मतलबी – Motivational Short Story In Hindi

रागिनी की नज़र बार- बार पड़ोस में सूने पड़े मकान पर ठहर जाती वह हमेशा यही सोचा करती जाने कब इस मकान की रौनकें आबाद होंगी.. कौन उसके पड़ोस में आयेगी जिससे वह हँस बोल लिया करेगी असल में रवि का जॉब ऐसा था कि वह अक्सर टूर पर रहता था ऐसे में रागिनी के लिए समय काटना भारी पड़ जाता आखिर टीवी मोबाइल में कब तक आँखें फोड़े वह भी थोड़े समय ही अच्छा लगता है वह रवि के आने की बाट जोहती रहती ताकि वह आये तो मुँह पर लगा ताला खुले। 

आखिर एक दिन सुबह सबेरे उस घर में हलचल सी दिखी। एक भरापूरा परिवार कार से उतर रहा था रागिनी बड़ी खुश हुई वह बड़े उत्साह से काम छोड़कर उन्हें देखने लगी। एक प्रौढ़ दंपति दो बेटों, एक बहू और दो प्यारे छोटे बच्चों के साथ उस घर में रहने आये थे बच्चों से रागिनी को बहुत लगाव था पर अभी तक उसकी गोद बच्चे की अठखेलियों से मुक्त ही थी उन्हें देखकर उसका मन तुरंत उन्हें खिलाने का होने लगा पर एकदम से जाकर ऐसा कर भी तो नहीं सकती पता नहीं क्या सोचने लगें अभी जानती भी तो नहीं उन्हें। 

कंट्रोल कर रागिनी कहीं तेरी जल्दबाजी उन्हें कुछ गलत सोचने पर मजबूर न कर दे.. उसकी अंतरात्मा ने कहा। 

उनके लिए चाय पानी लेकर जाना उचित होगा.. सोचकर उसके कदम रसोई की ओर बढ़ गये। 




उनसे मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा बड़े ही मिलनसार और सज्जन लोग थे।धीरे- धीरे दोनों परिवारों के संबंध काफी प्रगाढ़ होते चले गए दोनों के रिश्तेदार और मोहल्ले वाले भी उनकी नज़दीकियों से परिचित थे एक दिन वो बोलीं .. रागिनी तुम्हारे लिए खुशखबरी है दीपक की सगाई पक्की हो गई है सारा काम तुम्हें ही संभालना है अभी से तैयार हो जाओ। 

हाँ ,,हाँ क्यों नहीं आंटी आप बिल्कुल निश्चिंत रहिए मैं हूँ न सब देख लूंगी। 

और रागिनी ने अपना वादा निभाया भी हर काम आगे- आगे करती रही जैसे उसके ही देवर की शादी हो।सूप, पटली, सुहागदानी, मौरी, हरी चूड़ी, डलिया से लेकर ब्लाउज सिलवाने चूड़ी मैच करवाने के लिए रोज बाज़ार भागती रही हालांकि आंटी जी की बहू भी घर और बच्चों को संभालने में पूरी तरह से लगी हुई थी।

आखिर घर में मेहमान आने शुरू हो गये लगुन का दिन भी आ पहुंचा वैसे रागिनी दिन में दस चक्कर लगाती पर जब से उनकी बहन बेटियां आ गई तब से आंटी ने उसे अनदेखा करना शुरू कर दिया। वह जाती तो न उसे बैठने के लिए कहतीं और न ही किसी काम के लिए उनकी नज़र में अब परायापन झलकता.. तो क्या आंटी अब तक उसे अपने मतलब के लिए यूज़ कर रही थी परिवारजनों के आते ही वह पराई हो गई यह फीलिंग उसके दिल को झकझोर रही थी और उसका बदन आक्रोश की आंच में झुलसा जा रहा था।

उस दिन के बाद आंटी ने उससे एक बार भी नहीं कहा कि वह आ जाये अगले दिन संगीत में भी न उसे बुलाया न वह गई । हाँ शादी वाले दिन का कार्ड जरूर आया था तो वह अनमने मन से गई वहाँ मौजूद हर महिला उससे पूछ रही थी … दो दिन से दिखी नहीं आप .. अब वह क्या जवाब देती???चाहे मन्दिर हो या पार्क हर जगह सब उससे यही पूछते.. आपकी तबियत तो ठीक है न आप संगीत में नहीं दिखीं..बस कुढ़ कर रह जाती वह। 

क्या ऐसे लोग एक बार भी यह नहीं सोचते कि अक्ल सबमें होती है पर हर कोई इतना मतलबी नहीं हो सकता। 

#आक्रोश

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

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