नेमप्लेट पर हाउसवाइफ का नाम – अर्पणा जायसवाल
- Betiyan Team
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- on Dec 26, 2022
“मैम, आपका पार्सल है” कूरियर वाला गेट पर खड़ा था। कृतिका अपना पार्सल लेकर अंदर जाने लगी तो कूरियर वाले ने उसे आवाज दी, “मैम, अगर आप नाराज ना हो तो एक बात पूछू?”
कृतिका ने पहले उसे ऊपर से नीचे की तरफ देखा और फिर हौले से मुस्कुरा कर बोली, “मैम आपको देख कर लगता है कि आप हाउसवाइफ हैं फिर भी नेमप्लेट पर आपका नाम भी है,आप बहुत लकी हैं वरना मैनें तो सिर्फ घर के पुरुषों या फिर कामकाजी औरतों के नाम का ही नेमप्लेट देखा है।”
कूरियर वाले की बात सुन कृतिका का चेहरा खुशी से खिल गया फिर जैसे उसे याद आया कि कूरियर वालों से ज्यादा बात नहीं करते क्योंकि बातों ही बातों में वो लोग घर का भेद लेकर लूटपाट करते हैं। उसने गुस्से से पूछा, “तुम्हें कैसे पता कि मैं हाउसवाइफ हूं? तुम मुझ पर नज़र रख रहे हो। अभी पुलिस को बुलाती हूं।”
“पुलिस का नाम सुनकर कूरियर वाला डर गया, “प्लीज मैम, आप ऐसा मत करिए। मैनें इसलिये कहा क्योंकि अगर आप वर्किंग वीमेन होती तो पार्सल देने का समय सुबह या रात 9 बजे से पहले का चुनतीं लेकिन उसमें लिखा था एनीटाईम, इसलिये और सच कह रहा हूं कि मुझे दिल से खुशी हुयी कि आपका परिवार आपकी अहमियत करता है वरना…(उसने भी सस्पेंस छोड़ दिया)
कृतिका “वरना” में छिपा तर्ज अच्छे से समझ गयी और क्यों ना समझती!!! उसे अच्छे से याद है कि बीते सालों में उसे अपने लिए क्या नहीं सुनना पड़ा। सास-ससुर के लिए वो आलसी, कामचोर, लापरवाह और सुस्त बहू थी जो कोई भी काम ढंग से नहीं करती थी। पति शेखर के पास उसके लिए हमेशा एक ही जुमला होता था कि “तुम करती क्या हो? कोई भी काम तुम ठीक से नहीं कर सकती”।
कृतिका इन सभी बातों को इग्नोर करके अपने फर्ज को पूरा कर रही थी। घर -परिवार, बाहर का काम, बच्चों को पालना, सास-ससुर की देखभाल और उनके हेल्थ इशू सभी वो अकेले ही ना जाने कितनों सालों तक संभालती रही और फिर बड़ी बेटी के बोर्ड एग्ज़ाम से पहले प्रिबोर्ड में उसके नंबर कम आए या कहे कि फ़ेल हो गयी तो सभी की उंगलिया एक साथ कृतिका के ऊपर उठ गयी कि “तुम दिन भर करती ही क्या हो? बेटी की तरफ भी तुम ध्यान नहीं दे सकती। तुमने आज तक किया ही क्या है? बच्चों को भी नहीं संभाल पा रही हो। बड़े हो गए बच्चे लेकिन तुमने इन्हें कुछ नहीं सीखाया और ना ही पढ़ा पा रही हो।” शेखर की बातों को सुन कर सास-ससुर क्यों चुप रहते वो भी शुरु हो गये, “अरे हर काम के लिए मेड लगा ली है आजकल किटी पार्टी से फुर्सत मिलें तो बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दे।”
आज तक सबके तानों को सुनती आयी कृतिका को ना जाने क्यों उस दिन शेखर और सास-ससुर की बातें दिल में चुभ गयी और वो रात उसके लिए सबसे लंबी रात थी। वो यही सोचती रही कि क्या सचमुच वो कुछ नहीं करती है और अगर इतने सालों से वो घर को ठीक से नहीं संभाल पा रही है तो वो यहां क्यों है? कोई भी उससे खुश नहीं है तो वो क्यों और किसके लिए यहां हूं।
