आर्यन अपनी माँ से मिलने नौ साल बाद लौटा है। इतने दिनों कहाँ था, ना किसी ने पूछा, ना किसी को उसने बताया। मन की पीड़ा अत्यधिक थी। चाहते हुए भी किसी से कुछ साझा नही करता।
प्राची और प्रथम, बच्चे आर्यन, निमिषा और अमीषा का सुखी समृद्ध परिवार था। बड़ा बेटा आर्यन और उससे चार साल छोटी जुड़वा बहनों की खूब साठगांठ थी। तीनों मिलकर मस्ती, मज़ा, खेलकूद करते।
अच्छे दिन ऐसे ही बीतते जा रहे थे। और फिर एक दिन समाप्त भी हो गए शायद। बुरा समय बता कर नही आता।
आर्यन को कुछ अमीरज़ादों का साथ क्या मिला। वो विसंगतियों पर रीझ गया। आकर्षण में अपना आपा खोता गया। अब उसे ना अपनी, ना परिवार की इज़्ज़त, ना दीनदुनिया की ख़बर रहती। घर का माहौल गंभीर से वेदनीय हो गया।
प्राची कैसे भी करके आर्यन और प्रथम के बीच में पुल बनने का अथक प्रयास करती, पर सब विफल हो जाता। नशे की चपेट में आया बच्चा किसे सुहाता?? बेटियों के बारे में सोचकर वो और ठिठक जाती।
सब ऐसे ही चल रहा था कि एक और वज्रपात हुआ। आर्यन अपना उन्नीसवां जन्मदिन मनाने दोस्तों संग जिस होटल में बैठा था। वहीं पर उसके पिता प्रथम किसी स्त्री के साथ रूमानी हो रहे थे।
आर्यन का पारा सातवें आसमान पर था। वह अफ़रातफ़री में वहाँ से उठा। अनचाहे, सभी का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ। प्रथम को भी उसकी झलक मिली। लगा जान साँसत में आ गई।
आर्यन सीधे ही माँ के पास पहुँचा। प्रथम भी वहाँ थे। उसने पहले ही प्राची को पट्टी पढ़ा दी। कहा कि,”आर्यन को होटल में उसने पैसे चुराते देखा। जब उसने चोरी का विरोध किया, तो आर्यन ने उससे पैसे माँगे। जब प्रथम ने मना किया तो आर्यन ने, झूठी कहानी बना, प्राची को प्रथम के अफेयर के बारे में बता देने की धमकी दी।”
आर्यन थोड़े नशे में था। जैसे ही उसने शब्द बोलने शुरू किए, प्राची ने उसे बिना कोई मौका दिए, घर से निकाल दिया।
उस दिन से लेकर आज नौ साल बाद तक, आर्यन ने मुड़ के अपने घर की तरफ कभी नही देखा। निमिषा और अमीषा को कभीकभार आर्यन की हालखबर मिलती। कुछ रुपये, चिट्ठियों में आते। पर उनमें पितामाता का ज़िक्र, कभी ना होता।
प्रथम को मुखाग्नि देने भी आर्यन घर नही आया। खबर उसे मिली थी, फिर भी। माँ का कारण जानने की जिज्ञासा वो और नही दबा पा रहा।
घर पहुँचते ही प्राची, आर्यन को सीने से लगा लेती है। दोनों के आँसू बहने लगते हैं। आर्यन ने बस इतना बोला,” आखिर क्यूँ माँ??”
प्राची बोली,” मैंने प्रथम से प्यार किया था। उसे मैं कॉलेज के ज़माने से जानती थी। उसकी प्रकृति किसी को भी मोह लेने वाली थी। वह ऊबता भी जल्दी था।
शादी की शुरुआत में सब ठीक था। पर निमिषा और अमिषा के जन्म के बाद, गाहेबगाहे, प्रथम के ऐसे किस्से कानों में पड़ ही जाते। चिंता, अवसाद को मैंने अपना दोस्त बना लिया। पर तुम लोगों पर इसका साया ना पड़े, इसका भरसक प्रयास किया।
अगर मैं प्रथम को छोड़ने का निर्णय लेती, तो किससे मदद माँगती?? तुम लोगों को लेकर कहाँ जाती?? ये समाज तो मुझे ही कुसूरवार समझता। इसलिए मैंने तुझे ही वहाँ से जाने को बोल दिया।
तेरे रास्ते, वैसे भी सही नही थे। प्रथम के साथ मनोभावों की रस्साकशी में तू ही फँसता। जो अपने परिवार को धोखा देकर चैन की नींद सोता हो। चेहरे पर कोई शिकन नही, मलाल नही। उसको मैं क्या समझाती, बात करती??
बस यही है मेरी दलील। तू चाहे तो मुझे माफ़ कर दे, या दोषी करार दे। बड़े साल पश्चाताप किया, पर अब मुझे मुक्त कर दे, बेटा।”
इन नौ बरसों में आर्यन ने खुद को काबिल बनाया। शानदार घर संपत्ति है। बावजूद इसके सुकून की नींद नही आती। आज वो अपनी माँ के बगल में कब सो गया पता ही नही चला।
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद