नियति

उसको मरे हुए तीन महीने हो गए यही शव्द बोले थे दोस्त ने जब मैंने उसका पता करने के लिए भेज था।

बात करीब आठ साल पुरानी है मेरी नौकरी लगी पठानकोट शहर में हालांकि प्राइवेट नौकरी थी तनख्वाह भी नॉर्मल ही थी। मैं बहां गया एक दो दिन होटल में रुककर कमरे की तलाश की क्योंकि कोई जानने वाला था नही नही बहां। थोड़ा अलष करने पर शहर से थोड़ा हटकर एक गांव था बहां दुकान वाले कि मदद से कमरा किराये पर मिल गया। 

कमरे के दो दरवाजे थे एक घर के आंगन की तरफ खुलता था एक गली की की तरफ कमरे के ठीक पीछे गली थी जिसमे कोई कोई आदमी गुजरता था क्योंकि गली आगे जाकर बन्द हो जाती थी सिर्फ कुछ घर ही थे आगे जिनके लोग आते जाते थे। मैं समान उठाकर कमरे में आ गया समान की सेटिंग के लिए रविवार का इंतजार कर रहा था। रविवार सुबह ही मैन सारा सामान एक साइड करके कमर धोने लगा तो गली वाला दरबाजा खोल दिया। 

अभी दो ही रह था कि देखा एक खूबसूरत सी लड़की गली में झाड़ू मार रही थी जैसे ही मेरी नजर उसपर पड़ी उसने भी ठीक उसी बक्त मेरी तरफ़ देखा नजर हटा ली जबतक बो झाड़ू लगाती रही दोनों बीच बीच मे एक दूसरे की तरफ देखते रहे नजरें हटाते रहे। मेरे साथ ये पहली बार हो रहा था अचानक से सबकुछ खूबसूरत लगने लगा था हर चीज चसीन हो गई थी और मैं बेसब्री से इंतज़ार करने लगा कि कब बो दोवारा घर से निकले और मैं  उसे देख पाऊं।




 बस अब जब भी बो घर से निकलती उसके गेट की खटाक से आवाज आती पता नही जानबूझकर बो गेट जोर से बन्द करती थी गया गेट ऐसा ही था। गेट की आवाज मेरे लिए सिग्नल की तरह होती जब भी बजता मैं उठकर खिड़की में खड़ा हो जाता। कुछ दिन बीत गए दिन मैं एक बेचैनी सी थी मैं उससे कहना चाहता था बात करना चाहता था मगर कैसे? 

मैन एक खत लिखा उसमे लिखा कि ” मुझे नही पता ये प्यार का इजहार कैसे होता है मगर जबसे आपको देखा है मेरा दिल और किसी चीज को देखने को नही करता अगर आपको मैं पसंद हूँ तो आप प्लीज जवाब देना नही तो मेरी पहली और आखरी गलती समझके माफ कर देना । आज के बाद में आपका कभी परेशान नही करूंगा ये मेरा वायदा है। 

क्योंकि मैं नही चाहता आपके घर वाले मुझे मार मार के यहां से भगा दें” काफी दिन तक बो खत पकड़ाने की हिम्मत नही हुई एक दिन दोपहर के समय बो दुकान से कुछ लेने गई तो मैंने सोचा जैसे ही बो बापिस आएगी ये खत उसे पकड़ा दूंगा चाहे जो हो जाए। 

मैं खिड़की पे खड़ा हो गया पेंसिल से जाली में छेद किया और खत को मोड़कर छोटा बना दिया जैसे ही वो आई मैने जाली में जरा हाथ मारकर खत उस छेद में डाल कर उसे देखने लगा उसने आगे पीछे देखा और खत मेरे हाथ से छीनकर अपने गले के दुप्पटे में डाल लिया।मैं खड़े खड़े बेड पर गिर पड़ा ऐसा लग रहा था मैं आसमान में उड़ रहा  था मैं बो खुशी शव्दों में बयान नही कर सकता। एक एहसास था अलग सी मुस्कान थी एक चमक थी मेरे चेहरे पर मेरे पैर जमीन पर नही थे। 




