नासमझी – कंचन श्रीवास्तव

चटाक ……. की आवाज से दोनों तरफ ही सन्नाटा पसर गया , बिना कुछ बोले रवि अपने कमरे में और सुलेखा वहीं सोफे पर ढेर हो गई।ये क्या हो गया इन दोनों के बीच इसकी तो कल्पना भी नहीं थी।

आखिर क्यों? क्यों कहा उसने ऐसे , ऐसा कहते वक्त उसकी जवान नहीं लड़खड़ाई, कैसी घटिया सोच आज की पीढ़ी की इंसान जहां आकाश की ऊंचाई और पाताल की गहराई नाप रहा

वही मां पत्नी बहन बेटी के प्रति इतनी ओछी मानसिकता

आज उसे यकीन हो गया कि घर के माहौल का असर पढ़ाई लिखाई से ज्यादा बच्चों पर पड़ता है।

आखिर उसकी भी क्या ग़लती,बचपन से यही तो देखता आ रहा है,तो उसने भी कह दिया ।

वरना इतनी हिम्मत कहां कि कोई कह दे कुछ।

पर वो हार नहीं मानेगी , टेसुएं बहाकर खुद को कमजोर नही करेगी।

और न छोड़ेगी ।

बस यही सोच उठी और नहाने चली गई।

वहां से लौटी तो आइने के सामने खुद को खड़ी होके निहारा , निहारा तो पाया,बालों में चांदी चमकने लगी है, आंखों के पास काले धब्बे का घेरा है और तो और अवसाद से मन उसका भरा है जो साफ साफ चेहरे पे देखा जा सकता है।

ये देख फिर वो  हंसी जिसमें  नफरत और एक अजीब सा उचाट पन था।जैसे सारे मोह भंग हो गए हो

और खुद के प्रति एक आकर्षक एक ऐसा आकर्षक जिसमें खुद को चुस्त दुरुस्त रखने की चाह जागी।

फिर रसोई में जाकर एक कप चाय बना सीधे बेड रूम में चली आई।

आज एक अजीब सुकून था उसकी दिनचर्या में कोई भागम भाग नहीं कोई जल्दबाजी नहीं।

जिसे थोड़ी देर पहले उठी बेटी रीमा देखा पर कुछ बोली नही क्या बोलती आधे घंटे पहले जो कुछ हुआ उसे देख सख्ते में है।मां बताती है कि नाना,मामा,और फिर पापा का स्वभाव भी ऐसा ही था।वो तो उसके लिए आम बात थी पर जब बेटे ने भी उसके चरित्र पर उंगली उठाई तो उसने उसका जवाब चाटा रसीद कर दिया।




बस अब और नहीं सब की सहुंगी पर तुम्हें वैसे देख आने वाली की जिंदगी नरक नहीं होने दूंगी।

इसे पता नहीं कि जिंदगी कैसी बेमायने,बुझी बुझी, चिड़चिड़ी  और अकेलेपन का शिकार हो जाती है कि न जिंदगी अच्छी लगती है न मौत आती है।

उसे याद है जब वो छोटी थी तो सारी जरूरतें अपनी मां से कहती और मां इसे पूरा करने के लिए पापा से पैसे मांगती,पर पापा पैसों के बदले उन्हें गाली, अपमान और न जाने कौन कौन सी उपाधियों से नवाज देते पर पैसे न देते।

फिर जैसे तैसे वो बड़ी हुई तो अपना जेब खर्च खुद निकालने लगी।

और आज कमाकर घर का खर्च भी चला रही और लोगों की चार बातें भी।

आखिर क्यों ये वेदना है औरत की जिंदगी में सोचते सोचते उसके सीने में दर्द हुआ और वो फर्श पर ढेर हो गई

किसी को आवाज लगाती की चट पट उसके प्राण शरीर छोड़ दिए।

गिरने की आवाज सुनकर लोग इकट्ठा हुए पर कोई फायदा नहीं वो दुनिया छोड़ चुकी थी।

कुछ घंटों के बाद अर्थी सजा दी गई।लोग चीख रहे थे चिल्ला रहे थे।

उन्हीं के बीच वो शख्स भी मौजूद था जो इन सबकी वजह था।

जी तो हुआ धक्के मारो कर बाहर निकाल दे।

पर हाथ में अभी दो महीने पहले बनी राखी को हाथ से खोल आगे बढ़ा तो सब सहम गए।

और वो आगे बढ़ता ही चला गया।

कुछ ही देर में अर्थी के पास पहुंच कर उस राखी को उस पर रखते हुए बोला ” लो अपनी राखी वापस ले लो जब तुम ही नहीं रही तो हम इसे रखकर क्या करेंगे।

और फूट फूट कर रो पड़ा।

आस पास खड़े वो लोग जिन्होंने उस पर उसे लेकर इल्ज़ाम लगाया, खासकर वो जिसे अपनी कोख से जन्म दिया

शर्म से गड़ गए।

उफ़!

आज रीमा सोचने पर मजबूर हैं ओह! इतना पवित्र था मां और रमेश अकंल का रिश्ता जिसे कोई समझ न सका। बेटे द्वारा ब एक मां पर चरित्रहीनता का इल्ज़ाम लगा तो वो ये सदमा बर्दाश्त न कर सकी , और एक छोटी सी नासमझी ने मां की जान ले ली।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

 

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