मुँह बोला एक रिश्ता – नंदिनी

घनश्याम की पुलिस की नोकरी 2 बेटियां सोनम ओर सुहानी ,पत्नी रोहिनी ओर मां एक छोटा सुखी परिवार। 

पर कुछ साल पहले की बात है ये , तो माँ छोटा परिवार सुखी मानने से रहीं , हमेशा जोर देतीं एक बेटा तो होना ही चाहिए ,कुछ साल बाद रोहिनी ने एक बेटी सांची को जन्म दिया ।

घनश्याम ने अब  साफ कह दिया कि अब तीनों बेटी ही उनका सब कुछ हैं अब ओर बेटे की चाह में नहीं पड़ना है ।

पर घनश्याम की माँ तो ठहरी पुरानी विचारधारा की उन्होंने तो बेटे की चाह पकड़ ली तो बस ओर इन सबमें घनश्याम बड़ा परेशान रहने लगा ।

इस बीच घनश्याम के बड़े भाई मनमोहन अपने बेटे मेहुल के लिए 8 वीं कक्षा के बाद स्कूल के लिए परेशान हो रहा था कि होस्टल में करे या क्या करें क्योंकि उनके गांव में 8 तक ही स्कूल था ।

जब दादी को यह बात पता चली तो घनश्याम को इस बात के लिए राजी कर लिया कि मेहुल को तुम गोद ले लो  ।इस तरह तुम्हारा नाम लेबा हो जाएगा और मेहुल का छोटा भाई भी है तो उनको भी कोई ऐतराज नहीँ होगा ।

मनमोहन को जब बोला गया तो उसने सोचा मेहुल की अच्छे से पढ़ाई लिखाई हो जाएगी और घनश्याम की पुलिस की नोकरी में अच्छा पैसा भी है तो आगे धन  दौलत भी उसके नाम हो  जाएगी बेटियां तो शादी के बाद चली जायेंगीं जो होगा सब मेहुल का हो जाएगा।

मनमोहन लालच वश तैयार हो गया लेकिन उसकी मां का कम मन था भले उसके एक बेटा ओर था पर वो इस बात पर तैयार नहीं थी ,पर उसने राजी कर लिया उसे ओर इस तरह मेहुल 9वी से पडने आ गया घनश्याम के घर।

पूरा परिवार अच्छे से उसका  ध्यान रखता बहने प्यार से भैया भैया कहते आगे पीछे घूमती , इस बीच मेहुल का एक दोस्त आनंद का घर आना जाना हुआ , उसकी बहने आंनद भैया ही कहती ओर इस बीच राखी का त्यौहार आया आंनद को कोई बहन नहीं थी उसने मेहुल से कहा क्या मैं तुम्हारी बहनों से राखी बंधवा सकता हूँ।

मेहुल ने कहा ,हाँ क्यों नहीँ जैसी मेरी बहन वेंसी तुम्हारी भी हैं।

आंनद अच्छे स्वभाव का लड़का था उसके पापा के कपड़े की शॉप थी, वो सब बहनों के लिए फ्रॉक लेकर आया । 




इस तरह  2 साल निकल गए और इस बीच मेहुल की मां का तबीयत खराब हुई और वो जिद पकड़ ली कि मेहुल को घर वापस बुला लो इतनी खेती वाड़ी है छोटा भाई अकेला नही संभाल पायेगा , क्या करना हमे पराए धन का ओर मनमोहन की उसके सामने एक न चली, मेहुल को भी पढ़ाई में खास रुचि थी नही थी तो वो वापस गांव आ गया ।

इस बीच आनंद का घर आना जाना रहा कोई राखी न होती ऐसी, जब बो गिफ्ट मिठाई लेकर न पहुँचता हो । इस बीच घनश्याम का तबादला भी पास शहर में हो गया ।

समय तेजी से बीतता रहा, शहर ने दूरी कर दी लेकिन दिलों में दूरी नहीं थी, राखी और खास त्यौहार पर आनन्द परिवार सहित आता और  इस बीच बड़ी बेटी सुहानी की शादी का समय भी आ गया जहां आनंद से 5 दिन पहले से आकर सारी जिम्मेदारियां भाई के समान संभाली वहीं मेहुल मेहमान की भांति उसी दिन आया ।

तीनों बहनों के जन्मदिन पर उपहार हो या बाकी दोनों बहनों की शादी भाई से बढ़कर किया आनंद ने , इस जमाने में जहां खून के रिश्ते फीके होने लगे हैं , यह मुंह बोले भाई का एक रिश्ता इतना पक्का होगा किसी ने सोचा न था ,जब सगे रिश्ते  स्वार्थ से वशीभूत हो रहें हैं , एक रिश्ता ऐसा जिसने पराए रिश्तों पर यकीन करना सिखाया ,एक ऐसा मुंह बोला भाई जिसने जीवनपर्यंत यह प्यारा रिश्ता निभाया  …………

#एक_रिश्ता

नंदिनी

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