नियति को तो बदला भी जा सकता है – सुषमा यादव

शालू अपने पति के साथ सरकारी दौरे पर गई थी।  वहां एक छोटे से कस्बे में उनके पहचान के एक अधिकारी मिल गये थे। उन्होंने अपने घर में उन्हें आमंत्रित किया।शालू ने देखा,उनकी सीधी सादी पत्नी बड़े ही चाव से सबको जलपान करवा रही थी। पति विनोद तो बहुत ही हैंडसम लग रहे थे,पर पत्नी सामान्य नैन नक्श वाली थी। सांवली भी थी,शालू ने कहा, भाभी जी, आप भी हमारे साथ बैठिए, लेकिन शालू हैरान रह गई ,जब विशुद्ध देहाती भाषा में उसने जबाब दिया। इतने बड़े अधिकारी की पत्नी अनपढ़ है।

हम कभी विनोद जी को देखते और कभी उनकी पत्नी कुसुम को। सीधे पल्लू में एकदम देहाती पत्नी के साथ कैसे शादी हो गई।

खैर हम सब चले आए। कुछ सालों बाद हमारी मुलाकात फिर हुई,इस समय वो अकेले ही थे।नौकर चाय पानी का इंतजाम कर रहा था।

शालू ने इधर उधर ताकते हुए पूछा, भैया, कुसुम भाभी नहीं दिखाई दे रही हैं।

वो काफी उदास हो कर बोले, मैं तलाक लेने की सोच रहा हूं। शालू और उसके पति ने हैरत से निहारते हुए कहा, अरे। ऐसा क्या हो गया है।जो आप इतना बड़ा फैसला लेने को तैयार हो गये हैं।

विनोद जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, बचपन में ही हमारी शादी हो गई थी। उसके माता-पिता को चाहिए था कि लड़की को कम से कम पांचवी कक्षा तक तो पढ़ा देते। उसको बातचीत करने का सलीका आ जाता। कहीं दस्तखत करना हो तो सबके सामने अंगूठा आगे कर देती है। मैंने उसे बहुत सहा अब और नहीं सह सकता हूं।सब लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। 

मुझ पर व्यंग्य कसते हैं। मैं अपने ऑफिस में नजरें उठा कर बात नहीं कर सकता हूं।उसे अपने साथ कहीं ले कर नहीं जा सकता हूं। कोई पूछता है तो क्या बताऊं, मेरी पत्नी को उठने, बैठने,खाने पीने और बोलने का सलीका नहीं है। वो अनपढ़,गंवार है।




मेरी नियति में यही सब लिखा है।

कमरे में एकदम से चुप्पी छा गई।

कुछ देर बाद शालू ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा। भैया,इस सबमें बेचारी कुसुम भाभी की क्या ग़लती है। उनका परिवार एकदम पहाड़ के तलहटी में रहता था। जहां स्कूल का नामोनिशान उस समय नहीं था। उनके पिता उन्हें कहां पढ़ने भेजते। हां, घर में थोड़ा बहुत पढ़ा सकते थे,पर वो जमाना लड़कियों को पढ़ाने के हक में नहीं बल्कि जल्दी से शादी कर देने के पक्ष में था।

आप किस नियति की बात कर रहे हैं।

” नियति तो हमारे हाथ में है।हम इसे अपने सूझ-बूझ से और मेहनत से बदल भी तो सकते हैं।”

वो आश्चर्य से देखते हुए बोले, वो भला कैसे,, कह कर हंसने लगे, क्या मैं उसका रहन सहन, बोली, वेशभूषा और चेहरा बदल सकता हूं। अब इस उम्र में मैं चलूं उसे पढ़ाने।

अब कुछ नहीं हो सकता है,ना मेरी नियति बदल सकती है और ना ही उसकी।

शालू ने कहा और वो आपके तीन बच्चे, उनकी भी यही नियति है कि वो पिता के रहते दर दर भटके।

विनोद जी बोले, मैं इसमें क्या कर सकता हूं। शालू ने कहा, मैं जैसे जैसे कहूं,बस आप वैसे ही करते जाइए।

एक साल का समय दीजिए,आपकी और कुसुम भाभी की नियति ना बदल दूं तो मेरा नाम नहीं।

मुस्कुरा कर बोले, ओके। शालू के पति ने कहा,तुम इसमें क्या कर सकती हो। बस देखते रहिए और अब चलिए।

कुछ दिनों बाद शालू ने विनोद जी को फोन किया, मैंने शहर में एक बहुत बढ़िया फ्लैट देखा है। मेरे पास ही है।आप अपने बच्चों की अच्छी जगह पढ़ाई करने के लिए उसे खरीद लीजिए। देखिए, आपने वादा किया है, मना मत करिएगा।




विनोद जी ने कहना माना और घर खरीद लिया। अब बच्चों की देखरेख करने मां को तो साथ में आना पड़ा। 

शालू अब बच्चों के साथ कुसुम भाभी को भी बिठाती और उन्हें ककहरा से लेकर थोड़ा बहुत लिखना पढ़ना सिखाने लगी।

कुसुम बड़े ही मनोयोग से सब सीख रही थी। शालू उसे लेकर ब्यूटीपार्लर गई और उसका हुलिया बदलवा दिया।

विनोद जी तो आते नहीं थे। एक दिन शालू के पति ने अपनी बेटी के जन्मदिन पर उन्हें आमंत्रित किया। वो आये और अपने घर में गए। घंटी बजाने पर एक सजी धजी करीने से साड़ी पहने महिला को देखा। हैरान रह गए। कुसुम भाभी ने बच्चों को आवाज लगाते हुए कहा। देखो,आपके पापा जी आयें हैं। जल्दी आओ। बच्चे दौड़ कर आये और पापा के पैर छूने लगे।

शाम को सब पार्टी में मिले, विनोद जी ने कहा। ये चमत्कार कैसे हो गया। कुसुम तो पहचान में ही नहीं आ रही है। कुसुम भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा, मैंने तो अपनी नियति स्वीकार कर ली थी।पर शालू ने मेरी नियति बदल कर मेरे जीवन में रंग भर दिया।

शालू हंसते हुए बोली, और भैया,अब आप तलाक़ का पेपर तैयार कर लीजिए। क्यों कि अब कुसुम भाभी अंगूठा नहीं हस्ताक्षर करेंगी वो भी अंग्रेजी में।

अब आपको जज और वकील के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।

अरे नहीं,शालू दीदी, आपने तो मेरी नियति ही बदल दी है।सच में,हम यदि कोशिश करें तो नियति भी हमारा साथ देती है।

आज आपको बता दूं कि कुसुम अपनी मर्जी से सब निर्णय लेती है। विनोद जी कोई हस्तक्षेप नहीं करते। साड़ी से सलवार सूट में आ गईं है, फटाफट सबसे बात करतीं हैं। अपने घर की रानी बन गईं हैं। बिना उनसे पूछे विनोद जी कोई काम नहीं करते हैं।

सही है ना,नियति को हम बदल भी सकते हैं ना।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित।

#नियति।

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