दूसरे दिन सुबह सभी कृतिका को खोज रहे थे लेकिन कृतिका घर पर नहीं थी। तभी शेखर के मोबाइल पर एक कृतिका का विडियो मेसेज आया। उसने उसे खोला और सभी को दिखाने लगा। कृतिका सामने थी, “रात भर बहुत सोचा क्योंकि पहली बार सोचा इसलिये पूरी रात सोचने के बाद मुझे समझ आया कि सचमुच मैं आपके घर में करती ही क्या हूं। कुछ नहीं… एक लड़की एक अजनबी का हाथ पकड़कर बिना कुछ सोचे-समझे अपनों को हमेशा के लिए छोड़कर उसके घर को अपनाने चली आती है। आते ही उसके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ डाल दिया जाता है यह कह कर कि बहुत संभाल लिया अब तुम अपना घर संभालो। वो पूरी शिद्दत से कोशिश करती है अपनी सभी जिम्मेदारियों को पूरा करने की। सास-ससुर, पति और सभी रिश्तेदारों के नखरे सहते हुए, उनकी मर्जी का करते हुए वो खुद की मर्जी को भी भूल गयी। मम्मी-पापा को कौन-सी दवाई देना है, किस डॉक्टर को दिखाना है सब मैं मैनेज करती रही। बच्चों के स्कूल, उनके प्रोजेक्ट और उनके सभी कार्यविधियों को मैं ही मैनेज करती रही। आप सभी की हेल्थ ठीक रहे इसके लिए हमेशा आपको अच्छा और हेल्दी खाना खिलाने की कोशिश की। आप में से किसी को भी मामूली सिरदर्द भी हो जाए तो खुद की बीमारी भी भूल जाती थी। जब, जहां जिसने और जो कुछ भी मुझसे आशा रखी हमेशा पूरी की लेकिन फिर भी हमेशा मुझें कहा गया कि मैनें किया क्या? मैं करती ही क्या हूं? बेटी के नंबर कम आए तो मेरा दोष और वही बेटे ने क्लास में टॉप किया तो यह आप सब की उपलब्धि बन गयी। सबकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखने वाली की क्या कभी किसी ने पसंद-नापसंद जानने की कोशिश की नहीं, फिर भी मैनें किया क्या है? सच ही है एक औरत हाउसवाइफ बनकर कभी अपने लिए मान-सम्मान नहीं कमा सकती। आप लोगों को खुश करते-करते मैं खुद को भूल गयी लेकिन मैं फ़ेल हो गयी और आप सभी को खुश नहीं रख पायी। इसलिये अब मैं अपने लिए जियूंगी और खुद को खुश रखूंगी। उम्मीद है कि अब मम्मी-पापा को अपनी लापरवाह, कामचोर, आलसी और सुस्त बहू को नहीं झेलना पड़ेगा। आपको भी मैं कोई काम की नहीं लगती इसलिये मैं अब जा रही हूं। आप सभी अपना ख्याल रखना।”
कृतिका की बातें सुनकर सभी चुप हो गये तभी सासूजी चिल्लायीं, “दिमाग खराब हो गया है बहू का!!! मैं सही थी कि वो लापरवाह और कामचोर है। जाने दे उसे जहां जाना है। वो क्या समझती है कि हम उसके भरोसे बैठे हैं। अरे जब वो नहीं थी तो मैं ही अकेले सब मैनेज करती थी। मैं कर लूंगी सब।”
सासूजी ने बोल तो दिया लेकिन वो भी यह बात अच्छे से जानती थी कि पिछ्ले पंद्रह सालों से कृतिका ही घर-बाहर संभाल रही थी। वो तो सिर्फ हुक्म देती थी और बहू की गलतियां निकालती थी जिसमें वो माहिर भी हो चुकी थी।
