मुक्ति ”   –   कुमुद चतुर्वेदी

 मैं जब संसार में आया तब मैंने देखा मेरे पापा एक बहुत बड़े इंजीनियर थे, और मेरी माँ सद्गृहणी मित्भाषी और ममतामयी थीं। मैं  अपने पापा को हमेशा अपने काम में व्यस्त देखता था और साथ में अपनी माँ को घर गृहस्थी के काम में हमेशा लगा देखता था। मुझे समझ नहीं आता था कि मेरे पापा इतना पैसा कमा कर क्या करेंगे? क्योंकि उनको सिर्फ एक ही धुन थी अधिक से अधिक पैसा कैसे कमाया जाए?घर पर ही वो बहुत कम दिखाई देते थे ,हमेशा बाहर टूर पर ही रहते थे पता नहीं कहाँ कहाँ और कितने उन्होंने काम ले रखे थे खैर मैं अपनी मां की छत्रछाया में पलता,बड़ा होता रहा।

      धीरे धीरे मैंने जाना मेरी माँ और पापा के बीच में वार्तालाप भी बहुत कम होता था जब भी पापा घर में रहते हमेशा कंप्यूटर, लैपटॉप में ही उलझे रहते थे पर एक बात जरूर थी वह घर में आते समय और जाते समय मुझे जरूर लाड़ लड़ाते थे।धीरे धीरे मैं पाँच साल का हो गया अब मेरी पढ़ाई के बारे में पापा ने ध्यान देना शुरू किया। हमेशा माँ से कहते थे मेरा बेटा बहुत बड़ा इंजीनियर बनेगा और विदेश जाएगा,देखना पूरे परिवार में इससे अधिक कमाने वाला कोई नहीं होगा मेरी माँ जब भी सुनती बेचारी चुप ही रह जाती थी क्योंकि वह जानती थी उसकी बात का कोई मोल नहीं है। पापा हमेशा अपने मन की करते थे और माँ की बात कभी नहीं मानतेे थे।मेरी पढ़ाई शुरू हो चुकी थी और मैं जिस स्कूल जाता था वहाँ इंग्लिश मीडियम के साथ ही स्कूल की अन्य गतिविधियाँ भी थीं पर मैं किसी  में बिल्कुल भाग नहीं ले पाता था क्योंकि सिर्फ पढ़ाई और पढ़ाई,इसी में सारा दिन निकल जाता था। स्कूल से आकर घंटे भर बाद ही ट्यूटर आ जाते थे जो मुझे इंग्लिश साइंस दो-दो घंटे पढ़ाते थे।उसके बाद होमवर्क और घर के भी ट्यूटर का होमवर्क यही सब करते करते रात के आठ बज जाते थे ,मैं थक कर निढाल हो जाता था।

    इतने सब पर मेरी माँ हमेशा मुझे प्रोत्साहित करती थी।वह चाहती थी मैं खेलूँ और थोड़ा समय अपने मनपसंद काम के लिए भी रखूँ,पर पापा के डर से वह भी कुछ नहीं कह पाती थी।खैर, मेरी जिंदगी पापा के अनुसार चल रही थी।मैं भी हमेशा अपनी कक्षा में अच्छे नंबर से पास होता रहा पापा यह देखकर बहुत खुश होते थे और मुझे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। उन्होंने हमेशा मुझे विदेश जाने का सपना दिखाया और  हमेशा मेरे कानों और मेरे दिमाग में विदेश जाना है इसी का मूल मंत्र फूँकते रहे।

