परिवार ही असली धन हैं !! – स्वाती जैंन

वाह संध्या , यह चटक लाल रंग तुम पर खुब जँच रहा हैं और तुम्हारे पतिदेव ,उनके भाईयों और ससुरजी  ने तो एक ही रंग की शेरवानी पहनी हुई हैं रोशनी बोली !!

                            हाँ रोशनी, खास दिवाली के लिए ही यह लाल रंग की साड़ी खरीदी है , यही नही मम्मीजी , जेठानी सरीता भाभी और देवरानी सुनीता की साडियाँ भी मैं ही लाई हुँ !!

जब भी बैंगलोर से दिवाली के लिए यहाँ आती हुँ , सभी के लिए वहीं से शोपिंग करती हुँ !!

पतिदेव , पापाजी , जेठजी और देवरजी सभी के कपड़े मेरी ही पसंद के हैं !!

                       जब भी मैं और राकेश बैंगलोर में शांपिग के लिए निकलते हैं घरवालों के लिए कुछ ना कुछ खरीद ही लेते हैं और दिवाली पर तो जरूर ही खरीदते हैं !!

मेरे परिवार को मेरी पसंद पर बहुत विश्वास हैं !!

                       रोशनी संध्या की बचपन की सहेली हैं जो दिवाली पर संध्या के घर लक्ष्मी – पूजन के दर्शन करने आई हैं !!

लक्ष्मी – पूजन हो चुका हैं इसलिए संध्या रोशनी को अपने कमरे में ले आई !!

                          संध्या हंसते हुए बोली रोशनी जानती हो जब हम घरवालों के लिए यह सब शांपिग करते हैं तो इतने थक जाते हैं कि घर आकर हिम्मत ही नही बचती !! मॉल में घूमना आसान थोड़ी होता हैं और एक ही जगह सभी के लिए कपडे आसानी से कहाँ मिलते हैं इसलिए शांपिंग के लिए बहुत घूमना पड़ता हैं !!

                           रोशनी बोली संध्या तुम पुरे परिवार के लिए इतने मंहगे- मंहगे कपड़े लाती हो तो फिर यह सब तुम्हें इसके पैसे देते होंगे ना !!



संध्या बोली हाँ सभी पैसे देने की बहुत कोशिश करते हैं मगर हम लेते नही !!

क्या हम अपने परिवार को उपहार भी नही दे सकते ??

रोशनी बोली मेरी भोली सहेली तु अब तक इतनी भोली हैं मैं नही जानती थी !!

संध्या बोली मैं समझी नहीं !!

रोशनी बोली संध्या पुरे परिवार ने मिलकर तुझे अच्छा – खासा उल्लू बना रखा हैं !!

तेरी पसंद पर विश्वास हैं यह कहकर तुझसे मंहगे – मंहगे कपड़े मुफ्त में मिल जाते हैं और तु भी यह सोचकर खुश रहती हैं कि तेरी पसंद सबको पसंद हैं !!

तु इनके लिए खरीदारी का जरिया बन चुकी हैं !!

सभी भलीभाँति जानते हैं कि यह पैसे भी नही लेती और मॉल के कपड़े बाँटती हैं वर्ना भला कौन सा ससुराल होगा जो बहु को इतनी इज्जत देता होगा !!

ऐसे तो तुम नीचे आ जाओगी , पुरे परिवार के लिए भला इतना भी कौन करता हैं ?? जितना कमाती हो उतना लुटा भी देती हो !!

देखना वह दिन दूर नहीं जब तुम परिवार का करते – करते खुद डुब जाओगी !!

रोशनी तो बोलकर चली गई मगर संध्या की नींद उड़ गई वह अब तक जो सब कुछ निस्वार्थ भावना से कर रही थी क्या उसमें परिवार वालो का स्वार्थ हैं ??

बस यही बात उसके दिमाग में घर कर गई !!

दूसरे दिन उसने राकेश से इस बारे में बात करी मगर राकेश के कान पर जूं तक ना रेंगी वह बोला संध्या तुम बात का बतंगड़ बना रही हो और दोनों में खुब लड़ाई हो गई !!

दिवाली, नया साल बीतकर चार दिन हो चुके थे , राकेश और संध्या के बैंगलोर जाने का दिन आ गया !!

वे लोग निकलने लगे तो देखा कि बाहर शानदार कार खड़ी हैं जिसकी चाबी पापाजी के हाथ में हैं और वे राकेश को देते हुए बोले यह हम सबकी तरफ से तुम्हारे लिए तोहफा हैं !!

मम्मीजी संध्या से बोली आओ बहु यह रिबिन खोलकर कार का उदगाटन करो !!

संध्या बोली मम्मीजी इस सबकी क्या जरूरत थी ??

उतने में सरीता भाभी और सुनीता , जेठजी और देवरजी सभी बोले संध्या तुम हमारे लिए इतना कुछ लाती रहो बदले में पैसे भी ना लो और हम सभी मिलकर तुम्हारे लिए इतना तो कर ही सकते है !!

मम्मीजी बोली ना जाने कितने सालो से तुम हम सबका इतना ध्यान रखती आई हो , कभी खाली हाथ नही आती और बदले में उन चीजों के पैसे भी नही लेती इसलिए हम सभी ने सोचा कि तुम्हें ऐसा कोई उपहार दे जो तुम्हें स्वीकार करना ही पड़ें !!

संध्या की आँखों में आँसू आ गए !!



दोनों कार में बैंगलोर के लिए रवाना हो गए !! राकेश टोंट मारकर बोला संध्या अब तो तुम बहुत खुश होगी तुमने तो सिर्फ छोटे – छोटे उपहार दिए थे और बदले में इतना मंहंगा उपहार लेकर लौट रही हो !!

संध्या बोली मुझे माफ कर दो राकेश !!

मैं रोशनी की बातों में आ गई !!

परिवार के लिए निस्वार्थ भावना से जो मैं करती आई थी उसका यह फल ना भी मिलता तो मुझे कोई गम ना था बस गम इस बात का हैं कि कभी – कभी हम दूसरो के बहकावे में आकर अपने किमती रिश्ते खोखले कर देते हैं !!

आज बस मन में यह मलाल हैं कि मै उस समय रोशनी को जवाब क्यूं नही दे पाई ??

मैं क्यूं नही बोल पाई कि परिवार के लिए किया निःस्वार्थ कर्म तुम्हे कभी नीचे नही आने देता !!

परिवार ही असली धन हैं !!

राकेश बोला देर आए दुरुस्त आए संध्या !!

तुम्हें परिवार की कीमत पता चली यही मेरे लिए बड़ी बात हैं !!

परिवार में प्यार और मनमुटाव होना आम बात हैं मगर परिवार के प्रति कठोर हो जाना सही नहीं हैं !!

दोस्तों , कभी – कभी हम दूसरों के बहकावे में आकर अपने रिश्तों को खोखला कर देते हैं !!

बेहतर हैं ऐसे लोगो को बराबर जवाब दें ताकि वे अगली बारी मुंह खोलने से पहले दस बार सोचें !!

आपको यह रचना कैसी लगी कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें तथा मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फॉलो अवश्य करें !!

#परिवार 

आपकी सखी

स्वाती जैंन

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