नियति : Best Hindi Story

शालू की शादी अचानक से तय हो गई थी। एक शादी समारोह में ही लड़के के मां बाप ने अपने बेटे से शादी के लिए ऑफर किया था। शालू थी ही ऐसी खूबसूरत! जो भी देखे मुग्ध हो जाए ।खूबसूरत ही नहीं, खूबसूरती के साथ-साथ पढ़ाई- लिखाई और हर काम में दक्ष। भला कौन इसे पसंद ना करेगा?

शालू के पापा को जब घर -वर पसंद आ ही गया तो उन्होंने सोचा देरी किस बात की! बी.ए.पास कर ही ली है और आगे की पढ़ाई में बाधा नहीं आएगी, लड़के की पापा ने ऐसा आश्वासन दिया था। बहुत ही  धनाढ़, प्रतिष्ठित और संस्कारी थे लड़के वाले। लड़का स्वयं प्रोफेसर था।

अचानक से ,सब कुछ हो जाने से, शालू को समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करें? कहे तो कैसे और किससे कहे? यही कहे कि वह कॉलेज के सहपाठी, सुशांत से प्रेम करती है! हालांकि सुशांत संयोग से स्वजातीय था फिर भी, शालू के मां- बाप इस रिश्ते को मंजूरी नहीं देते क्योंकि वे प्रेम- विवाह को पसंद नहीं करते थे।

फिर भी शालू सोचती  रहती थी धीरे -धीरे मां बाप को राजी‌ कर लूंगी । यहां तो सब कुछ उसके सोच से परे हो गया।वह मारे डर के अपने प्रेम की बात को जेहन में दबाएं घुटने लगी। उसे ना कोई रास्ता और ना ही कोई सहारा नजर आ रहा था।

     इधर सुशांत की भी हालत अच्छी नहीं थी।वह किसी भी हाल में शालू को खोना नहीं चाहता था। वही स्थिति शालू की भी थी। वह बहुत खामोश रहने लगी थी। मां ने कई बार पूछा भी,”क्या बात है बेटा, क्यों खामोश रह रही हो। कोई परेशानी हो तो बताओ। “नहीं मां, कुछ भी नहीं।” कह कर बात टाल देती।

शालू के घर वालों को लगता था शायद, हमसे बिछड़ने का गम है। मां कहती थी,”बेटा क्यों परेशान होती हो, हम तो मिलते रहेंगे, आना -जाना तो लगा ही रहेगा। वैसे लड़का और उसके परिवार वाले निहायत बहुत अच्छे हैं । उस घर में तू राज करेगी राज!” मां का इतना कहना था कि शालू मां को पकड़ जोर-जोर से रोने लगी ।

मां भी रो पड़ी थी। मां को क्या पता इन आंसूओं की धार का मूल कारण कुछ और है। उन्हें क्या पता, बेटी प्रेम जाल में किस कदर उलझी हुई है! जैसे-जैसे दिन नजदीक आ रहा था, शालू और सुशांत के बीच फोन पर अलग ही खिचड़ी पक रही थी।

शादी के मुश्किल से 15 दिन शेष रह गए थे। शादी के कार्ड बंट चुके थे। घर में चहल-पहल बढ़  गई थी और इधर शालू के ह्रदय में…..।

एक दिन उसकी भाभी ने छेड़ते हुए कहा,”क्यों ननद रानी, तुम्हें देख कर तो ननदोई जी लट्टू हो जाएंगे लट्टू! गिर्र्न…गिर्र्न….  घूमते रहेंगे तुम्हारे ईर्द-गिर्द!”शालू झल्लाती हुई बोली, भाभी  मत छेड़ो मुझे, नहीं अच्छा लग रहा। अकेले रहने दो मुझे।”भाभी कुछ समझ नहीं पाई।मन नहीं मन बोली,”क्या हो गया है इस लड़की को! पहले तो ऐसी नहीं थी!” खैर, बात आया -गया ।

इधर सुशांत की मां उसे समझा रही थी।”जाने दे बेटा, भूलने की कोशिश कर। यदि तुम्हारी नौकरी हो गई होती तो बहुत पहले ही तुम्हारे रिश्ते के लिए शालू के घर गई होती। तुम्हें तो पता ही है बेटा, शालू के पापा नौकरी वाला लड़का तलाश रहे थे। अब जब नौकरी वाला लड़का मिल गया तो क्यों ना करें शादी! उन्हें अपनी और लड़कियों की भी तो  शादी करनी है!तूही बता??

