मेरी सास को चाहिए हमेशा छप्पन भोग | Blog post by Anshita Maheshvari

कुसुम जी ने अपनी पूरी जिंदगी बहुत ही ऐश और आराम से गुजारी थी। पति सरकारी ऑफिसर से तो किसी चीज की कोई कमी नहीं थी।

गवर्नमेंट की तरफ से ही उन्हें रहने को घर नौकर चाकर सब कुछ मिला हुआ था|

ऊपर से उनकी गोद में तीन बेटे थे। सभी लोग कहते हैं तुम तो बड़ी भाग्यशाली हो अभी भी ऐश और आराम से जी रही हो और बुढ़ापे में भी तीन तीन बहुए तुम्हारी सेवा करेंगी|

कुसुम जी को अपनी किस्मत पर बहुत ही नाज था|

समय अपनी गति से चल रहा था। तीनों बेटों की शादी  हो गई घर में अच्छी पढ़ी-लिखी सु-सभ्य लड़कियां बहू बनकर आ गई थी|

जिस दिन कुसुम जी के पति ने अपनी जॉब से रिटायरमेंट लिया  था। उसी दिन से कुसुम जी ने भी अपनी गृहस्थी से रिटायरमेंट ले लिया सारा काम बहुओं के ही जिम्मे था। यदा-कदा अपने पति और बेटे के कहने पर यदि किचन में कुछ बनाने जाती तो उस दिन मानो बहुओं की शामत आ जाती|



कुसुम जी वैसे भी कड़क स्वभाव की थी, बहुओं के लिए तो वे ओर  टिपिकल सास से भी ज्यादा थी।  बहुओं को ताने मारना उन्हें और उनके परिवार कोसना उनका पसंदीदा शगल था। बहुएं आपस में साझेदारी से काम करने की कोशिश करती तो, वे उन लोगों में फूट डालकर राज करने की कोशिश|

रोज की इस तरह की खटपट से बहुओं ने अपना काम बांट लिया। रोजाना समय पर सभी अपना अपना काम कर लेती थी| सब कुछ अच्छी  तरह से चल रहा था, मगर फिर भी कुसुम जी के इंटरफेयर के कारण बहूए घर में खुश नहीं रह पाती|

तभी छोटी बहू के जीवन में सुकून आया उसके पति का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया| अब वह खुशी-खुशी अपने पति के साथ चली गई। एक बहू के जाने से बाकी की दो बहुओं की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई| दोनों में खटपट भी ज्यादा होने लगी तब कुसुम जी के पति ने कहा- कुसुम तुमने शुरू से लेकर आज तक घर का कोई काम नहीं किया ,मगर फिर बहुओं से क्यों इतना काम करने की उम्मीद करती हो एक तो तुम से पीछा छुड़ा कर चली गई| कहीं ऐसा ना हो कि बाकी की दो भी तुम्हें छोड़कर चली जाए|

कुसुम जी नाराज होकर बोली- ऐसे कैसे चली जाएंगी? मैं भी तो देखूं मेरे बेटे को कैसे लेकर जा सकती है वे दोनो|

कुछ दिनों के बाद ही बड़ी बहू  अपने बच्चों की पढ़ाई का बहाना लेकर बड़े शहर में शिफ्ट हो गई।

अब केवल मंझली बहू कुसुम जी के पास थी।

अपनी दोनों बहुओं के जाने के बाद कुसुम जी को अपनी गलती का थोड़ा सा तो एहसास हुआ मगर फिर भी उन्होंने काम करना शुरु नहीं किया बल्कि बहू की मदद के लिए एक गृहसहायिका को लगा दी|



एक दिन मंझली बहू कि पिताजी की तबीयत अचानक से खराब हो गई और उसे अपने मायके जाना पडा उसमें अपनी हेल्पर की मदद से फटाफट खाना बनाया और मायके चली गई मगर रात को लौट कर नहीं आ सकी अगली सुबह जैसे ही वो घर में आई वहां का नजारा देखकर हैरान रह गई। कुसुम जी सब्जियां सुधार रही थी और उसके पति नाश्ते के लिए ब्रेड टोस्ट कर रहे थे|

एक पल को तो उसे सुकून आया कहां वह सोच रही थी कि घर आकर फटाफट काम करना पड़ेगा, मगर यहां थोड़ा बहुत काम किया हुआ था अच्छा है। रात भर की जागी हुई थी तो थोड़ा सा आराम हो जाएगा|

वह सोचती रही थी कि उसे देखकर कुसुम जी चिल्लाते हुए बोली- बहु तुमसे कहा था ना कि रात को वापस आ जाना| मगर तुम रात को वापस नहीं आई| मुझे ही सबके लिए खाने में खिचड़ी बनानी पड़ी और अब देखो सुबह से खाने की तैयारी कर रही हूं| अब आ गई हो तो थोड़ा जल्दी जल्दी हाथ चलाओ सब्जी सुधरी हुई है| मिक्स वेज, कड़ी, पुलाव और आमरस बना लेना और हां पुलाव के साथ चटनी पीसना मत भूलना| कल तो सबने ऐसे ही खाना खाया कम से कम आज तो सब लोग पेट भर कर खाना खाए|

सासु की बात सुनकर बहू की आंखों में आंसू आ गए| किसी ने एक बार भी पूछना जरूरी नहीं समझा कि पापा की तबीयत अब कैसी है ? आते ही मुझे काम बता दिया । यदि सब ने एक दिन खिचड़ी खा ली तो कोई आफत आ गई थी ,जो अब सब को छप्पन भोग चाहिए|

वह तुरंत बोली- मम्मी जी मैं रात भर की जगी हुई हूं तो मैं खाना नहीं बना पाऊंगी| यदि आप कर पाए तो ठीक वरना ऑनलाइन ऑर्डर कर देती हूं|

बहू की बात सुनकर कुसुम जी नाराज होकर बोली- बेटा यह कौन सी बात हुई बहू के होते हुए बाहर से खाना आएगा वैसे भी मुझे मेदे की रोटी हजम नहीं होती|

बहु बोली- मम्मी जी जैसे आज आप अभी नाश्ते में ब्रेड खाकर हजम करने वाले थे वैसे ही मैदे की रोटी हजम कर लेना मैं बहू हूं  कोई काम करने की मशीन नहीं समझी आप|

बहू की बात सुनकर कुसुम जी का चेहरा उतर गया| मगर बहू के मन में सुकून था कि आज यदि वह अपनी बात नहीं कहती तो शायद उम्र भर कुसुम जी उसे अपने इशारों पर नाच आती रहती|

लेखिका:अंशिता माहेश्वरी

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