Thursday, June 8, 2023
Homeसंगीता श्रीवास्तवनियति का‌ खेल - संगीता श्रीवास्तव

नियति का‌ खेल – संगीता श्रीवास्तव

“आओ बैठो,” उसने गहरी  सांस लेते हुए कहा था। मैं कुर्सी खींचकर उसके सामने बैठ गया ।मैं सोचने लगा, क्या यह वही आमोद है जो मिलते ही गर्मजोशी से गले मिलता था और आज, ऐसा क्यों…..?

   मैं उससे 20 साल बाद मिला था ग्रेजुएशन करने के बाद उसकी नौकरी सेंट्रल गवर्नमेंट में हो गई और वह दिल्ली चला गया। मैं पटना बिहार गवर्नमेंट में। अपनी नौकरी और कुछ परिवारिक व्यस्तता के चलते‌ मैं उससे मिलने दिल्ली नहीं जा पाया था पर वह मुझसे मिलने कई बार आया था।

  ‌‌ ‌ हम दोनों की शादी एक -दो  साल के आगे पीछे हुई थी। मैं उसकी पत्नी से नहीं मिला था। पूछने पर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाता था। उसे एक बेटी थी और मुझे एक बेटा। एक बार मैंने कहा था-“यार मैं अपने बेटे की शादी तुम्हारी बेटी से करुंगा । तब बेटी के बहाने तो आओगे!”

हम दोनों ठठाकर हंसी थे, मुझे याद है।

खामोशी को तोड़ते हुए मैंने कहा, क्या बात है आमोद। तुम तो ऐसे नहीं थे। इतने धीर- गंभीर शांत…….। क्या हुआ??

“अच्छा बैठ, बताता हूं, पहले गरमा- गरम कॉफी  तो हो जाए। ” वह अंदर गया और वापस आ पून: बैठ गया।”तुम बताओ कैसे हो? बेटा और भाभी कुशल से है ना?”,

हां यार , सब कुशल है। अपनी बताओ, भाभी और बिटिया कैसी हैं? मिलवाओ उनसे, मैंने कहा।

       तभी ‌ 25 -26 साल का नौजवान टेबल पर कॉफी रख चला गया। यह कौन है?

“यह सूरज है, मेरी देखभाल करता है।”,




और भाभी जी….. बिटिया…..?

मेरी बात का जवाब देने के बजाय, उसने एक सिगरेट सुलगा लंबी कस ले , धूएं को उड़ाते हुए बोला -“लम्बी कहानी है यार …..!” वह कहने लगा। “मैं नहीं जानता था कि किस्मत मेरे साथ ऐसा खेल खेलेगी।

शादी के कुछ दिन बाद से ही वह बेवजह बात- बात पर झगड़े किया करती थी । मुझे वजह समझ नहीं आ रहा था । ऐसा लगभग 2 महीने तक चलता रहा कोई काम ढंग से नहीं करती थी।खाना भी जैसे -तैसे बनाती थी। कभी -कभी तो बगैर खाना खाये ऑफिस चला जाता था। अक्सर रात में खाना बना हुआ नहीं मिलता। मेरी  समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।

एक शाम जब मैं घर पर पहुंचा तो वह घर पर नहीं थी। चूंकि हम दोनों के पास घर की चाबी थी इसलिए ‌मैं उसके घर पर नहीं होने से अचंभित नहीं हुआ। थोड़ी देर में वह आई और सो गई। सुबह उसे उल्टियां होने लगी। उसे डॉक्टर के पास चलने को कहा तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि ठीक हो जाएगा।”आमोद ने दूसरी सिगरेट सुलगा ली। फिर आगे कहना शुरू किया-“कुछ दिनों बाद फोन पर मैंने उसे किसी से बात करते हुए सुना। वह कह रही थी-“मैं क्या करूं? मेरे पेट में तुम्हारा बच्चा पल रहा है।” कह-कह के वह रोए जा रही थी। उसने फोन स्पीकर को रखा था। उधर से आवाज आ रही थी-“मैं कुछ नहीं जानता, मेरा दिमाग मत खराब करो।”

       बातें सुन मैं पसीना -पसीना हो गया। फिर भी हिम्मत कर अपने आप को संभाला और उसके निकट जा सिर पर हाथ रखते हुए कहा, कुछ नहीं करोगी तुम। बच्चा जन्म लेगा, मैं उसे अपनाऊंगा। कहकर थके कदमों से मैं बिस्तर पर आ पड़ा। मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। जब मेरी नींद खुली, देखा, वह मेरे पैर के पास माथा रख अपने आंसुओं से मेरे पैरों को भिगोए जा रही है। मैं हड़बड़ा कर उठा। वह मुझसे लिपट फफक- फफक कर रोने लगी। मुझे माफ़ कर दो….. मैंने बहुत बड़ा पाप कर तुम्हें छला है…..‌।




मैं,मन ही मन माफ़ कर उसे जोर से अपने बाहुपाश में बांध लिया।

       धीरे -धीरे वह मुझे चाहने लगी।मैं भी उसे चाहने लगा।हम दोनों में प्यार बढ़ने लगा।” ‌ वह चुप हो गया……। फिर उसने कहना शुरू किया। “उसने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया। हमारा घर बेटी की किलकारियां से गुंजित होने लगा। हम बहुत खुश थे। पर यह खुशी भी भगवान को रास नहीं आई।”

           वह फिर खामोश हो गया……।

   उसकी खामोशी को तोड़ते हुए मैंने पूछा, फिर?

    “एक रोड एक्सीडेंट में मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई। हम बाप बेटी बच गए। बेटी 5 साल की थी।” कहते हुए उसकी आंखें भर गईं। मैं भी द्रवित हो उठा।

      “जैसे -तैसे बेटी को पाल -पोस कर 10 साल का किया। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक गंभीर बीमारी ने उसे भी छीन लिया।”

                     उसके बाद एक लंबी खामोशी……. हम दोनों खामोश हो गए।

“उसने कहा, अब भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मुझे भी इस दुनिया से उठा ले।”

  उसे सांत्वना देने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं थे………।

संगीता श्रीवास्तव

    लखनऊ

   ‌‌ स्वरचित, अप्रकाशित।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

error: Content is Copyright protected !!