पापा ,कुछ दिन और रुकेंगे – मीनाक्षी सिंह : Short Stories in Hindi

Short Stories in Hindi : दिव्याजी को अपने आलीशान घर और पैसों का बहुत घमंड था !

हो भी क्यूँ ना पति शहर के जाने मानें बिजनेसमेन जो ठहरे ! जैसा दिव्याजी का स्वभाव था ,वैसा ही बच्चों का भी हो गया था !

वैसे तो वो कभी अपने पुश्तैनी गांव जाती नहीं थी ये सोचकर कि वहाँ ना तो बिजली की अच्छी सुविधा हैँ ,ना मिनरल वाटर हैँ ! इतने मच्छर होंगे ! पर अभी पतिदेव के बड़े ताऊजी का देहांत हो गया ! उनकी तेरहवीं में सभी को चलने के लिए कहा !

दिव्याजी  के लाख मना करने के बाद भी वो उन्हे समझाकर कि एक ही दिन की तो बात है यार ! शाम को ही सबसे मिलकर ,दावत खाकर निकल आयेंगे !

दिव्याजी बेमन ,बच्चों को साथ ले गांव आ गयी ! पर यह क्या यहाँ ताऊ जी और आस पास के घर देखकर दिव्याजी और उनके बच्चों की आँखें फटी की फटी रह गयी ! ताऊजी के घर में घुसते ही इतना बड़ा सिस्टम से बनाया गया बगीचा !

दिव्याजी मन ही मन सोच रही कि कहाँ मैं अपने घर में छोटे छोटे गमलों में पौधे लगाती हूँ ,बालकनी भी पूरी भर जाती हैँ ! खड़े होने की जगह भी नहीं होती ! वो लोग अन्दर गए तो देखते ही रह गए !

इतनी बड़ी साफ सुथरी ,तरीने से सजी हुई किचेन दो दो एसी लग रहे घर में ! तीन कमरों में कूलर ! बच्चें भी बोले बिना ना रह सकें ! मम्मा वहाँ दिल्ली में हमारी किचेन कितनी छोटी हैँ ! हम सब एक साथ भी कभी खड़े नहीं हो पाते !

बहुत सुन्दर सा खुले आंगन में लीपा हुआ चुल्हा रखा था ! दिव्याजी सोच रही खुली हवा के लिये हमें बाहर घुमने जाना पड़ता हैँ ! पूरे दिन में एक बार बाहर ना निकलो तो घूटन महसूस होती हैँ !




यहाँ तो घर में ही इतना खुलापन हैँ ! कोई सफोकेशन नहीं ! दिव्याजी और बच्चों ने सबको प्रणाम किया ,बड़ो के पैर छूये ! वहाँ की सभी बहुएं साड़ी में बला की खूबसूरत लग रही थी ,कमर में चांदी का गहना पहने कयामत ढ़ा रही थी !

दिव्याजी सोच रही थी ,इनके हाथ देखकर कोई कह सकता हैँ कि ये औरतें गाय भैंस के काम करती हैं ! चेहरे की दमक देख कोई नहीं कह सकता की दोनों टाइम चुल्हे में फूंकनी मारती हैँ ! दिव्याजी सोच रही कहाँ में शहर में पेडीक्यूर ,मेनीक्यूर कराने के बाद भी इतने मुलायम और गोरे नहीं हैँ मेरे हाथ !

मैं फेशीअल भी कराती हूँ ,जिस से अभी से मेरे चेहरे पर झूर्रियां आ गयी हैँ ,और जेठानी जी मुझसे बड़ी हैँ ,मुझसे भी छोटी लग रही हैं ! नाती ,पोते भी पाल रही हैँ ! खैर सभी ने शाम को दावत खायी ! पतिदेव बोले – चले घर ,चाभी निकालूँ ??

पापा आप जाओ ,अभी तो हमारी छुट्टी बची हैँ ,हम कुछ दिन बाद आ जायेंगे ! हमें बहुत मजा आ रहा हैँ यहाँ ! छोटे भईया बोले – भाईसाहब ,मैं कर आऊंगा बच्चों को घर !

इतने सालों में तो आयें हैँ ,रह लेने दिजिये कुछ दिन और ! पतिदेव मुस्कुराकर दिव्याजी की तरफ देखकर बोले – और ,मैडम जी ,आप तो चल रही हैँ ना ,बिमार हो गयी होंगी आप तो यहाँ !

आप जाओ ,मैं तो अभी कुछ दिन और रहूंगी अपनी देवरानी ज़िठानियों के बीच ! दिव्याजी शर्मा गयी !

पतिदेव भी दिव्याजी के और बच्चों के सर पर हाथ फेरकर ,सभी को प्रणाम कर अपनी कर्मभुमि की ओर रवाना  हो गए !

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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