   मेरा ट्वेल्थ का एग्जाम खत्म हो चुका था और मैं रिजल्ट का इंतजार कर रहा था साथ साथ मेरी कोचिंग भी चल रहीथी। कोचिंग के बाद मेरा आईटी का मैंस का टेस्ट हुआ उसमें मैं अच्छी रैंक लाया एडवांस के टेस्ट में भी मैं 99% (परसेंटेज) था। मेरा एडमिशन दिल्ली आईआईटी में हो चुका था। पापा बहुत खुश थे,मुझे हॉस्टल में डालकर ।पर माँ बहुत परेशान थी क्योंकि मैं अभी तक अकेला नहीं रहा था।मन तो मेरा भी बहुत खराब हुआ था माँ से बिछुड़ कर पर क्या कर सकता था?आगे पापा ने रंगीन सपने जो दिखा रखे थे उन सपनों को ही पूरा करना मेरा लक्ष्य बन गया था अब।

  अंत में वह समय भी आया जब मैं आई टी से मैकेनिकल इंजीनियर बन बाहर निकला।अब तो पिताजी मेरे जॉब के लिए उत्सुक रहते थे।उन्होंने विदेशी कंपनियों की सारी लिस्ट और उनकी वैकेंसी की लिस्ट बना मेरे लिए तैयार कर रखी थी।जब मैं घर पर आया उन्होंने वह लिस्ट मुझे दिखाई और मुझसे सलाह मांगी।मैं भी खुश था क्योंकि आँखों में रंगीन सपने विदेशों के जो तैर रहे थे।माँ  तो  चाहती थी कि मेरी शादी हो जाए जैसा कि हर माँ की इच्छा होती है।घर में बहू आ जाए छोटे छोटे नन्हे मुन्ने बच्चे आ जायें पर पिताजी अभी नहीं चाहते थे, वह चाहते थे मैं अभी विदेश जाकर कम से कम दो साल पैसा पैदा करूँ। उसके बाद सेटल होने के बाद मेरी शादी हो।पर जैसा कि हमेशा माँ की बात पूरी नहीं होती थी पापा ही अपनी सारी बात पूरी करते थे। आखिर छैः महीने के अंदर ही अमेरिका में मेरी एक बहुत अच्छी कंपनी में जॉब लग गई और मैं भारत से विदेश  अमेरिका के शहर न्यूयार्क उड़ गया।

वहाँ जाकर जैसा कि सुना था उससे भी अधिक चकाचौंध भरी दुनिया देखी। धीरे धीरे मैं उस में रम गया मेरे कई मित्र भी बन गए उनमें दो भारतीय भी थे।मेरी मित्र मंडली हर वीकेंड पर एकत्रित होकर जश्न मनाया करती थी।सभी मित्र कुँवारे ही थे।इधर मेरी माँ मेरी शादी के लिए जोर दे रही थी,साथ ही घर वाले भी ताऊ ,चाचा वगैरह भी यही चाहते थे जैसे तैसे साल भर बीता।

    मैं छुट्टी लेकर महीने भर के लिए भारत आया उसी बीच पता नहीं माँ ने कैसे पापा को मना लिया और मेरी शादी के लिए पापा भी राजी हो गए मेरी शादी कर दी गई। हालाँकि मेरी पत्नी पढ़ी लिखी थी संस्कारी भी परंतु वह पूर्णतया अपनी जॉब के विरुद्ध थी। उसका कहना था स्त्री हमेशा घर की लक्ष्मी होती है, इसलिए उसे हमेशा घर पर ही ध्यान देना चाहिए।अपने पति,बच्चे और घर को ही सँभालने में जीवन बिताना चाहिए। खैर मुझे भी इसमें कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि अमेरिका का जीवन मुझे रास आ चुका था।यदि पत्नी जॉब करती तो यह  आवश्यक था मेरे काम में हस्तक्षेप करती जो मुझे किसी भी रूप में गवारा नहीं था। वैसे मेरी पत्नी बहुत सीधी-सादी थी मुझे किसी बात में टोकती नहीं थी।धीरे धीरे महीना पूरा हो गया और मैं वापस फिर अमेरिका चला गया वहाँ जाकर हमारा परिवार और पत्नी से संबंध फोन कॉल्स और वीडियो कॉल्स तक ही रह गया था।