लेकिन अगले दिन जैसे ही बो झाड़ू लगाने लगी उसने मेरी तरफ देखकर नजरअंदाज किया मैं परेशान हो उठा जैसे ही बो कमरे के पास आई मैन पुछा क्या हुआ कुछ तो बताओ प्लीज। बो बोली खत में क्या लिखा था कि अगर मैं तुम्हे पसंद करती हूं तो ठीक नही तो तुम मुझे दोवारा परेशान नही करोगे इसका क्या मतलब की तजमे मुझे नही चाहते सिर्फ मुझपर है कि चाहूं या न। ये सुनकर मैन हाथ जोड़कर कहा कि पहली बार है मुझे कौन सा तजुर्बा है खत लिखने का जो दिल मे आया लिख दिया। फिर बो हंसकर चली गई बस अब हमारी प्यार की शुरुआत हो चुकी थी। एक दूसरे को देखने के बहाने ढूंढते कभी बो मेरे मकान मालकिन के पास आकर बैठ जाती कभी दुकान जाने के बक्त मैं उसके पीछे चल जाता कभी सुबह सुबह मंदिर साथ निकल जाते। मगर हमारा प्यार दूर से हेलो हाय तक ही सीमित था मगर उसमे जो मजा था वो शायद किसी और चीज में नही। 

एकदिन अचानक गांव के बिजली का ट्रांसफार्मर जल गया पूरा गांव अंधेरे में था गली में अंधेरा घर मे अंधेरा। दो दिन तक लाइट नही आई जैसे ही ट्रांसफार्मर फिक्स करते जल जाता फिर गांव वालों ने मिलकर हलवा प्रसाद बनाकर मंदिर में पूजा की योयना बनाई । 

अब तक मेरा उस गांव में मेल मिलाप गांव के सदस्य की तरह हो गया था सब मुझे जानते थे शादी बिबाह समारोह में बुलाते थे। आज भी मैं पूरा दिन मंदिर के प्रोग्राम में शामिल था। शाम को सात बजे बाहर अंधेरा घ अचानक किसी ने दरवाजे पे हल्की दस्तक दी मैने दरवाजा खोला तो बाहर बो खड़ी थी धीरे से बोली सामने घर मे प्रसाद देने जा रही थी सोच आपको भी खिला दूँ।

 उसने मुझे मुहं खोलने को कहा और अपने हाथों से थोड़ा सा हलवा मेरे मुहं में डाल दिया। मैने आज पहली बार उसे गले से लगाया था पत नही इतनी हिम्मत कैसे कर ली थी । अब हम दोनों का प्यार बहुत गहरा हो चुका था मेरी मकान मालकिन को भी भनक लग चुकी थी बो बातों ही बातों में अहसास करवा देती की बो जानती है। हमारा भी एकदूसरे के बिना रहना अब मुश्किल था हम सारी जिंदगी साथ बिताने के सपने देखने लगे थे मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था एक दिन अचानक मेरा ट्रांसफर दूसरे एरिया में कर दिया।



 मैं परेशान हो उठा मगर जैसे कैसे मैने उसे बताया की मेरा ट्रांसफर हो गया है मुझे ये कमरा छोड़कर जाना होगा अगले दिन जैसे ही मैं डयूटी जाने लगा तो अचानक मकान मालकिन ने उसकी बाजू पकड़कर मेरे कमरे में भेजकर बोली कि मेरा दिमाग क्यों खा रही है जो बात करनी है सामने बैठकर कर लो।

 मैं हक्का बक्का रह गया ये क्या ये बात यहां तक आ गई थी बो आई बोली बताओ क्या सोचा है मैन बोला कि प्लीज मेरी मजबूरी को समझो मैं कैसे रह पाऊंगा यहाँ जब डयूटी दूसरी जगह है। उसने कहा कि ठीक है आज के बाद में कभी बात नही करूंगी और न तुम कोशिश करना। मैने काफी कोशिश की समझाने की मगर बो न मानी। 