 शालू ने अपने घर में तुम्हारे और अपने प्रेम की चर्चा तो की नहीं थी जिससे कि उसके मां बाप को पता चले। जब सब कुछ अचानक से हो गया तो वह कर भी क्या सकती है भला ? इसलिए बेटा, अब संभाल ले अपने आप को!

उस दिन कॉलेज के किसी काम के बहाने से शालू घर से निकली थी। देखते- देखते यह खबर पूरे मुहल्ले में हवा की तरफ फैल  गई कि शालू और सुशांत ने कोर्ट मैरिज कर ली ।चारों तरफ इसके चर्चे और कानाफूसी होने लगी थीं।  

“नाक कटा दिया इस लड़की ने। भला क्या बीत रही होगी शालू के मां -बाप और घरवालों पर! मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा मां बाप को!  बेऔलाद अच्छा लेकिन ऐसी नालायक, दुष्ट ‌औलाद भगवान किसी को ना दे!”

तब शादी के मात्र एक सप्ताह बचे थे। शालू के परिवार वालों का रो-रोकर बूरा हाल था। उसकी मां रो -रो कर कह रही थी,”तूने बताया क्यों नहीं शालू, कर देते हम शादी  सुशांत के साथ, यह दिन क्यों दिखाया तुमने! तूने जीते जी मार डाला।”रह-रह के बेहोश हो जा रही थी।

बहुत उधेड़बुन के बाद, शालू के पापा इस निर्णय पर पहुंचे कि लड़के वालों को इस घटना ‌के बारे में बता देनी चाहिए।

बहुत हिम्मत करके शालू के पापा लड़के वाले के यहां गए। लड़के के पापा ने उन्हें ‌देख आश्चर्य से पूछा,”भाई साहब खैरियत तो है? बगैर कोई सूचना के आप….।” 

इतना कहना था कि शालू के पापा उनके पैर पकड़ रोने लगे। “अरे क्या हुआ, कुछ तो बताइए? क्या कोई हादसा हो गई? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा।”

“भाई साहब मैं किस मुंह से माफी मांगूं। मेरी बेटी ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।”

“क्या हुआ , बताइए तो सही!”लड़के के पापा ने कहा। “मेरी बेटी किसी लड़के से प्रेम करती थी और कल दोनों ने कोर्ट मैरिज कर लिया। मुंह में कालिख पोत दिया हमारे। हमें इनके प्रेम की भनक तक नहीं थी भाईसाहब!”

कुछ देर खामोशी बनी रही।उस गमगीन माहौल को तोड़ते हुए लड़के के पापा ने कहा,”क्या ऐसा हो सकता है,आपकी दूसरी लड़की से मेरे लड़के की शादी कर दी जाए यदि वह तैयार हो जाती है?बाकी सब मैं मैनेज कर लूंगा। मैं स्वयं आपकी लड़की से बात करूंगा।”

शालू के पापा घर आ अपनी बेटी स्नेहा से हाथ जोड़ अपना प्रस्ताव रखा।” बेटा तू ही हमारी बची हुई लाज और इज्जत बचा सकती है। मैं जबरदस्ती नहीं कर रहा । तुम्हारी मर्जी …….।”पहले तो पापा को पकड़ खूब रोई। कुछ बोली नहीं।रात भर करवटें बदलती रही।

अगले दिन लड़के के पापा आए। स्नेहा सामने आई। उसकी आंखें सूजी हुईं थीं। उसने कहा,”यदि मेरी वजह से दो घरों की इज्जत बच सकती है तो मैं शादी के लिए तैयार हूं। शायद,नियति को यही मंजूर है।” बेटी की बातें सुन,  पापा की स्थिति कुछ खुशी और कुछ ग़म वाली हो गई थी।

 उसी तिथि में स्नेहा की शादी हो गई। शादी के बाद  वह ससुराल पहुंची।सारे रश्मों-रिवाज के बाद जब सारे रिश्तेदार चले गए तब उसके ससुर ने उसे बुलाया । उन्होंने कहा,”तुम मेरी बहू  नहीं, बेटी हो। तुमने दोनों परिवारों के इज्जत को अपनी इच्छाओं की आहूति दे बचाया। एक बेटी ने इज्जत उछाला दूसरे ने इज्जत को संभाला। धन्य है तू बेटा!”कहकर उसे गले लगा लिया। दोनों ही के आंखों से‌‌ आंसू बहने लगे थे।

 संगीता श्रीवास्तव

 लखनऊ

 स्वरचित, अप्रकाशित।

#नियति

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