इधर अमेरिका में मेरे जितने भी मित्र थे सब अभी तक कुँवारे थे पर जो भारतीय मित्र थे उनकी भी शादियों की तैयारियाँ थी।दूसरे साल मैं छुट्टी पर भारत आया  तो माँ ने पत्नी को भी मेरे साथ न्यूयार्क भेज दिया।मैंने भी सोचा ठीक है अब थोड़ा गृहस्थी का भी आनंद लिया जाए। अब मेरी जिंदगी नियमित ढ़र्रे पर चलने लगी मैं जब घर आता मेरी पत्नी बड़े सलीके से मेरा स्वागत करती। घर पर सब सामान ,खाना वगैरह तैयार मिलता समय पर, और मुझे क्या चाहिये, मैं खुश था।धीरे धीरे एक साल के अंदर ही मैं भी पिता बन गया एक छोटा नन्हा सा बेटा हमारे घर खुशियाँ ले आया। अब तो मेरा भी मन घर में अधिक लगने लगा। मेरे मित्र शिकायत करते,कहते तुम तो अब आना ही छोड़ चुके हो,बाहर निकलते ही नहीं हो पर मेरा मन घर में अपने बेटे के साथ ही खेलने को करता।दूसरे तीसरे दिन माँ और पिताजी को वीडियो कॉल करके बेटे की सूरत दिखाता और हम सब आनंद लेते।

   अगली छुट्टियां में हम लोग भारत गए वहाँ महीना भर पता नहीं कैसे निकल गया।माँ पिताजी बहुत खुश थे माँ ने बेटे का मुंडन ,नामकरण,अन्नप्राशन जाने क्या-क्या संस्कार कर डाले। माँ तो अपने पोते को गोदी से नीचे ही नहीं उतारती थी और पिताजी हरदम कुछ ना कुछ नया खिलौना ला ला कर घर भरते रहते थे। मैं कहता भी था पापा यह सब सामान मैं कैसे लेकर जाऊँगा?पापा हँसते कहते बेटा जो ले जा सको ले जाना वापस तुम्हें यहीं तो आना है।यहाँ आकर तो खेलेगा।मैं भी हँसकर रह जाता धीरे-धीरे पता नहीं पूरा महीना कितनी जल्दी निकल गया, वापस हम लोग अमेरिका लौटे। हम सबकी आँखों में आँसू थे।

अब जब भी मैं वीडियो कॉल लगाता माँ हमेशा यही कहती बेटा अब तुम भारत में ही रहने की सोच लो,क्योंकि अब हम लोग भी बूढ़े हो रहे हैं और हमारी भी शक्ति कम ही हो रही है।अब तुम्हें ही हम दोनों को सँभालना है।तुम आ जाओ और यहाँ आकर हम लोगों को सँभालो। मैं भी कहता हाँ माँ हाँ मैं भी यही सोच रहा हूँ। बस एक साल बाद मैं आपके पास भारत में ही रहने आ जाऊँगा और वहीं कोई अच्छी सी कंपनी देखकर जॉब करूँगा।    

        

           इसी तरह दिन गुजर रहे थे कि  अचानक पूरे संसार में कोरोना नाम की महामारी फैल गई।जगह-जगह लोग बीमार होकर मरने लगे।पूरे विश्व में कोई ऐसा देश ना रहा जहाँ इस बीमारी की पहुँच ना हो। पूरा विश्व बीमारी की चपेट में था। वैज्ञानिक बीमारी से लड़ने को टीका,दवाई खोज रहे थे पर सफलता किसी को नहीं मिल पाई थी। इसीलिए हर एक देश ने अपने अपने देश की सारी  सीमाएँ सील कर दी थीं। एक देश से दूसरे देश में जाना बंद हो गया था। फ्लाइट बंद हो गई थीं।आने जाने का कोई साधन नहीं  रही था।

 