दो दिन बाद मैंने कमर खाली कर दिया दूसरी जगह चला गया मगर दो दिन भी काट न पाया और पागलो की तरह हो गया । आज आफिस गया तो मेरे मोबाइल से लैंडलाइन नंबर से फ़ोन आया क्योंकि उसके पास फ़ोन नही था तो जैसे मैंने उठाया सामने से आवाज आई बदतमीज ऐसे कौन छोड़कर जाता है तुम्हे पता है मेरी हालत क्या है हर बक्त मैं आपके आने का इंतज़ार करती हूं और रोने लगी मेरी आँखें भी बरसने लगी जी कर रहा था जोर जोर से चिल्लाऊं मगर दफ्तर में और लोग भी थे जो मेरी तरफ देख रहे थे ।

 उसने कहा कि चलो भाग चलते हैं तुम बताओ कहाँ आना है मैं आ जाऊँगी। मगर मैं इस हालत में नही था कि उसको संभाल सकता क्यों तनख्वाह इतनी नहीं थी ऊपर से बड़ा भाई कुंवारा था घर की हालत भी बहुत अच्छी नही थी। मैं एक तरफ जाकर समझाने लगा कि देखो अगर हम भागेंगे तो तुम्हारे घर वालो पर क्या बीतेगी मैं गांव का रहने वाला हूँ मेरे साथ तुम्हे क्या सुख मिलेगा कल को बच्चे होंगे बो नाना नानी के बारे पूछेंगे हम क्या जवाब देंगे ऐसे कई सवाल मैंने पूछकर उसको कहा कि थोड़ा सोच लो फिर बाद में फैंसला करेंगे।

  ये उसका पहला और आखरी फोन था जब इतना खुलकर और लम्बी बात हुई थी। अब मैं शाम को कमरे में गया मेरा मन बिल्कुल नही लग रहा था जैसे कैसे रात गुजारी सुबह जाकर रिजाइन देकर घर चला गया सोच शायद घर जाकर उसको भूल जाऊंगा। मगर ऐसा नही हुआ समय के साथ उसकी याद और गहरी होती गई और मैं पागलो की तरह गुमसुम चुपचाप रहने लगा कुछ महीने बाद भाई की शादी हो गई और मैं घर में सिर्फ पशु चराकर चुपचाप अपने कमरे में रहता। तभी पंचायत में सरकारी नौकरी निकली जो मेरिट के हिसाब से मुझे मिल गई। 




अब मेरा मन थोड़ा खुश था सबकुछ सैटल हो चुका था भाई की शादी मेरी पक्की नौकरी सबकुछ था। अब मैने ठान लिया कि शादी तो उसी से करूंगा। मेरा एक दोस्त था परमिंदर मैने उसको फोन किया और कहा कि जाओ मेरी मकान मालकिन के पास जाकर मेरा संदेश दे देना की मैं जल्द आऊंगा और शादी की बात करूंगा और जाकर हो सके तो उससे भी बात करवाना कई महीने हो गए आवाज तक नही सुनी। मैं अब खुश था कि आखिर हम दोंनो अब एक हो जाएंगे और हमे अब कोई रोक नही सकता अगर घरवाले न भी माने तो मैं इतना समर्थ हूँ कि उसे खुश रख सकूंगा। 

मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था परमिंदर बहां गया तो जरूर मगर जो उसने बताया बो अबिश्वस्नीय था उसने बताया कि मेरे आने के एक महीने बाद ही उसको निमोनिया हो गया था जिसका इलाज करवाया मगर कोई फर्क न पड़ा जिससे उसे पीलिया हो गया और उसके अंगों ने काम करना बंद कर दिया आज उसको मरे हुए पांच महीनों से ऊपर हो गए। के सुनकर मेरी आँखें बरसने लगी थी लेकिन मैं कुछ नही कर पाया उसकी मौत का जिम्मेदार भी मैं खुद को ही मानता हूं अब जब बो कभी सपने में दिखती है तो बस यही पुछती है कि मेरे साथ ऐसा क्यों किया।।

              अमित रत्ता

     अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

#नियति

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