मिल गई मंज़िल… – डॉ. सुनील शर्मा

बारहवीं का रिजल्ट आ गया. रोहित सिर्फ 64 प्रतिशत अंक पाकर जैसे टूट सा गया. वह चिकित्सा शास्त्र में दाखिला पाने के लिए जी जान से पढ़ाई कर रहा था . कोचिंग भी कर रहा था, लेकिन यह बारहवीं का रिजल्ट. किसी को क्या मुंह दिखाऊंगा… रुआंसा सा सर पकड़ कर बैठ गया. घर जाने का कतई मन नहीं था. मां- पिताजी इंतजार कर रहे होंगे. पापा क्या नहीं कर रहे मेरे लिए… कोचिंग की फीस भी भरी. . कारखाने की नौकरी में तनख्वाह अधिक नहीं , लेकिन फिर भी कोई कमी महसूस नहीं होने देते. मां ने सिलाई मशीन लगा रखी है. आस-पड़ौस के कपड़े सिलकर कुछ सहारा हो जाता है. क्या करूं.. रोहित सड़क पर बस चला जा रहा था. अपने पर ही क्रोध आ रहा था, और ग्लानि हो रही थी, पढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन रिज़ल्ट तो सामने है. क्या करुं… शर्म से डूब मरने की बात है. क्या क्या उम्मीदें लगा रखी हैं मुझसे. पापा को तो पूरा भरोसा है मुझपर. आज उम्मीद टूटी तो… दोनों छोटे भाई -बहन का तो आदर्श हूं मैं, उन्हें कैसा लगेगा. उनकी नज़रों में भी मेरी क्या हैसियत रहेगी.

भूखा-प्यासा एक पार्क में जा बैठा. चार घंटे ऐसे ही उधेड़बुन में गुज़र गए, पता ही न लगा. शाम का धुंधलका छाने लगा. कुछ सोच लिया, मन में ठान लिया. रेल की पटरी की ओर रुख किया. जल्दी से कोई ट्रेन आए और सब झंझटों से मुक्ति. सारी पीड़ा समाप्त.

तभी किसी ने कंधे पर हाथ रखा. मुड़कर देखा, पिताजी थे. आंसुओं से चेहरा भीगा हुआ था. रोहित को बाहों में भींच लिया. सारा दिन सभी तलाश रहे थे. रिज़ल्ट का उन्हें पता लग गया था. कम अंक देखकर किसी अनहोनी से सभी घबराए हुए थे. घर में मां का रो-रोकर बुरा हाल था. पापा देर तक रोहित को कस कर पकड़े खड़े रहे. जैसे खुद को अनहोनी टलने की तसल्ली दे रहे हों. फिर रोहित को पानी पिलाया. साईकल पर बैठाकर दोनों घर को चल पड़े.

रोहित की मां ने बढ़कर उसे गले लगाया. भाई-बहन भी आ कर चिपक गए. खाना खाकर पिताजी के पास बैठा तो उन्होंने समझाया, यूं दिल मसोसने की ज़रुरत नहीं. अभी दाखिले की परीक्षा में समय है, मन लगाकर मेहनत करो. मां ने भी उत्साह बढ़ाया. सुबह जल्दी उठाकर और रात देर तक, पढ़ाई के समय साथ ही रहतीं. भाई-बहन भी हिम्मत बंधाते न थकते. सारा परिवार जैसे उसे धुरी मानकर इर्दगिर्द घूम रहा था.

आज रिज़ल्ट भी आ गया, रोहित अपनी पोजीशन देखकर खुश था. किसी अच्छे  सरकारी मैडिकल कॉलेज में भर्ती की उम्मीद थी. मां – पिताजी तो जैसे हवा में उड़ रहे थे. गर्व से सीना तान रहा था. मां गिन रही थीं कहां-कहां की मनौती मानी रखी है.  भाई-बहन के लिए तो मैं आदर्श था ही. आस-पड़ौस के सभी लोग  बधाई

दे रहे थे. परिवार के हर सदस्य ने रोहित को ग्लानि से निकालकर उसका मनोबल बढ़ाया और उसे मंज़िल तक पहुंचाया.

– डॉ. सुनील शर्मा

गुरुग्राम, हरियाणा

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