मुस्कुराते नन्हें सपने – मीना माहेश्वरी

बचपन में जब भी मैं किसी को पुरस्कृत होते देखती तो मुझे बड़ा अच्छा लगता,  मुझे हमेशा लगता की मैं  जिस किसी काम को करूं, बढ़िया करूं, लोग मेरी भी तारीफ़ करें। मैं कहानियां पढ़ती,और अच्छे किरदारों से प्रभावित हो उनके जैसे बनने की कोशिश करती। ठीक से याद नही हैं ,शायद कक्षा  चार मे  थी हमें नेपोलियन बोनापार्ट  की कहानी पढ़ाई गई थी, उनके बचपन का कोई संस्मरण था , उन्होंने किसकी मदद की थी, बस फिर क्या था, मैं भी मौके की तलाश में  रहती , और एक दिन एक सब्ज़ी वाली अम्मा की सब्जी की एक पोटली  पीछे गिर गई , हमने झट से पोटली उठाई और दौड़कर  अम्मा की दुकान पर पहुंचा दी, अम्मा बहुत आशीर्वाद दिया, हमारी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था।

                     कक्षा पांच में सारे शहर में प्रथम आने पर  महापौर जी द्वारा पुरस्कृत किए जाने पर हमारी समझ में आने लगा कि हम  छोटे _छोटे सपने देख भी सकते है और उसे पूरा भी कर सकते है। अब कभी भी कही भी कोई कंपटीशन होता  हम हर प्रतियोगिता में भाग लेने लगे,और उसकी तैयारी में पूरी जी _जान लगा देते, ईश्वर की कृपा थी, प्रथम, द्वितीय, तृतीय या सांत्वना पुरस्कार पा ही जाते। फलस्वरूप मेहनत करने और छोटे _छोटे सपने देखना और उसके पूरा होने पर खुश होना, कभी कभार असफल हो भी गए तो नए सिरे से जुट जाना।

                     कहीं पढ़ा था कि जो चाहते हों उसे विजुअलाइज करो, उसे साक्षात घटित होता महसूस करो,वो सच हो जाता है।इस बात की सत्यता को मैने अपने जीवन में जिया है। कक्षा दसवी में परिस्तिथियाँ कुछ अनुकूल नहीं थी, किंतु मेरे विल पावर, इच्छाशक्ति ने काम किया और अपने अच्छे परीक्षाफल के लिए महाराष्ट्र के  तत्कालीन राज्यपाल  द्वारा पुरस्कृत किया गया। 

400;”>                        बीच का कुछ समय कुछ परेशानी वाला रहा। बारहवीं के बाद पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। शादी के बाद भी छः _सात साल यूं ही बीत गए। लेकिन पढ़ाई पूरी करना ही था, साइंस की विद्यार्थी थी,लेकिन नियमित पढ़ाई संभव नही थी। प्राइवेट बी ए, एम ए ,किया। जॉब का बहुत शौक था, ससुरजी को पसंद नही था, कुछ साल इंतजार किया फिर सैनिक शिशु निकेतन रीवा जैसे नामी _गिरामी स्कूल में  बीस साल तक सम्मान पूर्वक शिक्षण कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। छोटे _से घर की जरूरत थी । ईश्वर की कृपा से काफी बड़ा अपना घर है, जिस मुकाम पर बच्चों को देखना चाहती थी दोनों बच्चे वेल सेटल्ड है। दो  प्यारी _प्यारी बच्चियों की नानी _दादी हूं। प्यार करनेवाले बेटा_बहु,बिटिया और दामाद जी है। सपनों के जो नन्हें _नन्हें पौधे मेरे दिल की बागियां में अंकुरित हुए थे,आज विशाल वृक्ष बनकर मेरी आंखों के सामने लहलहा रहे है।

                      छोटे _छोटे बच्चों को घर पर पढ़ाती हूं, बहुत पॉजीटिव महसूस करती हूं। मन करता है थोड़ा बहुत लिख लेती हूं।

                         और उनकी तारीफ़ मैं क्या लिखूं, जो सही अर्थों में मेरे  हमसफ़र है, जिन्होंने मेरी हर ख्वाहिश पूरी की, मेरे छोटे _छोटे सपनों को हकीकत में तब्दील किया। ईश्वर की कृपा सदा हम सब पर बनी रहे। और हम मिलजुलकर सपने देखे और उन सपनों को पूरा होते देखे।

    “दिल है छोटा_सा, छोटी_सी आशा,,,,,,,बस इतना ही,,,,,,,,,

मीना माहेश्वरी स्वरचित एवम मौलिक

रीवा मध्य प्रदेश

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