पिछले दिनों अपनी एक फ्रेंड के विशेष आग्रह पर उसकी बेटी की शादी में हम सपरिवार पहुंचे। उसके घर से थोड़ा पहले ही एक घर के सामने “आसरा ” लिखा देखा तो मन में कौतूहल जागा फिर सोचा किसी ने बड़ा अच्छा नाम रखा है घर का।
खैर घर पहुंचे, बड़ी गर्मजोशी से उसके परिवार ने हमारा स्वागत किया ज्यादा खुशी इसलिए भी हुई कि नेहा तो खुश होती ही उससे आत्मीय रिश्ता जो ठहरा लेकिन सारे परिवार से मिलने वाले अपनेपन ने अभिभूत कर दिया मुझे।
मैं काम में नेहा का हाथ बंटा रही थी वह खाना पैक करने में लगी हुई थी। मैंने पूछा …इतना सारा खाना किसके लिए रख रही हो।
अरे वो पड़ोस में एक वृद्धाश्रम है पहले उनको दे आऊँ फिर व्यस्त हो जाऊंगी अगर वहाँ खाना न पहुँच पाया तो मेरे गले से निवाला नहीं उतरेगा।
यह तो बहुत अच्छा कर रही हो तुम नेहा।
मैं ही नहीं कर रही मधु.. हम सारे कॉलोनी वालों ने यह नियम बना रखा है कि जब भी किसी के यहाँ भोज होता है या कुछ अच्छा बनता है तो हम उन्हें जरूर देकर आते हैं। जानती हो मधु बहुत आशीर्वाद देते हैं वे दिल से वहाँ जाकर मन को बड़ी तसल्ली मिलती है ऐसा नहीं है कि वे गरीब घरों से हैं बस दुःख इस बात का है कि उनमें से अधिकांश लोग धनाढ्य घरों से हैं किसीने संपत्ति नाम करवा कर उन्हें यहाँ भेज दिया तो किसी ऑफिसर बेटे को उन्हें अपने साथ रखने में शर्म आती थी अब यहाँ का एकाकीपन ही उनकी नियति है।
चलो मैं भी चलती हूँ तुम्हारे साथ तुम्हारी बातों ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी है जानना चाहती हूँ बिना अपनों के साथ के जीवन कैसा होता है।
वहाँ पहुँचते ही सब उठकर उनके पास आ गये और हालचाल पूछने लगे… हमारी तरफ से बिटिया को बहुत सारा प्यार देना ईश्वर उसकी झोली में जमाने भर की खुशियाँ डाल दे। उनके चेहरे से प्यार झलक रहा था।
मैं सोच रही थी ये बदनसीब नहीं हैं बदनसीब तो इनके बच्चे हैं जिन्होंने इनकी भावनाओं की कद्र न करके इनको इतना कष्ट दिया है भगवान उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
अगले दिन विशेष काम नहीं था मेरे कदम स्वत: ही “आसरा” की ओर बढ़ गये पर आज तो यहाँ का नज़ारा ही कुछ और था । आज कौशल्या ताई का जन्मदिन था समवेत खिलखिलाहट की आवाज़ बाहर तक आ रही थी तेज आवाज़ में गाना बज रहा था…
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है।
सुमित्रा ताई जानकी जी को खींच रही थी डांस करने के लिए जबकि बाकी सारे लोग तालियां बजा रहे थे तभी गुप्ता जी और शर्मा जी भी शामिल हो गये उनकी खुशी देखकर मन बड़ा खुश हुआ। काफी देर तक मंत्र मुग्ध सी मैं उम्र के इस पड़ाव की खुशी और दुःख के मिले- जुले रूप को देख रही थी।
जैसे ही चलने को हुई कौशल्या ताई ने हाथ पकड़कर रोक लिया.. बेटा, हलवा खाकर जाओ आज , एक जमाना था जब हम होटल में शान से बर्थ डे मनाते थे पर कब तक उस गम को सीने से लगाकर रोते रहेंगे अब यही हमारी नियति है इसे हमने दिल से स्वीकार कर लिया है और हम सब अब यहीं खुश हैं अपने इस हमउम्र परिवार के साथ अब जिन्होंने हमें त्याग दिया उनके लिए क्यों शोक मनाना।
मैंने कौशल्या ताई को सीने से लगा लिया ऐसा लगा जैसे मेरी माँ मिल गई हो मुझे। आज मेरा मन संतुष्ट था जैसे मरने वालों के साथ मरा नहीं जाता वैसे ही गैरों के लिए आँसू भी नहीं बहाना चाहिए जिस औलाद ने अपनों को छोड़ दिया उनके लिए क्यों दुःख मनाना.. एक नये विचार और अनुभव के साथ आज वापस लौट रही थी मैं।
#नियति
स्वरचित एवं अप्रकाशित
कमलेश राणा
ग्वालियर