बाबू की गाड़ी में लिटाया और तत्परता से नजदीक के नर्सिंग होम में ले गयी।इमरजेंसी वार्ड में ले जाकर रमेश बाबू को आईसीयू में दाखिल कर लिया गया।इस बीच दीप्ति ने बड़े कार्डियोलिस्ट से संपर्क कर उन्हें नर्सिंग होम आने को मना लिया।

    हालात गंभीर थी,डॉक्टर अपने प्रयास में लगे थे,सुमन भगवान की प्रार्थना में लीन थी और दीप्ति लगी थी हॉस्पिटल में अपने ससुर रमेश बाबू के बेहतर से बेहतर इलाज के मैनेजमेंट में।दो दिन बाद डॉक्टर्स ने कहा कि अब रमेश बाबू खतरे से बाहर है।इतना सुनना था कि दीप्ति की आंखों से आंसू झरने लगे,डॉक्टर दीप्ति के हौसले और निर्णय क्षमता की तारीफ कर रहे थे ,रमेश बाबू सब सुन रहे थे।दीप्ति को ध्यान आया कि उसने इस सारी हड़बड़ी में सनी को तो सूचना दी ही नहीं।तब  दीप्ति ने सनी को फोन लगाया और पापा के ठीक होने की सूचना दी।

       अगले दिन ही सनी भी विदेश से लौट कर सीधे हॉस्पिटल पहुंच गया।पापा से माफी मांगने लगा कि अब वो आप लोगों को छोड़ ऐसे नही जायेगा।कुछ हो जाता तो? 

      शून्य में खोये जैसे,रमेश बाबू बोले अरे बेटा हमें कुछ नही होता,कुछ हो ही नही सकता था,जानते हो क्यो भला?अरे हमारे जीवन की डोर हमारी बेटी दीप्ति ने संभाल रखी थी,सुना तुमने हमारी बेटी दीप्ति ने।अवाक सा सनी कभी पापा का चेहरा देख रहा था तो कभी पास में खड़ी दीप्ति का।आज दीप्ति ने उसके विश्वास को पुख्ता किया था,उसे गर्व हो रहा था,अपनी दीप्ति पर,और दीप्ति पापा-पापा कहते हुए रमेश बाबू के पैरों से चिपट कर अपने आंसुओ से उनका प्रच्छलन करने लगी।रमेश बाबू का हाथ दीप्ति के बालों में उलझ कर उसे अहसास करा रहा था वो अब उनकी ही है।

#बहु 

          बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

स्वरचित,अप्रकाशित

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