देखो तो…
फिर से रामलाल जी का बेटा नौकरी की तलाश में जा रहा है …
हर दिन निकलता है..
और रात में घर लौट ही आता है हताश होकर…
रामलाल जी के सोने के बाद चुपचाप कमरे में जाकर सो जाता है…
काहे रामलाल जी इसके पीछे पड़े है कि नौकरी लगे…
बेचारे का दिमाग भी नहीं लग रहा पढ़ाई लिखाई में…
तो क्या किया जाए…
तुम्हें क्या पड़ी है …
अपने काम से मतलब रखो…
प्रयास तो कर रहा है वह लड़का…
पड़ोसी रवि शंकर जी अपनी पत्नी से बोले…
तभी विनीत को बाहर जाता हुआ देख उसके पिता दयाल जी ने अपनी बड़ी बड़ी आँखें दिखाते हुए टोका …
फिर चल दिया मेरी आंखों में धूल झोंक कर….
तेरा हर दिन का हो गया है…
सुबह उठकर सांड की तरह खाता है, पीता है..
और नौकरी की तलाश के बहाने से आवारागर्दी करने निकल जाता है …
जब ढंग की डिग्री ही नहीं है…
अच्छे नंबर ही नहीं है तो कहां से नौकरी मिलेगी तुझ नालायक को …
अब मैं तेरा खर्चा नहीं उठा सकता …
वह जो राजन ने इंटर पास लड़की का रिश्ता बताया था ,,मैं उसी से शादी कर दे रहा हूं …
10 लाख दे रहा हैं उसका बाप तुझ जैसे बेरोजगार को…
फुल सामान अलग…
इस तरह का रिश्ता कहीं ना मिलेगा…
विनीत इतनी देर से जो चुप खड़ा था, अब बोला…
क्या कह रहे है पापा आप….
वह लड़की नहीं हाथी हैं…
100 किलो वजन होगा उसमें….
कितनी मोटी है ….
बात सिर्फ पढ़ाई की ही नहीं..
उसे खिला भी ना पाऊंगा मैं…
कम से कम मेरे साथ उसका मैच तो देखिए …
क्या कहा गधे तूने…
मैच …
मैच तो तेरा किसी के साथ नहीं मिलेगा …
तू एक निकम्मा ,बेरोजगार लड़का..
आज इतने मिल रहे हैं पैसे..
कल इतने भी नहीं मिलेंगे…
विनीत गुस्सा होकर घर के अंदर आ गया…
कर दिया फिर से मूड खराब…
अब मैं कहीं नहीं जा रहा …
मां ,,पापा हर दिन शादी को लेकर के मुझे धमकी देते रहते हैं….
अगर ऐसा ही रहा तो मैं एक दिन घर से भाग जाऊंगा…
तो किसने मना किया है …
भाग जा…
मैं तुझे नहीं बुलाऊंगा…
लेकिन तुझे इस तरह बैठा कर नहीं खिला सकता…
या तो मजदूरी कर या किसी दुकान पर काम…
ठीक है…
अब मैं वापस घर में आऊंगा ही नहीं….
बुलाने से भी नहीं….
इतने गुस्से में विनीत ने अपने कई सारे कपड़े पैक किये…
एक सूटकेस में रखें …
और मां के पास चुपचाप आया….
ए मां ….
दो हजार रुपए हो तो दे दो….
तू कहां जा रहा है …??
कहीं भी ….
जा रहा हूं बस…
लेकिन अब इस घर में तब तक नहीं आऊंगा …
जब तक मेरी नौकरी न लग जाए …
नहीं तो पापा मेरी उस मोटी लड़की से शादी कर देंगे…
कहां जाएगा मेरा लाल….
यहीं पर रह…
तेरे पापा का गुस्सा बस थोड़ी देर का ही होता है…
नहीं मां पिछले 1 साल से अब गुस्सा थोड़ी देर का नहीं रहा उनका …
हमेशा मेरा अपमान करते रहते हैं …
मोहल्ले वाले भी सुनकर हंसते हैं…
देखो सामने अभी भी लोग खड़े हुए हैं…
मैं जा रहा हूं मां ….
अपनी मां के पैर छूकर विनीत निकलने को हुआ…
कहां जा रहा है …
जाएगा…
अभी 4 घंटे पीछे फिर वापस लौट आएगा…
जाने दो..
पिता दयाल जी बोले…
विनीत आंखों में आंसू भर घर से निकल गया….