  मेरी कंपनी ऑफिस बंद कर चुकी थी और बस घर से ऑनलाइन काम का ही निर्देश था।मैंने भी दिन में ऑफिस के काम को सुबह तीन घंटेऔर तीन घंटे शाम काम करने का नियम बना रखा था।

बाकी पूरा दिन मैं अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहता था। समय बड़े आनंद से बीत रहा था क्योंकि माँ,पापा से भी चाहे जब वीडियो कॉल,फोन कॉल से बात हो जाती थी।पापा और माँ बहुत चिंतित थे। इधर मुझे उनकी चिंता थी।वह यही चाहते थे जैसे ही फ्लाइट शुरू हो और मैं वापस भारत आ जाऊँ। मैंने भी सोच लिया था इस बार फ्लाइट शुरू होते ही मैं भी शीघ्र  अपना काम धाम छोड़कर भारत ही शिफ्ट हो जाउँगा ,और वही कहीं जॉब कर लूँगा।धीरे धीरे तीन महीने बीत चुके थे अमेरिका में भी लॉकडाउन तो नहीं हुआ था

पर ऑफिस का काम घर से ही करने का निर्देश था।धीरे-धीरे महामारी ने इतना भयंकर रूप ले रखा था

कि पूरे अमेरिका में ही दो लाख से ऊपर मौतें हो चुकी थीं यह सबसे भयावह रूप इस समय महामारी का विश्व में देखने को मिल रहा था।

   इधर भारत में भी मौतें तो थी पर अन्य देशों की तुलना में बहुत कम थीं। मैं हमेशा अपने माँ ,पापा और परिवार के लिए चिंतित रहता था। सुबह-शाम दोनों समय फोन कॉल और वीडियो कॉल से बात करता रहता था।धीरे धीरे अब हमको आदत सी पड़ चुकी थी।मौतें सुन कुछ नयापन नहीं लगता था। एक साधारण सा समाचार लगता था खैर,पर मैंने तो निश्चित कर रखा था अब जॉब छोड़कर भारत में ही बसना है।अचानक कंपनी ने निर्देश दिया ऑफिस ज्वाइन करने का क्योंकि अमेरिका में लॉकडाउन नहीं था।

सरकारी ऑफिस चल रहे थे और हमारी कंपनी ने भी ऑफिस खोलने का निश्चय किया और मुझे ऑफिस आने के लिए बोला,मैंने भी सोचा ठीक है।पहले दिन ऑफिस गया वहाँ सब कुछ सही सलामत डिस्टेंस बनाकर मुँह पर मास्क लगाकर सबका काम निश्चिंत रूप से चल रहा था। मैंने भी अपना काम निपटाया और शाम पाँच बजे घर लौट आया घर आकर चैन से अपनी माँ,पापा से बातचीत की और दूसरे दिन की ऑफिस की तैयारी कर सो गया। दूसरे दिन सुबह ऑफिस निकला वहाँ काम भी चल रहा था और ऑफिस के सारे सहकर्मी आपस में कोरोना के बारे में ही बातें करते रहते थे। विश्व की भयानक मौतों का सिलसिला थमने में नहीं आ रहा था, बल्कि बढ़ता ही जा रहा था।मैंने उधर ध्यान ना देकर अपना काम निपटाया और शाम को घर लौटा।रास्ते से ही मुझे ऐसा लग रहा था मानो मेरे छाती में कुछ जकड़न सी हो रही  है।मैंने सोचा शायद खाने में कुछ अधिक खा गया हूँ उसकी वजह से भारीपन होगा।घर आया तो थोड़ी घबराहट भी बढ़ी और जकड़न भी धीरे-धीरे बढ़ने लगी।मैंने अपनी पत्नी से कहा मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है छाती में दर्द भी लग रहा है और घबराहट भी हो रही है। पत्नी ने पानी ला कर मुझे पिलाया।मैंने पानी पिया।

