
मोह पाश से मुक्ति – शुभ्रा बैनर्जी
- Betiyan Team
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- on Mar 03, 2023
मानसी ने कभी सोचा भी नहीं था, कि इतनी कमजोर पड़ जाएगी वह उसके सामने।कितनी दलीलें दे डाली उसने इस बेमेल रिश्ते के बारे में,पर वह तो कुछ सुनना ही नहीं चाहता था।अपनी ज़िद पर अड़ा रहा मानव।मानसी ने कितनी लड़ाई की,हर तरीके से समझाया,पर हार गई उसके प्रेम के आगे।एक पत्रिका में छपी कविता के साथ देखी थी उसने मानसी की फोटो।वह ख़ुद बेहतरीन लिखता था।एक दूसरे की तारीफ़ करते-करते एक दिन उसने अपने प्रेम की बात सहज रूप से कह दी।मानसी ने बताया था उसे कि उम्र में काफी बड़ी है वह उससे।कुछ साल पहले ही विधवा हो चुकी थी।प्रेम उसके लिए पाप है,तब उसने कहा था ,प्रेम जीवन का सबसे बड़ा उपहार है।यह अनंत सृष्टि का सार है,हिसाब-किताब के परे है प्रेम।उसे कुछ नहीं चाहिए था अपने प्रेम के बदले।
मानसी तर्कहीन हो जाती थी उसके सामने।इस स्वार्थी दुनिया में जहां साथ और पास रहकर लोग एक दूसरे को छल रहे हैं,वहां ऐसे निस्वार्थ प्रेम की कल्पना भी मुश्किल है।मानसी की सारी समझदारी हवा हो गई।मानव का उस पर अधिकार जमाना,बात-बात पर डांटना,सलाह लेना,अपनी सारी बातें बताना मानसी को अच्छा लगने लगा था।लड़ाकू भी बहुत था मानव,गुस्सा तो जैसे नाक पर ही रखा रहता था।मानसी का अपना स्वभाव अब बदल गया था।मन में बरसों से दबा प्रेम का बीज अंकुरित होने लगा था,मानव के प्रेम की बारिश पाकर।मानसी को अपनी भरोसे की आदत ने बहुत आघात दिए थे,पर मानसी ने भरोसा करना कभी ना छोड़ा था।एक अनजान शख़्स से बिना मिले ही विश्वास के अटूट बंधन में बंध चुकी थी वह।मानव बेहद सपाट लहज़े में बता चुका था कि उसका भरा पूरा परिवार है,समाज की मानसिकता तो वह बदल नहीं सकता,उसे अपनाकर दो परिवारों में कलह लाने का साहस नहीं है उसके पास ,पर मन और वचन से वह हमेशा मानसी का ही होकर रहेगा।
मानसी के लिए यह प्रेम किसी मृगतृष्णा से कम नहीं था,पर इसकी कस्तूरी ने उसके जीवन को महका दिया था।मानव के निश्छल प्रेम ने उसके अशांत मन को शांत कर दिया था।जीवन के प्रति उसका नजरिया ही बदल चुका था।भाग्य से अब कोई विरोध शेष नहीं रहा।मन इस अनोखे बंधन में बंधकर मानो भवसागर पार कर रहा था।बैर,द्वेष,क्रोध,कामना, आकांक्षाएं मानो शून्य होने लगीं थीं।एक तृप्ति का आभास होता था उसे।सारी भटकन,तड़पने,जलन गायब हो चुकी थी।इस अनाम रिश्ते ने मानसी की चिर प्रतीक्षित यात्रा को विराम दे दिया था। इस अनोखे बंधन में बंधकर वह उन्मुक्त हो चुकी थी।
मानव को तो सैकड़ों लड़कियां मिल सकती है,फिर उसने मानसी से ही क्यों प्रेम किया,पूछने पर बोला था उसने जो सोच-समझकर किया जाए ,वह प्रेम नहीं हो सकता। निरुत्तर हो जाती थी मानस की बातें सुनकर।मानसी और मानव ने एक दूसरे को आश्वासन दिया था कि इस रिश्ते का असर दोनों परिवारों पर कभी नहीं पड़ेगा।समय बीतने के साथ-साथ यह रिश्ता और मजबूत होने लगा था।दोनों ने मिलकर बहुत सारी योजनाएं बनाईं थीं।कब मिलेंगे,कैसे मिलेंगे,कहां मिलेंगे?
