मुझे मेरा मायका चाहिए – संगीता अग्रवाल

” छोटी तो जल्दी से घर आ जा !” अतुल अपनी बहन अंकिता से फोन पर बोला।

” भैया क्या बात है सब ठीक तो है ना ?” अंकिता ने हैरानी से पूछा।

” नही कुछ सही नही है मां…!” इतना बोल अतुल फूट फूट कर रो दिया।

” क्या हुआ है मां को ?” अतुल की बात सुन अंकिता लगभग चिल्ला उठी।

” तू बस घर आ जल्दी !” अतुल ने ये बोल फोन रख दिया।

अंकिता ने जल्दी से अपने पति निलेश को फोन किया और उसके साथ मायके के लिए निकल गई।

” मां मां !” अंकिता मायके पहुंच दरवाजे से ही आवाज लगाती अंदर घुसी।

पर ये क्या मां तो सफेद चादर में लिपटी पड़ी थी जमीन पर एक पल को अंकिता ठिठक गई निलेश ने उसे झंझोड़ा तब होश में आई और मां से लिपट बिलख पड़ी। उसकी चित्कार सुन सभी की आंखे आंसुओं से भर गई। एक बेटी के लिए मां से बढ़कर कोई नही होता फिर भले ही उसकी शादी क्यों न हो जाए। अंकिता रोए जा रही थी मां से लिपटी निलेश ने बहुत कोशिश की उसे अलग करने की पर अंकिता तो मां को छोड़ने को तैयार ही नहीं थी।

” छोटी उठ खड़ी हो इतना रोएगी तो मां मुझसे गुस्सा हो जायेगी !” भरी आंखों से अतुल उसे उठाता बोला।

” भैया मां को ये क्या हुआ आपने मुझे बताया क्यों नही .बताओ भैया मैं मां के पास आ जाती उनसे आखिरी बार मिल तो लेती !” अंकिता भाई से लिपट रोते हुए बोली।

” मां की रात को ही तबियत बिगड़ी थी अचानक घबराहट हो रही थी उन्हें तुम्हे फोन करने को उन्होंने मना कर दिया था सुबह तक सब खत्म ही हो गया …अगर मुझे पता होता ऐसा होगा तो क्या मैं मां की बात सुनता !” अतुल रोते हुए बोला। 

दोनो भाई बहन जार जार रो रहे थे। लोगों ने उन्हें अलग किया और अंतिम क्रिया की तैयारी शुरू हुई।

ये कैसा विधि का विधान है जो इंसान हंसता हुआ घर की जान होता है जिसके बिना घर अधूरा होता है वो पल में मिट्टी बन जाता है जिसे सबको घर से अलग करने की जल्दी होती है।

खैर रोते बिलखते अंतिम रस्म भी हो गई अब फैला था घर में सन्नाटा जी हां घर लोगों से भरा था फिर भी सन्नाटा था। अंकिता मायके आई थी पर आज उसको लाड़ लड़ाने वाली मां नही थी तो उसके लिए जैसे मायका मायका नही रह गया था…। 

” क्या अब मेरा इस घर से नाता टूट गया ? अचानक उसके मन से आवाज आई। नही नही मेरे भाई भाभी , भतीजे है और साथ ही मां की यादें है ये मेरा मायका हमेशा सलामत रहेगा !” उसने खुद से ही जवाब दिया।

धीरे धीरे दिन बीतने लगे और पगड़ी रस्म भी हो गई अब अंकिता को अपने घर वापिस लौटना था। 

” छोटी मां का संदूक अभी तक खोला नही है हमने चल उसे तू अपने हाथ से खोल और जो ले जाना है ले जा !” अंकिता के घर लौटने से पहले अतुल ने उससे कहा।

” भाई मैं क्यों …क्या !” अंकिता दुख और असमंजस के मिले जुले भाव से बोली।

” चल तो !” अतुल उसका हाथ पकड़ कर ले गया साथ साथ उसकी पत्नी शैफाली भी थी।

कमरे में जाकर अतुल ने मां के बिस्तर के सिरहाने से चाभी उठाई और अंकिता को पकड़ा दी।

” भाभी लीजिए ताला आप खोलिए ये आपका हक है !” अंकिता वो चाभी शैफाली को दे बोली।

” पर अंकिता क्यों?” अतुल बोला।

” भैया आप चुप रहिए ये घर की बेटी और बहु के अधिकार की बात है इस घर पर मुझसे ज्यादा भाभी का हक है लीजिए भाभी खोलिए !” अंकिता बोली।

संदूक खुलने के बाद उसमे कुछ कीमती साड़ियां और जेवर निकले साथ ही अंकिता और अतुल के बचपन के कपड़े।

” अंकिता ये गहने जो तुम लेना चाहती हो ले सकती हो क्योंकि तुम्हारा हक है इनपर बाकी भी जो चीज तुझे पसंद हो ले ले !” अतुल प्यार से बोला।

” भैया इनमे से कुछ नही चाहिए मुझे मुझे इससे कीमती चीज चहियेव!” अंकिता बोली।

” कीमती चीज ….वो क्या ?” शैफाली ने हैरानी से अतुल को देखते हुए पूछा। एक बार को उसके मन में ये विचार भी आया कि कहीं घर में हिस्सा तो नही मांग लेगी अंकिता।

” भैया भाभी एक लड़की के लिए सबसे कीमती चीज उसका मायका होता जो मां के बाद भाई भाभी से चलता मैं आपसे अपना मायका मांगती हूं बस जब जब यहां आऊं एक बेटी का प्यार दुलार और सम्मान पाऊं इसके अतिरिक्त मेरे लिए कुछ कीमती नही !” अंकिता दोनो के आगे हाथ जोड़ बोली।

” पगली तेरा मायका जैसे कल था वैसे आज है और हमेशा रहेगा समझी !” शैफाली अंकिता के जुड़े हाथ थाम कर बोली तो अंकिता शैफाली के गले लग कर रो पड़ी।

” जो तेरा हक है वो इस घर में हमेशा रहेगा पर मां की चीजों पर भी तेरा हक है तो मां की आखिरी निशानी समझ कर ही इन्हे ले ले !” अतुल उसके सिर पर हाथ फेर बोला।

” भैया मां की निशानी के रूप में बहुत कुछ है मेरे पास फिर भी आप ज़िद करते है तो एक तस्वीर मुझे दे दीजिए मां की बस वही मेरे लिए अनमोल निशानी है ये गहने भाभी की अमानत है अब !” अंकिता बोली उसकी जिद के आगे अतुल ने हार मान ली और उसे मां की तस्वीर के साथ विदा किया। गाड़ी में बैठते में अंकिता की आंख नम थी पर चेहरे पर संतोष था कि उसका मायका हमेशा सलामत रहेगा। उधर शैफाली और अतुल भी सोच रहे थे कितनी समझदार हो गई अंकिता वरना आजकल तो बहने भी संपत्ति विवाद में रिश्ते खो देती हैं।

दोस्तों ये सच है हमारी सरकार ने बेटियों को भी मां बाप की चीजों पर बराबर का हक दिया है पर मेरा मानना यही है अगर बेटी का ससुराल सुविधा संपन्न है तो उसे चीजों का लोभ न कर अपना मायका सलामत रखना चाहिए और दूसरी तरफ अगर भाई सुविधा संपन्न है और बहन को जरूरत है तो बेझिझक उसका हिस्सा उसे दे देना चाहिए साथ ही उसे ये एहसास नहीं दिलाना चाहिए कि मानो हिस्सा ले बहन ने गुनाह किया हो।

आपकी दोस्त 

संगीता

 

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