फिर  पत्नि ने तुरंत इमरजेंसी में कॉल किया क्योंकि लॉक डाउन की वजह से कोई भी डॉक्टर घर पर नहीं आ सकता था ।जब इमरजेंसी में कॉल करके उसने मेरी हालत के बारे में बताया उधर से जो भी जवाब आया हो, सुनकर वह मेरी तरफ मुड़ी तभी मुझे ऐसा लगा मानो एक जोर से झटका लगा और मैं ऊपर हवा में तैर रहा हूँ।मुझे अपना शरीर महसूस ही नहीं हो रहा था बस यह लग रहा था कि मैं हवा में हूँ बस।जब मैंने नीचे देखा मेरा शरीर नीचे पड़ा हुआ था और मेरी पत्नी मेरे शरीर को जोरों से हिला रही थी।वह बार-बार मुझे आवाज भी लगा रही थी।इसी वक्त उसकी आवाज सुनकर मेरा बेटा भी कमरे से बाहर आ गया उसने भी मुझे पापा पापा करके आवाज लगाईं और मुझे हिलाया।मैं उसे जवाब देना चाहता था पर अब मेरी आवाज ही नहीं निकल रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था

किसी ने मेरा गला दबा दिया है।पता नहीं मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था।नीचे मेरा शरीर पड़ा था और मैं हवा में ऊपर तैर रहा था।इतनी देर में मैंने देखा इमरजेंसी के डॉक्टर आ चुके थे और वह मुझे इंजेक्शन लगा रहे थे उन्होंने जब मुझे इंजेक्शन लगा कर मेरी पल्स बगैरह  देखी उसके बाद मेरी पत्नी की तरफ देख कर सिर हिला दिया।पत्नी यह देख कर चीख उठी और विलाप करने लगी।मेरा बेटा भी पत्नी को देख रोने लगा। अब  इमरजेंसी वालों ने मुझे उठाया और गाड़ी में डाला फिर मेरी पत्नी से बोले आपको भी हॉस्पिटल साथ में चलना पड़ेगा।मेरी पत्नी ने अपने एक दोस्त को फोन किया और रोते रोते सब बताया वहाँ से पता नहीं क्या जवाब मिला।फिर  बेटे से बोली -“बेटा तुम यहीं रुको अंदर से दरवाजा लॉक कर लेना रितु आंटी आती होंगी, उनकी आवाज सुनकर ही दरवाजा खोलना मैं पापा के साथ जा रही हूँ हॉस्पिटल।”यह सुन बेटा हाँ में सिर हिला कर रह गया और सब लोग मुझे गाड़ी में डालकर हॉस्पिटल चल दिये।उनके साथ साथ मैं भी हवा में तैरता हुआ हॉस्पिटल जा पहुंचा।मैं प्रत्यक्ष देख रहा था मेरा शरीर गाड़ी में पड़ा है पत्नी मेरी रो रही है पर मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूं ,बस हवा में तैरता उसके साथ ही साथ चल रहा हूँ। आखिरकार हॉस्पिटल आया।

मेरे शरीर को उतारा गया और स्ट्रेचर पर रखकर डॉक्टर का इंतजार करने के लिए रख दिया गया।करीब दो घंटे बाद डॉक्टर आया उसने मुझे देखा और मेरा चेहरा उसने चादर से ढ़क दिया ।यह देख मेरी पत्नी बुरी तरह से बिलख उठी।हॉस्पिटल में पत्नी के हाथ में एक फार्म दे दिया गया और उससे कहा इसे भरकर जमा कर दीजिये।पत्नी रोती जाती थी और फॉर्म फिल-अप करती जा रही थी मेरी तो  कुछ समझ में नहीं आ रहा था यह सब हो क्या रहा है?पर फिर भी मैं सोच रहा था कि मैं पत्नी को दिलासा दूँ और उसे चुप कराऊँ पर मैं कुछ नहीं कर पा रहा था,बस हवा में तैरता हुआ सब देख रहा था ।

जब फॉर्म फिलअप हो गया पत्नी ने उसको सबमिट कर दिया और मेरे शरीर को हॉस्पिटल वालों ने एक बड़े से काले कपड़े में लपेटकर कमरे के अंदर रख दिया ।अब मेरी समझ में आया ,जब मैंने कमरे में देखा, वहाँ जाने कितने इस तरह के शरीर रखे हुए थे सब इसी तरह से बँधे हुए थे और उन पर नंबर और नाम पड़े हुए थेयअब मैंने जाना कि मेरी मृत्यु हो चुकी है लेकिन फिर भी मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था।इधर जब सब कमरा बंद करके बाहर निकले तब मैं भी वापस पत्नी के पास लौट आया।

मेरी पत्नी इस समय तक थोड़ा सँभल चुकी थी उसने भारत में पापा और माँ को फोन लगाया और स्थिति से अवगत कराया पता नहीं उधर से क्या बात हुई पर अब मेरी पत्नी उनको दिलासा दे रही थी। इसी बीच मेरे तीन चार मित्र भी आ गए और वह सब पत्नी को समझाने लगे मेरी पत्नी अब  चुपचाप रो रही थी और उनकी बातें सुन रही थी।आखिर तीन-चार घंटों बाद उन लोगों ने पत्नी को वापस घर चलने के लिए बोला जब फॉर्मल्टी पूरी हो चुकी तो मेरी पत्नी और मेरे मित्र घर वापस आ गये।

उनकी बातचीत से पता लगा कोरोना महावारी से वहाँ मौतें हुई हैं,उन सब की डेड बॉडी वहाँ उस शव गृह में रखी हुई थीं  सबका पोस्टमार्टम होना था और जो पहले बॉडी आई थी उसका पहले होगा, इस तरह से नंबर लगे हुए थे।वहांँ करीब दो सौ से अधिक डेड बॉडी होंगीं।मैं समझ नहीं पा रहा था यह हुआ क्या है और क्या हो रहा है? पर फिर भी मैं अपनी पत्नी के साथ वापस घर आ चुका था, और उनकी बातें सुन रहा था।मेरे मित्रों ने भारत मेरे पापा और माँ से बात की।उनको भी सारी स्थिति बतायी।

उनकी सारी बातें तो मैंने नहीं सुनी पर इतना मुझे भी ज्ञात हुआ कि पता नहीं पोस्टमार्टम में कितने दिन लगेंगे कितने दिनों बाद मेरा नंबर आएगा उसके बाद डेडबॉडी जब हैंडोवर होगी तब कहीं जाकर मेरा क्रिया कर्म होगा। यह सब बातें मेरे पापा को फोन पर बता रहे थे लोग।यह सुन मैं तो अजीब स्थिति में था,क्योंकि मुझे यह पता था कि जब तक क्रिया कर्म नहीं होगा तब तक आत्मा की मुक्ति नहीं होगी और वह किसी भी स्थिति में नहीं हो रहा था।अब ना तो मैं नया जन्म ले सकता था और ना ही अपने पुराने शरीर में जा सकता था। यह सब  सोचकर मैं मन ही मन दुखी तो हो रहा था,पर यह भी संतोष था कि चलो इतने दिन जब तक पृथ्वी पर मेरी आत्मा रहेगी तब तक मैं अपनी पत्नी और बच्चे को तो  देख सकूँगा।हालाँकि वे मुझे नहीं देख सकेंगे पर मैं उनको देख सकूँगा,बस इतना ही संतोष था।आगे देखिए कब मुझे मुक्ति मिलती है?पल में ही वक्त कैसे बदल जाता है,मेरे माँ,बाप ने क्या सोचा और क्या हो गया? मैं भी बस भविष्य की योजना ही बनाता रह गया ,कुछ न कर सका वक्त ही न दिया जिन्दगी ने।

                   ……… कुमुद चतुर्वेदी. 

 

 

#वक्त

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