आज उसने आखिरकार तय कर ही लिया कि दोनों बनारस में मिलेंगे,उसके घर से भी पास पड़ेगा और बनारस से अच्छी पवित्र जगह कोई और हो नहीं सकती इस पवित्र रिश्ते की साक्षी बनने में।उसने यह भी बताया कि मम्मी ने बनारस में उसके लिए एक रिश्ते की बात चलाई है।लड़की की फोटो भेजी थी उसने।बहुत सुंदर और पढ़ी लिखी थी “लड़की”मानसी के द्वारा तारीफ करने पर बोला मानव”होगी,पर मैं किसी और से शादी करके बेईमानी नहीं कर सकता।
आज मानसी को अपने अंदर एक घुटन सी हो रही थी,मन अशांत सा होने लगा था।अपनी किस्मत की कालिख से मानव के उज्ज्वल भविष्य को स्याह करने का क्या अधिकार था?सूरज ने अपने निस्वार्थ प्रेम का अमृत कलश छलका दिया था उसके प्यासे मन पर,सारी अभिलाषाएं पूरी कर दी थीं उसने अपना प्रेम देकर।मानसी कैसे अपने स्वार्थ के लिए मानव को विष पीने देगी?उसकी बाकी बची ज़िंदगी में ,प्रेम चंदन की तरह घुलकर आत्मा तक महकाएगा।इससे ज्यादा और क्या चाहिए उसे?सूरज के कोमल मन पर वह कपूर की तरह कब तक जलेगी?उसके सामने एक उज्जवल भविष्य है अभी,एक अच्छे जीवनसाथी की जरूरत है उसे,जो साथ रहकर उसे प्रेम दे सके,एक परिवार दे सके।
मानसी ने सोच लिया था कि इस रिश्ते की पवित्रता बनाए रखने के लिए,उसका मानव के जीवन से दूर चले जाना ही उचित विकल्प है।
सूरज ने आज सुबह ही याद दिलाया शाम की ट्रेन के बारे में।कंजूस ने अपने लिए पीली शर्ट भी खरीद ही ली आखिर और वहीं पहनकर आने वाला था वह मिलने मानसी से।मानसी सोचने लगी कि अगर एक बार दोनों मिल लेंगे तो दोनों के लिए एक दूसरे से दूर जाना मुश्किल होगा बहुत।सुबह ट्रेन में बैठते ही मानसी ने मानव के लिए एक पत्र लिखा।तय समय से बहुत पहले ही पहुंच गई थी मानसी।गंगा के घाट पर बैठकर गंगाजल में अपने प्रेम को अर्पण कर रही थी मानसी। मणिकर्णिका घाट पर जलती हुई चिंताओं ने सहज ही उसके “स्वार्थ”की आहुति स्वीकार कर ली थी।
आज मानसी ने ख़ुद को मोक्ष दिला दिया।मानव के अनंत प्रेम को मुक्त कर रही थी वह अपने मोह पाश से।एक नाव वाले को ज्यादा पैसे देकर समझा दिया था मानसी ने कि पीली शर्ट वाले आदमी को देखा वह खत।दौड़कर विश्वनाथ जी के चरणों में पहुंची मानसी और मानव को खुश रखने की प्रार्थना की।जानती थी वह मम्मी की कसम कभी नहीं तोड़ेगा मानव।बहुत दुखी तो होगा उसे घाट पर ना पाकर पर आज ही लड़की देखने चला जाएगा।अपने प्रेम पर विश्वास था मानसी को।साधिकार लिखा था उसने जब वह अपनी जीवनसंगिनी के साथ विवाह की वेदी पर पूर्ण होगा और पत्नी से प्रेम और विश्वास के बंधन में बंध जाएगा ,तभी वह मुंह देखेगी उसका।उसके पहले अब और ना तो कोई बात होगी ना मुलाकात। पंडितजी से मौली बंधवाते हुए सोच लिया उसने ,यह मानव का प्रेम है जो मौन होकर आजीवन उसके साथ रहेगा।
ऊपर से एक जानी -पहचानी आवाज मानसी के कानों पर पड़ी।मानव घाट पर पहुंच कर उसी का नाम लेकर बुला रहा था।फोन भी करने की कोशिश की उसने,पर मानसी ने पहले ही बंद कर दिया था फोन।उसने सच में पीली शर्ट पहनी थी आज उसके पसंद की।हांथ में मोगरे के फूलों का गजरा लाया था उसके लिए।काफी देर तक इंतजार करने के बाद जैसे ही मानव जाने के लिए बढ़ा ,उस नाव वाले ने पैसों की लाज रखते हुए वह खत दिया उसे।मानव अवाक और हताश होकर खत पढ़ रहा था और मानसी दूर से उसके आंसुओं को।बहुत रो रहा था मानव ,मानसी ने अपने मुंह में साड़ी का पल्लू ठूंस लिया था।उसके जोर से रोने की आवाज़ ना सुन ले मानव कहीं।
बहुत देर तक शून्य में देखते रहने के बाद मानव ने गजरा गंगा में प्रवाहित कर दिया।ओह!मानसी को अपनी जली हुई काया का राख नजर आया।आज उसने बहुत बड़ी तपस्या को साधा था।प्रेम के बंधन को मोह पाश से मुक्त करके मानसी ने प्रेम को अनंत काल के लिए अमर कर लिया था।उसने प्रेम को खोया नहीं जन्म-जन्मांतर के लिए पा लिया था।मानव के चले जाने के बाद ही निकलेगी यहां से।संध्या आरती का समय हो रहा था,अब चलना चाहिए,रात को ट्रेन भी है।
जाते हुए नाव वाले को धन्यवाद बोलने के लिए जब गई तो उसने मानव के द्वारा लाई गई एक सद्ध प्रकाशित किताब मानसी के हांथों में रख दी।पहले पन्ने पर लेखक – “मानव-मानसी”देख कर दंग रह गई ,मानसी।इतना बड़ा उपहार दे दिया मानव ने उसे।बड़ी मुश्किल से किताब छपवाने को राजी हुआ था।अपने नाम के साथ मानसी का नाम जोड़कर सदा-सदा के लिए अपने प्रेम को मौली की तरह बांध गया मानसी के हांथ में।नाववाले ने रोती हुई मानसी को एक और सच्चाई बताई”दीदी जी ,वो पीली शर्ट वाले बाबूजी बोल रहे थे”मुझे मालूम है तुम यहीं कहीं हो,मुझे देख रही हो,मुझे बिना देखे तुम जा ही नहीं सकती।”
मानसी के अनवरत झरते आंसुओं ने मानव के प्रति कृतज्ञता दिखा दी थी।
#एक_रिश्ता
शुभ्रा बैनर्जी