परिणीति – बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

देखो अम्बर मैंने तुम्हें अपना सर्वस्व सौंपा है,अब मेरे पास कुछ भी नही।तुम मुझे धोखा नही दे सकते,तुम पर मेरा ही हक है।

      मैं कब मना कर रहा हूँ,मुझ पर तुम्हारा ही तो हक है,तुम बताओ माँ की जिद और छोटी बहन की शादी में अड़चन न आने पावे के कारण माँ मेरी शादी करने पर अड़ गयी है।बीमार है, माँ को कैसे समझाऊं,समझ ही नही आ रहा,पर तुम बेफिक्र रहो अवनी अम्बर तुम्हारा ही रहेगा।

   सफेद वेशभूषा में करीने से बंधे बालो में जब पहली बार अवनी ने विद्यालय में प्रवेश किया था तो पूरा कॉलेज देखता रह गया था।सादगी में भी इतना सौंदर्य हो सकता है, अकल्पनीय था।

        अम्बर तो अवनी को देखता ही रह गया।प्रतिदिन चोरी छिपे अवनी को देखते रहना अम्बर का शगल हो गया था। कॉलेज में क्रिकेट के टूर्नामेंट प्रारम्भ होने वाले थे।अम्बर अपनी टीम का कप्तान था,वैसे भी अम्बर कॉलेज   में क्रिकेट का सर्वोत्तम खिलाड़ी था।टूर्नामेंट में अम्बर का शानदार प्रदर्शन रहा,उसने शतक लगाया था।कॉलेज के स्टूडेंट्स अम्बर को बधाई दे रहे थे।बधाई देने वालो में अवनी भी थी।अवनी की बधाई से अम्बर खिल उठा।

अब अम्बर किसी न किसी बहाने से अवनी से बात करने की कोशिश यदा कदा करने लगा।अवनी भी चूंकि उससे प्रभवित थी तो वह भी अम्बर में रुचि लेने लगी।उनकी यह सामान्य प्रतिक्रिया कॉलेज के कैंटीन में साथ बैठकर चाय कॉफ़ी पीने तक पहुंच गयी।धीरेधीरे दोनो एक दूसरे के नजदीक आते जा रहे थे।एक दूसरे को पसंद भी करने लगे थे।

     कॉलेज से एक टूर नैनीताल के लिये जाना था,उसमें अम्बर और अवनी ने भी अपना नाम लिखा दिया।अम्बर का यह अंतिम वर्ष था,इसके बाद तो उसे जॉब ही करना था,तो वह इस टूर को विधार्थी जीवन की एक अविस्मरणीय घटना बनाना चाहता था।यही कारण था उसमें अत्याधिक उत्साह था और ऊपर से अवनी भी साथ थी तो उसकी प्रसन्नता रुके नही रुक रही थी।

इस कहानी को भी पढ़ें:

किन्नर की मां – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

     नैनीताल पहुंचकर अम्बर और अवनी साथ ही मोटरबोट में सवारी करने चले गये।बाकी साथी भी समझ चुके थे कि दोनो एक दूसरे को प्रेम करते है सो वे भी उन्हें अकेले रहने का अवसर दे देते।नैनीताल में दोनो ने ही किसी भी कीमत पर सदैव साथ रहने की कसमें खाई।दोनो यौवन से भरपूर,घर से दूर अकेले,प्यार में सरोबार,नतीजा दोनो ही बहक गये।बाद में दोनो को ही ग्लानि भी हुई,पर जो होना था हो चुका था।

      नैनीताल से वापस आने पर अवनी नैनीताल में हुई भूल को याद कर गुमसुम रहने लगी ,अम्बर के समझाने पर भी वह अपने मन से उन क्षणों को निकाल नही पा रही थी।इसी बीच उसे लगा कि उसके पेट मे कोई आ गया है,आसमान से गिरी अवनी दहाड़ मार अम्बर से चिपट कर रो रही थी।अम्बर ने उसे ढाढ़स बधाते हुए अगले दिन ही मंदिर आने को बोला।अगले दिन ही अम्बर ने अवनी से मंदिर में पुजारी के माध्यम से शादी कर ली।अवनी को आश्वासन दिया कि जल्द ही घर पर अनुकूलता का वातावरण होते ही वे अपनी शादी को सार्वजनिक कर देंगे।अवनी को कुछ तस्सली प्राप्त हुई।

       अम्बर का जॉब लग चुका था,पर माँ चूंकि बीमार थी और पुराने विचारों के होने के कारण वे अवनी को अपनाने को तैयार नही हो सकती थी।उनकी ये भी इच्छा थी कि पता नही कितनी जिंदगी शेष है इसलिये अम्बर जल्द ही शादी कर ले।अम्बर अवनी के बारे में माँ से कुछ कह भी ना सका।इसी पशोपेश को अम्बर अवनी से शेयर कर रहा था कि अवनी भभक गयी।

      अवनी का कहना था कि हम अपनी शादी को कब तक छुपा सकते हैं।मैं नही बताऊँगी तब भी कुछ ही दिनों में मेरा पेट दुनिया को बता देगा।अपने जीवन की राह खोजता अम्बर अकेला पड़ गया,कैसे समाधान निकाले?

      उसने सोच लिया कि वह एक  पत्र अवनी से शादी की स्वीकार्यता का लिखेगा,जिससे अवनी को उसकी पत्नी का दर्जा सार्वजनिक हो जायेगा, समाज का मुँह भी बंद रहेगा,और वह अपने जीवन का अंत कर लेगा।यहां माँ की ओर से अम्बर अपने को कमजोर मान रहा था।घर आकर उसने सोचे अनुसार पत्र लिख नींद की गोलियाँ खा ली और चिर निद्रा में सो जाने का यत्न कर आंखे बंद कर ली।

        सांस चल रही थी अम्बर की बहन ने वही रखा पत्र पढ़कर सब स्थिति को समझ लिया,तुरंत हॉस्पिटल में अम्बर को दाखिल किया गया।डॉक्टर्स के अथक प्रयासों से अम्बर का जीवन बच गया।हॉस्पिटल के कमरे में पड़े अम्बर को लग रहा था कि अब माँ से कैसे आंखे मिला पायेगा।अवनी का क्या होगा?फिर वे ही समस्याये सामने मुँह फाडे खड़ी थी।इतने में दरवाजा खोलकर माँ अंदर आयी, माँ को देख अम्बर ने संकोच में आंखे बंद कर ली।उसे कानो में आवाज आई अम्बर बेटा इतना बड़ा कदम उठा लिया,ये भी नही सोचा माँ कैसे जी पायेगी, अरे एक बार कहा तो होता। मैं कम अक्ल पुराने विचारों की हो सकती हूं,पर मेरे बच्चे इतना तो समझती ही हूँ कि अवनी(पृथ्वी)अम्बर(आकाश)के साये के बिना कैसे रह सकती है।

    आंखे खोल मेरे बेटे देख तो कौन आया है मैं किसे लेकर आयी हूँ।बहते आंसुओं के साथ अम्बर ने आंखे खोली तो देखा मां अवनी का हाथ पकड़े खड़ी है।

      बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवं अप्रकाशित।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!