अनीता जी किचन में गयी और बच्चों के लिए नाश्ता-खाना बनाने लगी। अब आदत तो रह नहीं गयी थी तो किसी तरह दाल-चावल बनाकर सबके सामने रख दिया। कामवाली आयी और कृतिका को ना पाकर अपने हिसाब से काम करके चली गयी। बच्चों को अपना मनपसंद ना नाश्ता मिला और ना खाना तो दोनों मुंह फुलाकर अपने कमरे में चले गए। मनीष जी को अखबार पढ़ने के लिए आज अपना चश्मा भी नहीं मिल रहा था। उन्होंने दवा देने के लिए शेखर को आज बुलाया तो उसे और मनीष जी को समझ आया कि कौन सी दवा कब और कितनी खानी है यह तो उनकी लापरवाह बहू को ही पता था। शेखर के ऑफिस से फ़ोन आया उसे अपनी जरुरी फ़ाईल लेकर जाना था लेकिन फ़ाईल नहीं मिल रही क्योंकि फ़ाईल तो कृतिका संभाल कर रखती थी। बेटी को साइंस पढ़ना था लेकिन किससे पढ़े? पापा के पास समय ही नहीं था। कृतिका के नहीं रहने पर घर के सभी सदस्यों को समझ आया कि कृतिका कुछ नहीं बहुत कुछ करती थी। उसने पूरे घर को बहुत ही प्यार और समर्पण से संभाल रखा था। जो घर सुबह से शाम तक व्यवस्थित रहता था आज वहां भूचाल आया लग रहा था। शाम तक होते-होते सासूजी-ससुरजी और पतिजी को भी समझ आ गया था कि कृतिका एक हाउसवाइफ नहीं है वो बल्कि एक होममेकर है जिसने घर की मैनेजमेंट बहुत ही अच्छे तरीके से संभाल रखी थी।
शाम तक सभी के खिले चेहरे मुरझा गए। उनको समझ आ चुका था कि कृतिका के बिना उन लोगों का कोई वजूद नहीं है। शाम को अनिता जी ने एक विडियो मेसेज कृतिका को किया, “हम जानते है कि हमने तुम्हारी कभी कद्र नहीं की। तुमने हमें दिल से अपनाया और हमने तुम्हें सिर्फ तानों से घायल किया है। मैं अपनी बातों को वापस लेती हूं। तुम्हारे बिना हम कुछ नहीं है। प्लीज तुम जल्दी से वापस आ जाओ। तुम्हारे बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता। प्लीज हमें माफ कर दो।”
ससूरजी ने, पति और बच्चों ने भी विडियो मेसेज करके माफी मांगी और वापस आने को कहा।
दूसरे दिन घर में कृतिका की आवाज सुनायी दे रही थी। वो सबकी पसंद का नाश्ता-खाना बना रही थी। सासूजी उन पर प्यार ही प्यार लूटा रही थी। शेखर और बच्चे उसके साथ काम में मदद कर रहे थे और कुछ ही दिन बाद ससुरजी एक नया नेमप्लेट बनवा कर ले आए। इस नए नेमप्लेट पर कृतिका का भी नाम लिखा था। जिसे ससुरजी ने अपनी गलती और पश्चाताप की ग्लानि को कम करने के लिए बहू को तोहफा दिया यह कह कर कि बहू हमारे घर की नींव है इसलिये घर की नेमप्लेट पर उसका नाम सबसे ऊपर होना चाहिये।
कृतिका ने भी सबको दिल से माफ कर दिया क्योंकि रिश्ते तोड़ना बहुत आसान है लेकिन रिश्तों को सहेजना बहुत मुश्किल हो गया है। कृतिका को होममेकर मानने लगे जो उसके लिए किसी भी ट्रॉफी से अनमोल थी।
घर के बाहर लगी नेमप्लेट पर अपने नाम को प्यार से छूकर गर्वित हो गयी। एक हाउसवाइफ से होममेकर का सफ़र आसान नहीं था। ये उसने अपने प्यार और समर्पण से कमाया था।
स्वरचित,
अर्पणा जायसवाल
#चाहत