पराई बेटियां – आरती रॉय

पिताजी के गुजर जाने के बाद सोनम कब पापा की जगह ले ली उसे पता ही नहीं चला ।

खुबसूरती खुद्दारी में बदल गई , दो दो भाईयों की पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी ,ओवरटाइम करते करते पैसा कमाने में मशीन बन गई ।

माँ भी पापा के जाने के बाद , जैसे जिंदगी का जुआ   पटक दीं।

वह रात के साढ़े दस बजे घर लौटी चाय पीने की बड़ी इच्छा हो रही थी ।

हाथ पैर धोकर माँ को आवाज दी ,” माँ एक कप चाय मिलेगी ” ?

“क्या सोनम ; ये कोई वक्त है चाय पीने का , वैसे भी मुझे देर हो रही है” ।

“रसोई घर में खाना रखा हुआ है ढंक कर खा लेना मैं सोने चली” ।

और माँ सोने चली गई ।



वह अनमनस्क सी हाथ पैर धोकर बरामदे में कुर्सी से सिर टिका कर लेट गई।

कब नींद आ गई पता ही नहीं चला , शायद आधी रात हो चुकी थी ।

रसोईघर में खटर पटर की आवाज सुनकर नींद टूट गई।

ओह लगता है माँ मेरे लिए खाना गरम कर रही है ! वाह ;  माँ तो माँ होती है ।

वह अपनी सारी पीड़ा भूल कर रसोई घर में गई ,माँ चाय बना रही थी ।

“माँ रहने दिजीए रात के एक बजे हैं , अब खाना ही दे दीजिये ।

“अररे नहीं चाय तो तुम्हारे बड़े लाडले भाई के लिए  बना रही थी , वह बहुत मेहनत करता है,एक कप चाय दे देने से उसे जाग कर पढ़ना आसान हो जाता है” ।

  नहीं कह पाई , माँ दिन भर घर से बाहर अपनों के लिये भाग दौड़ करते हुए एवं  बॉस की गालियां खाकर फाइलों में सिर खपाकर तेरी ये बेटी भी थक जाती है ।

एक कप चाय ही तो माँगी थी मैं भी , जानती हो उस  एक कप चाय की मिठास में प्यार और अपनापन मिलता है ।

  यह लगभग रोज का नियम बन चुका था ।

थकी हारी आती खुद खाना गर्म कर खा कर जल्दी सो जाती , चूँकि देर से  ऑफिस पहुंच कर बॉस से बहस करके अपना और उनका मुड खराब नहीं करना चाहती थी ।

खाना खाकर सोने जा रही थी ,तो बबलू के कमरे से खुसूर फुसूर सुनाई दी ।

अनमनस्क सी वह आगे बढ़ने लगी पर कानों ने जो सुना वह सुन कर सन्न रह गई ।

“माँ दीदी तो पैंतीस पार कर लीं हैं अब उनके लिये लड़का तो मिलने से रहा , तो क्या मैं भी कुंवारा रह जाऊँ” ।



“शुभ शुभ बोल, कुंवारा रहे तेरा दुश्मन , पहले तुम ज्वाइन कर लो , फिर तेरी शादी विनी से करवा दूँगी”।

“पर माँ विनी संयुक्त परिवार के खिलाफ है, वह कहती है भीड़ भाड़ वाले घर में मैं ब्याह ही नहीं करुँगी” ।

“नहीं नहीं , पहले शादी तो हो जाने दो, यहाँ तुम्हारी बहन है ना हम सबको संभालने के लिए , तुम और विनी अलग घर ले लेना” ।

सोनम को अब और कुछ सुनने की चाह नहीं रही , वह जाकर बिस्तर पर लेट गई ।

नींद नहीं आ रही थी ,बार बार मन में सवाल उठ रहे थे ,जिंदगी मेरी है जीने की चाहत भी है तो फिर मैं स्वयं को सवालों के घेरे में कैसे उलझने दूँ ?

काफी सोच विचार के बाद मिस्टर कुमार को फोन लगाई ।

“हैलो क्या हम दोनों कल कोर्ट मैरिज कर सकते हैं” ?

” अररे मेरी मलिका ; कब से मैं यह सुनने को बेताब था , बिल्कुल आ जाओ मेरी जान” ।

सुबह सुबह  सोनम को  घर से अटैची लेकर निकलते देख कर माँ पूछ बैठी , ये अटैची लेकर कहाँ चल दी ?”

“कहीं नहीं माँ , अपना घर बसाने जा रही हूँ ,तेरी गृहस्थी बहुत दिनों तक संवार दी ।”

“क्या कहना चाह रही हो ?”

“कुछ नहीं बबलू मुझसे साल भर ही छोटा है,अब आगे वह अपनी जिम्मेदारी निभाये, आप ही तो अक्सर कहा करती हैं, बेटियां तो पराई होती हैं ।”

आरती रॉय

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