दयाल जी और उनकी पत्नी अभी भी झांक कर बाहर गेट की तरफ देख रहे थे…
कि शायद वह लौट आएगा…
वह अपना अखबार पढ़ने में व्यस्त हो गए…
घबराओ नहीं ,,आ जाएगा…
पत्नी से बोले..
दो से चार घंटे हो गए…
चार से 8 घंटे हो गए…
विनीत नहीं आया…
अब तो दयाल जी और उनकी पत्नी पर खाना भी नहीं खाया जा रहा था…
मैंने कहा था आपसे…
इतना अपमान मत करो ….
जवान लड़का है…
अगर उसने कुछ गलत कर लिया…
तो मैं जब आपको जीवन भर माफ नहीं करुंगी…
समझ लीजिएगा …
मेरा बेटा बहुत सीधा हैं..
पता नहीं कहां होगा…
ऐसा कुछ नहीं है …
हो सकता है रिद्धी या किसी रिश्तेदार के घर चल गया हो….
जरा फोन लगाओ सबको एक-एक कर…
सभी रिश्तेदारों को फोन लगाया गया…
लेकिन विनीत कहीं पर भी नहीं था…
अब तो दोनों घबरा गए ….
पुलिस स्टेशन में जाकर रिपोर्ट भी दर्ज कराई…
लेकिन उसका भी कोई भी परिणाम नहीं मिला…
ऐसे ही 1 साल गुजर गया…
2 साल गुजर गये …
अभी तक विनीत की कोई खबर नहीं आयी…
अब तो दयाल जी और उनकी पत्नी के लिए एक एक दिन भारी पड़ रहा था…
दोनों बेटे की जुदाई में बहुत कमजोर हो गये थे….
दो साल बाद दयाल जी के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी…
एक गाड़ी आकर रुकी थी…
दरवाजा खटखटाया किसी ने …
दरवाजा खोलते ही सामने विनीत खड़ा था …
पिता दयाल जी का गुस्सा छूमंतर हो चुका था…
मत कर तू नौकरी …
मत कर तू उस मोटी लड़की से शादी…
पर तू घर में ही रह मेरे लाल…
कहां था दो साल से…
तुझे हमारी याद नहीं आयी…??
पूरे 2 साल हो गये…
तूने कोई खबर भी नहीं दी…
तो पापा क्या करता …
आपने भी तो हद कर दी थी…
नौकरी नहीं लग रही थी…
मैं भी बहुत परेशान था …
तो तू कहां गया था…??
ये तो बता…
पापा मैं बेंगलुरु गया था…
वहां प्राइवेट नौकरी करी..
कुछ अच्छा हासिल नहीं हुआ..
फिर धीरे-धीरे तैयारी भी करता रहा ..
और पार्ट टाइम रात को नौकरी भी करता रहा..
एक कमरा लेकर रहने लगा…
ईश्वर की कृपा से चार महीने पहले अपने ही स्टेट में पुलिस की परीक्षा थी ..
उसमें पास हो गया…
और आज मैं पुलिस में भर्ती हो गया हूं पापा…
क्या …??
आप खुश नहीं मुझे देखकर …
बहुत खुश हूं मेरे लाल…
लेकिन सच में मैंने तेरा बहुत अपमान किया…
मुझे माफ कर दे …
आज के बाद हमें छोड़कर ऐसे कभी मत जाना…
नहीं नहीं पापा ….
अब नहीं ज़ाऊंगा…
शायद आपका अपमान ही मेरे लिए वरदान बन गया …
जो आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हो गया…
सही कहा गया है कि मां-बाप आपको इसलिए नहीं टोकते कि वह आपका बुरा चाहते हैं…
वह तो बस आप सही दिशा में सही ओर चलते रहो…इसलिये डांटते हैं…
बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा हैं…
अब तो पुलिस में भी लग गया है ..
तो तूने शादी भी कर ली होगी…??
नहीं पापा ..
आप लोगों की मर्जी के बिना कैसे कर लूंगा…
अब आप जहां कहेंगे , शादी कर लूंगा…
बस मोटी लड़की से नहीं …
दोनों पति-पत्नी ठहाका मार कर हंसने लगे …
ठीक है …
अब हम तेरी मर्जी की लड़की से ही शादी करेंगे …
तुझे दिखा देंगे..
तभी करेंगे …
विनीत शरमा गया ….
अपने मां पिता के गले लग गया …
आज दो साल बाद दयाल जी और उनकी पत्नी चैन की नींद सोये थे…
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा
मौलिक
स्वरचित
अप्रकाशित
#अपमान बना वरदान